सरकार ने तबलीगी जमात को बनाया बलि का बकरा, मीडिया ने किया दुष्प्रचार-बाम्बे हाईकोर्ट

जो चीज़ खुली आँख से नज़र आती थी, अब उस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। हाईकोर्ट ने कोरोना फैलाने के आरोप में तब्लीगी जमात से जुड़े विदेशियों पर दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि सरकार ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया। यह सीएए विरोधी आंदोलन में शामिल मुसलमानों को धमकाने की कोशिश भी थी।

कोर्ट ने कहा- इल्केट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में दिल्ली मरक़ज़ आये विदेशियों के ख़िलाफ़ बड़ा दुष्प्रचार किया गया। ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश की गयी जैसे कि ये विदेशी भारत में कोविड-19 फैलाने के ज़िम्मेदार हैं। यह विदेशियों के ख़िलाफ़ एक तरह से ‘आभासी मुकदमा’ था।

21 अगस्त को दिये अपने फ़ैसले में कोर्ट ने पाया है कि तबलीगी जमात के खिलाफ़ कार्रवाई के पीछे दुर्भावना काम कर रही थ। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने मुख्य रूप से मरकज में आये मुस्लिम विदेशियों के खिलाफ़ ही कार्रवाई की। इस तरह का कोई एक्शन अन्य धर्मों को मानने वाले विदेशियों के खिलाफ नहीं किया गया।

बाम्बे हाईकोर्ट के औरंगाबाद पीठ के जस्टिस टी.वी.नलावडे और जस्टी एम.जी.सेवलिकर ने 35 याचिकाकाओं का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की जिनमें कई विदेशी भी हैं। इन्हें संक्रामक रोग फैलाने से जुड़ी तमाम धाराओं में महाराष्ट्र पुलिस ने अभियुक्त बनाया था। इन लोगों ने दिल्ली में तबलीगी जमात के मरक़ज़ में आयोजित कार्यक्र में हिस्सा लिया था।

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ़ कोई केस नहीं बनता। कोर्ट ने कहा कि जो तथ्य पेश किये गये हैं, उन्हें देखकर लगता है कि तबलीगी जमात के ख़िलाफ़ निराधार दुष्प्रचार किया गया। तबलीगी जमात का कार्यक्रम 50 सालों से ज्यादा वक्त से हो रहा था और केंद्र सरकार वीजा देते वक्त अच्छी तरह जानती थी कि विदेशी निजामुद्दीन मरक़ज़ के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।

अदालत ने साफ़ कहा कि तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया और भारत में कोविड-19 के केस बताते हैं कि जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले लोगों के खिलाफ़ एक्शन बेवजह था।

कोर्ट ने कहा -एक राजनीतिक सरकरा बलि के बकरों की तलाश करती है जब महामारी या आपदा आती है और परिस्थितियाँ बताती हैं कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाया गया। भारत में कोरोना के मौजूदा हालात बताते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था। यह समय है जब तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में आये विदेशियों के खिलाफ कार्रवाई पर पश्चाताप किया जाये और नकुसान की भरपाई के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाये जायें।

कोर्ट ने यह भी कहा कि कोविड 19 के आने से पहले जनवरी 2020 में देश के विभिन्न हिस्सों में सीएए के खिलाफ मुस्लिम समुदाय आंदोलन कर रहा था। यह कहा जा सकता है कि ये कार्रवाइयाँ मुसलमानों के मन में डर बैठाने के लिए की गयीं। राज्य सरकार ने राजनीतिक दबाव के तहत काम किया और पुलिस ने भी कानूवन की परवाह नहीं की। प्रथमदृष्टया मामला बनाने लायक रिकार्ड पुलिस पेश नहीं कर पायी।



 

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