CAA के विरोध का मतलब शरजील का समर्थन नहीं है!

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर शरजील इमाम नाम के एक लड़के का भाषण वायरल हुआ था जिसमें वो असम को भारत से अलग करने की बात कह रहा था. इसके बाद महात्मा गाँधी के बलिदान दिवस के दिन जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे समूह पर गोपाल नाम के एक लड़के ने ‘यह लो आजादी’ कहते हुए गोली चला दी. उस गोली से एक छात्र घायल हुआ है.

कुछ दिनों से देश में ऐसा ही चल रहा है. हर तरफ हिंसा, नफ़रत, भय और अराजकता वाला वातावरण बना हुआ है. कहीं नारे लगा या लगवा कर देशभक्त होने का सबूत दिया और माँगा जा रहा है, तो कहीं सरकार की नीतियों का विरोध करने के बहाने देश की अखंडता को तोड़ने की कोशिश हो रही है.

कहीं न कहीं इन सब के लिए जिम्मेदार लोगों में भेदभाव और द्वेष फैलाने वाली आज की राजनीति है. सत्ता में बने रहने और सत्ता तक पहुंचने की जद्दोजहद में, राजनीतिक शुचिता, नैतिकता और मर्यादा ताक पर रख दी गयी है. कुछ दलों और नेताओं ने राजनीति का स्तर इतना गिरा दिया है कि राजनीति ही सभ्य समाज के लिए खतरा बनती हुई दिखाई दे रही है.

बताइए! कोई सत्ता का विरोध करने के बहाने भारत से किसी राज्य को अलग करने की बात कर दे तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा क्या? या फिर कोई दो बार जोर से वंदेमातरम् या फिर भारत माता की जय… बोल दे तो उसे कुछ भी करने की इजाजत मिल जाएगी क्या? हमारे देश में कुछ तत्व ऐसे हैं जो नारों की आड़ में साम्प्रदायिकता और उन्माद फैलाने पर उतारू हैं, तो कुछ तत्व ऐसे भी हैं जो सरकार विरोध की आड़ में देशविरोध पर उतारू हैं. दरअसल ऐसे लोगों को देश की सभ्यता, संस्कृति और संविधान से कुछ लेना देना नहीं है. इन्हें खुद को बचाने के लिए उसे सिर्फ अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल करना हैं.

दिल्ली में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान विवादित नारा लगवाया गया. उन्होंने मंच से कहा ‘देश के गद्दारों को… भीड़ से आवाज आई ….गोली मारों सालों को’। जब संवैधानिक पद पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति ही “देश के गद्दारों को….” जैसे नारे लगवाने लग जाता है तो उसके परिणाम इसी रूप में सामने आते हैं. ऐसे नारे ही किसी गोपाल को ‘गोडसे’ बनने के लिए प्रेरित करते हैं. समाज में जो अराजकता, भेदभाव, नफरत और माँब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, उसके लिए जिम्मेदार ऐसे नारे लगवाने वाले लोग ही हैं. ये कैसा वातावरण तैयार किया जा रहा है? सत्ता की चाहत में युवा पीढ़ी को उकसा कर बर्बादी में झोंक देना जायज है क्या? युवाओं को देने के लिए आपके पास अच्छी शिक्षा और रोजगार नहीं है, तो कम से कब उनके मन में किसी के प्रति घृणा और नफ़रत का जहर तो मत बोइए. उन्हें अच्छे रास्तों पर चलना तो सिखाइए.

जनता का ध्यान उसकी मूलभूत आवश्यकताओं पर से हटा कर जातीय और धार्मिक मुद्दों पर कौन केन्द्रित कर रहा है? इस देश में सरकार से सवाल पूछने और सरकार की किसी नीति से असहमति जताने को देश विरोध के रूप में कौन प्रचारित कर रहा है? ‘गोपाल और सीएए के विरोधी, शरजील के समर्थक हैं’ ये भ्रम कौन फैला रहा है? उन्हें ढूँढना होगा. वही आज के इस माहौल और अराजकता के लिए जिम्मेदार हैं.

यह समझना होगा कि किसी मुद्दे के विरोधी सिर्फ उस मुद्दे के विरोधी हैं, किसी के समर्थक नहीं! सीएए और गोपाल का विरोध करने का मतलब शरजील को समर्थन देना कतई नहीं है. यह आसान सी बात कुछ राजनीतिक दल लोगों को समझने नहीं देना चाहते.

ऐसी बहुत सी चीजे हैं जो व्यक्तिगत तौर पर तो हमें अच्छी लगती हैं पर वो सबके लिए अच्छी नहीं होती. अगर हम देश की बात करते हैं तो हमें उस रास्ते पर चलाना होगा जो सबके लिए अच्छा हो. जहाँ किसी का हक़ और अधिकार न मारा जाए. जिससे सबके मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके. साथ ही कोशिश रहनी चाहिए कि राजनीति समाज की बेहतरी के लिए हो न कि समाज की बर्बादी के लिए.

इस दौर में सत्ता के लोभ में कुछ लोग ‘नए-नए गोडसे और जिन्ना’ पैदा करके भले ही खुश हो रहे हैं पर सच ये है कि देश में उपजी समस्याओं से लड़ने के लिए इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत महात्मा गांधी के पुनर्जीवित होने की है!


लेखक राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (युवा) के राष्ट्रीय सचिव हैं

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