ऊपर तस्वीर युनेस्को के पेरिस स्थित मुख्यालय की है । तस्वीर में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का चेहरा मीडिया विजिल ने जोड़ा है। दरअसल, दोनों देशों ने युनेस्को से नाता तोड़ने का ऐलान किया है । पहले अमेरिका ने और फिर पीछे-पीछे इज़रायल ने (उसे अमेरिकी पिछलग्गू और बग़लबच्चा ऐसे ही नहीं कहा जाता।) आज दुनिया भर के मीडिया की यह ख़ास सुर्ख़ी है।
युनेस्को यानी युनाइटेड नेशन एजूकेशनल, साइंटिफ़िक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइज़ेशन में 195 देश शामिल हैं। इसने 1945 में अपनी स्थापना के साथ ही अपने नाम को सार्थक करने क लिहाज़ से दुनिया भर में अहम काम किया है। ऐसे में ख़ुद को दुनिया का चौधरी समझने वाले अमेरिका को क्या तक़लीफ़ हुई है, इस पर मशहूर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता दिगंबर ने एक त्वरित टिप्पणी लिखी है। पढ़िए–
अमरीका का कहना है की यूनेस्को इजराइल विरोधी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. पहले भी, 1984 में अमरीका ने यूनेस्को से नाता तोड़ लिया था और उसे आर्थिक सहयोग देना बन्द कर दिया था. 2002 में दुबारा शामिल होने के बावजूद इसने अपना आर्थिक सहयोग शुरू नहीं किया. 2011 में उसने 4 करोड़ डालर की सहयोग राशि इस लिए नहीं दी थी कि यूनेस्को ने फिलिस्तीन को सदस्यता दे दी थी.
इस साल जुलाई में यूनेस्को ने फिलिस्तीन में वेस्ट बैंक स्थित एक प्राचीन शहर हेब्रोन को मुस्लिम आराधना स्थल के रूप में विश्व धरोहर में शामिल कर लिया था. इस फिलिस्तीनी शहर में अल अक्सा मस्जिद ओर डॉम ऑफ रॉक दो मुस्लिम इमारतें हैं. इजराइल का इस फैसले से विरोध था, क्योंकि उन इमारतों के करीब ही एक अन्य एतिहासिक स्थल टेम्पल माउन्ट पर यहूदियों की दावेदारी है. हालाँकि मुस्लिम इसे हरम-अल-शरीफ मानते हैं और फ़िलहाल इजराइल सरकार ने भी टकराव से बचने के लिए पहले से ही इसे सिर्फ मुस्लिम उपासना स्थल के रूप में ही मान्यता दी है.
यूनेस्को की डायरेक्टर जेनरल इरिना बोकोवा ने कहा कि “ऐसे समय में जब दुनिया भर में समाजों को तोड़ने वाले टकराव लगातार जारी हैं, अमरीका का यूनेस्को जैसी संस्था से अलग होना दुर्भाग्यपूर्ण है, जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ की यह संस्था दुनियाभर में शान्ति की शिक्षा दे रही है और उन संस्कृतियों की रक्षा कर रही है जिन पर हमले हो रहे हैं. यह यूएनओ परिवार का नुकसान है, यह बहुलतावाद का नुकसान है.”
खुद को दुनिया का चौधरी समझने वाले अमरीका का यह रवैया कोई नया नहीं है. जब भी यूएनओ के किसी मंच पर बहुमत का फैसला उसके मनमाफिक नहीं होता है, तो अमरीकी उसे ” बहुमत की तानाशाही ” कह कर खारिज कर देते हैं. मुद्दा चाहे किसी देश पर हमले का हो, पर्यावरण विनाश रोकने का या सांस्कृतिक धरोहरों की हिफाजत का, अक्सर वह विश्व बहुमत की उद्दंडता पूर्वक अवहेलना करता है.”
नीचे है गार्जियन का वह यूट्यूब वीडियो जिसमें युनेस्को की महानिदेशक इरिना बोकोवा अमेरिका और इज़रायल के इस फ़ैसले अफ़सोस जताया है–