मुख्यमंत्री हरीश रावत से सवाल-जवाब के बहाने TOI की धंधेबाज़ी !

मुझे शुरू में अच्छा लगा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से फेसबुक सामाजिक मुद्दो पर अपने सदस्यों के सवालों पर उनसे जवाब मांगेगा. 18 तारीख के इस आयोजन से मन को संतोष हुआ कि जिस विपदा से हरिद्वार और इसकी पांचों पुरियों के लोग व्यथित हुए है उनकी समस्या पर शायद किसी हल की उम्मीद बने. क्योंकि बारिश की पहली फुहार ने प्रशासन की पोलपट्टी खोलदी थी.

लेकिन सवालजवाब का यह सत्र अकेले फेसबुक का नहीं था .इसमें पिछले दरवाजे से टाइम्स आफ इंडिया भी भागी दार था .सवालजवाब में सिर्फ वे सवाल मुख्यमंत्री के सामने रखे गए जिनसे उन्हें कोई बेचैनी न हो.इस काम में टाइम्स के लोग हावी रहे.

साफ था कि फेसबुक जिसे भारत में सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालने का माध्यम माना जाता है उसके अधिकारियों पर टाइम्स के बिजिनिस एक्जक्यूटिव्स और सरकारीअफसरान हावी रहे और महत्वपूर्ण सवाल मुख्यमंत्री के सामने रखे ही नहीं गए.

सवाल यह है कि क्या यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री रावत की छवि बनाने का था या उन्हे जवाबदेह प्रशासक बतौर पेश करने का था .या फिर उनसे इसके जरिए सरकारी खजाने से
प्रचार विज्ञापनों को उन्हे पटा कर हा सिल करने का था.इस बात की तहकीकात सामाजिक मुद्दो पर बातचीत का मौका देने वाले फेसबुक और सिर्फ सालीग्रामी छवि बनाए रख कर हर सप्ताह करोडों कमाने में माहिर टाइम्स आफ इंडिया समूह के समर्थ मार्केटिंग बिजिनेस एक्जक्यूटिव्स से करनी चाहिए.

आपने अमेरिका में ढेरो कैटरीना टाइप बवंडरों से तबाह हुए अश्वेतो और श्वेतों की दर्द भरी दास्तान सुनी होगी.उनके बीच पहुंचे प्रेसिडेंट से फेसबुक के सवाल और उनके जवाब सुने होंगे पर 18 जुलाई को पेश मुख्यमंत्री रावत से हुई एसी बातचीत नही सुनी होगी जिसमें मुख्यमंत्री पहला वाक्य यह कहता है कि घंटेभर से ज्यादाउनके पास समय नही है.और जो सवाल पूछे जाते है वे सब सदाबहार है.

आपने सुना होगा कि किस तरह मौसम विभाग मई से ही यह बताने लगा कि इस बार औसत से ज्यादा की बारिश के आसार है.इसके महीने भर बाद से ही अखबारो मेअफसरों का बयान छपने लगे कि पूरी तैयारी है और मुकाबला जम कर होगा. तमाम नालो मे बह रही कुछ पालिथिन हटा ली गई कुछ किनारो से गाद हटी और सरकारी फाइलों मे काम संपन्न घोषित हो गया.

पहाडों पर बादल फटे.जमीनें धसकी और सारा मलबा नहरों और गंदे अस्वच्छ बदबूदार नालों और नालियों से होता हुआ पंचपुरी हरिद्वार से होता लश्कर तक 15,16 और 17 को ज्वालापुर ,कनखल हरिद्वार तक तेज करेंट के साथ सडकों से होता हुआ घरों में भरा रहा. कहीं न पु लिस थी न प्रशासन.

ज्वालापुर गुरद्वारे से ज्वालापुर रे लवे स्टेशन तक सारी सडकों पर घुटनों से ऊपर तक पानी हिलोर मार रहा था.ज्वालापुर अल्पसंख्यकों का इलाका है वहां सुरक्षा के लिहाज से भी एसी विपदा से बचाव जरूरी था पर कागजों मे तो सफाई हो चुकी थी.लगभग तीन दिन इस पहली बारिश में बुजुर्ग युवा और बच्चे बदबू झेलते रहे घरों मे.

हरीश भाई इतने दिन बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने में जुटे है. आज भी विजयोल्लास उनके चे हरे पर है इसी के चलते अफसरशाही उन पर हावी है. इसी का लाभ लेते हुए टाइम्स ने फेसबुक के सोशल हैंडल से बडा लेनदेन कर अप ना उल्लू साधा.इसीलिए एसे सवाल नही पूछे गए जो जनता के लिहाज से जरूरी थे. जनता चाहे पहाड पर हो या मैदान मे चापलूस अफसरशाही के चलते भुगत रही थी. इसी तरह विभिन्न आयवर्ग के लाखों तीर्थयात्री इन दिनों में ज्वा लापुर हरिद्वार के रौरव नरक से किसी तरह ज्वालापुर के रोशनीविहीन रेलवे स्टेशन पर पहचे.वहा मसूरी एकस्प्रेस का 1ए श्रेणी का टीटी उनकी तकलीफ पर नमक छिडकते हुए कह रहा था हम तो इस कोच को यहां खोलते नही.यही प्रभुइच्छा है.यह देश हमारा……..

अब जरूरी है कि सामाजिक मुद्दो पर बात के बहाने कमाई करने वाले कथित टाइम्स आफ इंडिया की पत्रकारिता को खारिज किया जाए.इसी तरह फेसबुक के अफसरों की एसी चालों का विरोध किया जाए क्योकि इस तरह के स्वांग से यह भले लोगों के मन में दरार डालते है.

 

 

 

 

अमित प्रकाश सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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