मोदी, शाह, पांड्या, लोया : एक कहानी, चार किरदार !

अजित साही

एक थे हरेन पांड्या. गुजरात में आरएसएस के क़द्दावर नेता थे. मोदीजी के पहले क़रीबी रहे लेकिन फिर विरोधी. मोदीजी के विरोधी बनने के बाद उन्होंने धमकी दी कि वो सन् 2002 में गुजरात में हुए मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम में मोदीजी की भूमिका की जानकारी जाँच आयोग में देंगे. फिर पंड्या की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या हो गई. पांड्या के परिवार वालों ने आरोप लगाया कि हत्या मोदीजी ने, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे, करवाई है. लेकिन हमेशा की तरह गुजरात पुलिस ने कुछ मासूम मुसलमानों को पांड्या की हत्या का मुजरिम बनाया. इन अभियुक्तों को निचली अदालत से सज़ा हुई लेकिन हाईकोर्ट ने केस को बकवास बताते हुए उनको बरी कर दिया. आज तक पांड्या के असली क़ातिल नहीं पकड़े गए हैं.

कुछ सालों बाद सोहराबुद्दीन शेख़ नाम का एक आदमी गुजरात पुलिस ने एंकाउंटर में मार गिराया. लेकिन सोहराबुद्दीन के भाई ने आरोप लगाया कि ये एंकाउंटर नक़ली था और पुलिस वालों ने उसके भाई की हत्या की है. सोहराबुद्दीन की बीवी की भी हत्या हुई थी. कुछ समय बाद सोहराबुद्दीन के एक साथी तुलसी प्रजापति को भी पुलिस ने एंकाउंटर कर दिया. सोहराबुद्दीन के भाई की याचिका पर अदालत ने सोहराबुद्दीन, उसकी बीवी क़ौसरबी और प्रजापति के एंकाउंटरों की जाँच के आदेश दिए. मालूम पड़ा वाक़ई एंकाउंटर झूठा था. आरोप आया अमित शाह पर कि उनके कहने पर पुलिस वालों ने इन लोगों का एंकाउंटर किया. अमित शाह लंबे समय से मोदीजी के विश्वस्त रहे हैं और घटना के दौरान गुजरात के गृह राज्यमंत्री भी थे, यानी पुलिस महकमे के सरगना थे. अमित शाह कुछ महीने इस चक्कर में जेल भी रहे. आख़िर क्यों करवाया होगा ये एंकाउंटर? तो बात ये होने लगी कि दरअसल अमित शाह ने सोहराबुद्दीन को पांड्या की हत्या की सुपारी दी थी. काम हो जाने के बाद सोहराबुद्दीन का ज़िंदा रहना ख़तरनाक था. इसलिए उसको भी यमराज के पास भेज दिया. उसकी बीवी बेचारी इसलिए फँस गई क्योंकि वो चश्मदीद थी. प्रजापति का भी यही दुर्भाग्य था.

ये सब चल ही रहा था कि मोदीजी चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बन गए. फटाफट अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. और इस एंकाउंटर-हत्याकांड का केस सुन रही अदालत के सामने अर्ज़ी डाल दी कि भइया अब हम बहुत बड़े वाले नेता हैं, और हमारी सरकार है, तो अब हमको छुट्टी दो इन आरोपों से. पहले जज ने नहीं माना तो उनका ट्रांस्फर हो गया. दूसरे जज थे बी. एच. लोया. उन्होंने भी अमित शाह की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी. तो हफ़्ते भर बाद लोयाजी मर गए. तीसरा जज आया तो उसने दस मिनट में अमित शाह पर लगे इल्ज़ाम को राजनैतिक साज़िश बताते हुए उनको केस से बरी कर दिया. इस जज ने ये बताना भी ज़रूरी न समझा कि वह इस नतीजे पर आख़िर किन सबूतों के आधार पर पहुँचा. सोहराबुद्दीन के भाई ने कहा कि भइया अब मैं न लड़ सकूँगा इतने बड़े नेताओं से और उसने भी अपनी शिकायत वापस ले ली.

सब चंगा हो गया. लेकिन अभी दो-तीन महीने पहले लोया के घरवालों के हवाले से एक पत्रिका ने दावा किया कि संभवत: जज लोया स्वाभाविक मौत नहीं मरे. इसके बाद जज लोया की मौत की जाँच की माँग करने वाली एक याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में और दूसरी सुप्रीम कोर्ट में आ गई. अब मोदीजी और शाहजी पर दोबारा आ खड़ा हुआ संकट कैसे टले? तो अगर सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस का सही अर्थ निकालें तो इस संकट को टलवाने का बीड़ा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं उठाया है.

ये है हमारे देश का हाल. समझे कुछ, गुरू? ऐसों को हमने देश का नेता बनाया है. घिन आती है.

 

अजित साही देश के जाने माने पत्रकार हैं। अपनी स्वतंत्र ज़मीनी रपटों के लिए ख़ासतौर पर चर्चित। 

 



 

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