इविवि में आग लगाकर ABVP ने फूँक डाला मोहन भागवत के ‘संवैधानिक’ होने का दावा!

ऋचा सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में समाजवादी छात्र सभा ने अध्यक्ष पद जीत के अपना परचम लहराया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को करारी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ था। छात्रसंघ चुनावों में जीत-हार चलती रहती है। लेकिन मोदी-योगी राज में उन्मत्त हो चुकी एबीवीपी ने जिस तरह, हॉलैंड हॉल छात्रावास में निवर्तमान और निर्वाचित अध्यक्ष के कमरों में आग लगाई, उसने आरएसएस के असल चेहरे को सामने ला दिया।

एबीवीपी ने जेएनयू में भी हार के बाद उत्पात मचाया था और अब इलाहाबाद में उसने आग लगा दी। लेकिन इस आग में संघ सुप्रीमो मोहन भागवत का दिल्ली में दिया गया वह फ़र्ज़ी भाषण भी धू-धू करके जल गया जो उन्होंने दिल्ली में बुद्धिजीवियों को बरगलाने के लिए दिया था। उन्होंने बार-बार कहा था कि संघ संविधान पर भरोसा करता है, लेकिन संघ के आनुषंगिक संगठन संविधान की मान्यताओं, संकल्पों यहाँ तक कि प्रक्रियाों को भी फूँक डालने पर आमादा हैं।

हॉस्टल में लगायी आग की तस्वीरों को ग़ौर से देखिए। यह नालन्दा की तस्वीर नही है। ये लूट लिए गए तक्षशिला का भी नही है। यह 131 साल के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के और छात्रसंघ के 85 साल के इतिहास के पहली घटना है। देश भर में यूनिवर्सिटी यूनियन इलेक्शन में हारती जा रही, मुँह के बल गिरती जा रही, संघ सम्प्रदाय की विद्यार्थी परिषद ने पुलिस की मौजूदगी में छात्र संघ के निवर्तमान अध्यक्ष अवनीश और इस बार के चुनाव में विजयी उदय प्रकाश का कमरा, किताबें, बिस्तर, मूल कागज़ात, मार्कशीट सब खाक कर दिया। तमाम आम छात्रों के कमरे भी जल गए। छत तक जल गई।गाड़ियाँ भी जला दी गयी, साइकलें जला दी गईं।

हैरानी की बात है कि यह घटना योगी की पुलिस के सामने ही नहीं, केंद्रीय पुलिस बल, RAF और पीएसी की मौजूदगी में हुई। बाहरी लोगों के बस की बात नहीं थी कि वे इतनी बड़ी घटना को अंजाम देते।शर्मनाक बात है कि अपराधी गोली चलाते पुलिस के सामने से निकल गए ।

ज़ाहिर है, ऐसी घटना सरकार का संरक्षण प्राप्त समूह ही अंजाम दे सकता है, जिसे पुलिस- क़ानून का कोई भय न बचा हो। यह संघ और भाजपा को देश व्यापी पराजय की बौखलाहट है। यह गिरोह हिंसक और हत्यारे गैंग की तरह हमलावर होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में उपचुनावों में हुई शर्मनाक हार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में उनकी करारी शिकस्त ने उन्हें 2019 का स्पष्ट सन्देश दे दिया है। आखिर फासिज्म होता क्या है? लोकतंत्र और जनादेश को पैर तले रौंदने, संविधान को जलाने, लिंचिंग करने, नरसंहार करने वाले इन अपराधियों के खिलाफ नौजवान- युवा खड़े हो रहे हैं।

बड़ा सवाल यह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की हार पर अगर आरएसएस की विद्यार्थी परिषद विश्वविद्यालय को आग लगा सकती है तो क्या  2019 में लोकसभा चुनाव हारने पर बीजेपी पूरे देश में आग लगाएगी? इलाहाबाद में इन्होंने झलकी दिखाई है, लेकिन हम भी तैयार हैं इन्हें मुँहतोड़ जवाब देने के लिए।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र संघ चुनाव इलाहाबाद ही नहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिहाज से काफी अहम माना जाता है। विश्वविद्यालय में हजारों की संख्या में पूर्वांचल व अवध से छात्र पढ़ने आते हैं।  छात्र संघ चुनाव का असर पूर्वांचल व अवध की राजनीति पर काफी प्रभाव डालता रहा है। अगले वर्ष होने वाले लोक सभा चुनाव की दृष्टि से भी ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। पूर्व में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पदाधिकारी प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री सहित तमाम महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों को संभाल चुके हैं।

इस बार का छात्रसंघ चुनाव परिणाम साफ बता रहा है कि मोदी और योगी राज के प्रति युवाओं का क्या रुख है।  पिछले कुछ समय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय और इलाहाबाद शहर की राजनीति के केंद्र की भाजपा सरकार सीधे निशाने पर रही है, जिसका असर छात्र संघ चुनाव पर पड़ा। लंबे समय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के VC, प्रो. रतनलाल हांगलू के खिलाफ छात्र आंदोलन-रत रहे हैं।  ताज़ा मामला प्रो. रतन लाल हांगलू के कथित महिला स्कॉलर के साथ व्हाट्सप्प और फ़ोन पर वार्ता का है।  प्रथम दृष्ट्या प्रो. हांगलू अपने पद का दुरूपयोग करते हुए विश्वविद्यालय में नौकरी का प्रलोभन दे, महिला से अश्लील वार्ता करते हुए नज़र आते हैं। प्रो. हांगलू के इस कृत्य के खिलाफ छात्र एक महीने से आंदोलनरत हैं, उन्होंने प्रधान मंत्री और मानव संसाधन मंत्रालय से शिकायत की है।  छात्रों की माँग थी कि मानव संसाधन मंत्रालय, पद का दुरूपयोग करने के मामले में, प्रो. हांगलू के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच कराये लेकिन एक महीने बाद भी मानव संसाधन मंत्रालय का छात्रों की माँग का कोई संज्ञान न लेना और कोई करवाई न करना, छात्र संघ चुनाव का बड़ा मुद्दा बना। चुनाव के दौरान यह पूरा मामला समजवादी छात्र सभा ने पुरजोर तरीके से उठाया।  छात्र नेताओं का मानना है की वीसी को सीधा मानव संसाधन मंत्री का संरक्षण प्राप्त है। इसीलिए मंत्री और बीजेपी सीधे-सीधे एक यौन उतपीड़न के आरोपी को बचा रहे हैं।  ये पूरा मामला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को चुनाव में काफी भरी पड़ा और उसे विशेषकर से छात्राओं से भरी आलोचना का सामना करना पड़ा।

देश और विश्वविद्यालयों में महिलाओं के प्रति असुरक्षा चुनाव में काफी प्रभावी रहा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हाल ही में छात्राओं पर हमला व BHU में पिछले और इस साल छात्राओं पर हमले की घटना, चर्चा का विषय एवं चुनावी मुद्दा बनी रही । छात्र मानते हैं कि विश्वविद्यालय में हाल ही में छात्राओं पर हमला वीसी द्वारा गुंडों से कराया गया था। यह घटना तब हुई जब छात्राएँ वीसी के खिलाफ आंदोलन कर रही थीं।  छात्राएं वीसी के ऑडियो टेप के सार्वजनिक होने के बाद सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उनका मानना है की जब वीसी खुद ही यौन उतपीडन का आरोपी है, तो छात्राएँ कहा से सुरक्षित होंगीं। वीसी के अलावा कुलसचिव पे भी महिलाओं से अभद्रता का गंभीर आरोप है, जिसे लेकर उन पर FIR दर्ज है। पुलिस इस मामले की जांच कर रही है।

इलाहाबाद के ज्यादातर छात्र विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करते हैं। 80% छात्र डेलीगेसी (शहर के विभिन्न मोहल्लों) में रहते हैं। पिछले एक साल से एक के बाद एक परीक्षा का पेपर आउट होने से भी छात्रोंं में काफी नाराज़गी है। माध्यमिक शिक्षक भर्ती से लेकर सिपाही भर्ती और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा का पेपर आउट हुआ है।  पेपर आउट होने से सभी परीक्षा परिणाम न के केवल अटक गए हैं, बल्कि हजारों – हजार नौकरियों के पद खाली पड़े हैं।  एक तरफ तो सारी परीक्षा टल गई और दूसरी तरफ नई नौकरी के आवेदन नही आ रहे हैं। देश और प्रदेश में बढ़ती बेरोज़गारी छात्रसंघ चुनाव में सर चढ़ा कर बोला।

एक और बड़ा मुद्दा योगी सरकार में बढ़ता पुलिसिया दमन और जुर्म है।  पिछले एक साल में इलाहाबाद में छात्रों पर कई बार बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज हुआ व कई बार उन्हें भी भेजा गया। जून 2018 में वर्त्तमान छात्र संघ अध्यक्ष एवं अन्य छात्रों को हॉस्टल खाली कराने के विरोध करने पर झूठा केस दर्ज कर जेल भेजा गया।  इसके आलावा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की मुख्या परीक्षा का पेपर आउट पर हुए आंदोलन पर पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षा को भी जेल भेजा गया।  लखनऊ में हाल में ही हुई, विवेक तिवारी की पुलिस द्वारा हत्या की भी चुनाव में काफी चर्चा रही। उत्तर प्रदेश में हो रहे एनकाउंटर भी छात्रों के बीच मुद्दा रहा। छात्रों का मानना है की योगी सरकार में पुलिस बेलगाम होगी है। अतः आये दिन नौजवानों, दलितों, मुसलमानों और पिछड़ों पर  पुलसिया कहर ढाया जा रहा है।

यही वजह है कि एबीवीपी को छात्रों ने रिजेक्ट कर दिया। मोदी और योगी के अपराजेय होने का मिथक तो पिछले दिनों फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में ही तोड़ दिया गया था, अब विश्वविद्यालय में उसके चेहरे पर कालिख पुत गई। उसने विश्वविद्यालय में आग लगाकर साबित किया है कि ज्ञान, शील और एकता का उसका नारा कितना खोखला है। उसकी लगाई आग में आरएसएस के ख़तरनाक इरादे ख़ाक हो जाएँ, इसकी गारंटी करने के लिए छात्र-युवाओं ने कमर कस ली है।

ऋचा सिंह, इलाहाबाद विश्विविद्याल छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी की नेता हैं।

 



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