पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के साथ ही धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में इसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ेगा. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आइएलओ द्वारा जारी ‘वर्किंग ऑन वॉर्मर प्लैनेट’ रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी से 2030 तक वैश्विक स्तर पर काम के घंटों में 2.2 फीसदी की गिरावट होगी जो कि दुनिया की कुल 8 करोड़ (80 मिलियन) नौकरियों के बराबर होगी. रिपोर्ट के अनुसार, अपनी बड़ी आबादी के कारण भारत को इसका ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा. यहां काम के घंटों में 5.8 फीसद की कमी आएगी, जो कि 3.4 करोड़ नौकरियों के बराबर है.
सोमवार, 1 जून को जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में वृद्धि से उत्पन्न स्वास्थ्य में खराबी के कारण लोग काम करने में असमर्थ होंगे. विकासशील देशों पर इसका असर ज्यादा होगा. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के इस नये अध्ययन में कहा गया है कि ‘हीट स्ट्रेस’ यानी ‘गर्मी के कारण तनाव’ का सबसे बुरा असर भारत पर पड़ेगा. यहां काम के घंटों में 5.8 फीसद की कमी आएगी, जो कि 34 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005 से 2015 की अवधि के दौरान गर्मी का स्तर बढ़ने से आउट-माइग्रेशन में तेजी से वृद्धि देखी गई थी, जो कि इससे पूर्ववर्ती 10 वर्षों में नहीं देखी गई थी.
गर्मी के कारण कृषि पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा. लोग कृषि पर निर्भर ग्रामीण क्षेत्र की आबादी बेहतर सुविधा की तलाश में शहरों की ओर पलायन करेंगे. कृषि और निर्माण क्षेत्र बढ़ती गर्मी के कारण बुरी तरह प्रभावित होंगे. दोनों काम के घंटों का 60 फीसदी और 19 फीसदी खो देंगे. परिवहन, पर्यटन, खेल और औद्योगिक जैसे क्षेत्र भी प्रभावित होंगे.
वहीं चीन पर भी ‘हीट स्ट्रेस’ का असर पड़ेगा किन्तु भारत की तुलना में वहां कुल कार्य घंटों का 0.78 प्रतिशत प्रभावित होगा और 5.47 मिलियन नौकरियां प्रभावित होगी. जो कि 50 लाख नौकरियों के बराबर है.
वहीं अमेरिका कुल कार्य घंटों का 0.21 फीसदी खो देगा, जो कि 30 लाख नौकरियों के बराबर है. कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को काम के घंटों में अधिक गिरावट आने का अनुमान है. चाड में काम के घंटों में 7.11 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वहीं सूडान में 5.9, कंबोडिया में 7.83 और थाईलैंड में 6.39 फीसदी की गिरावट आ सकती है.
1995 में वैश्विक स्तर पर हीट स्ट्रेस के कारण आर्थिक नुकसान का अनुमान 280 बिलियन डॉलर था, लेकिन 2030 में यह बढ़कर 2,400 बिलियन डॉलर (2,400 अरब डॉलर) तक पहुंचने का अनुमान है और इसका सबसे अधिक प्रभाव निम्न-मध्यम और निम्न-आय वाले देशों पर पड़ेगा.
आइआइटी दिल्ली की एक स्टडी में भी यह पाया गया था कि दिल्ली के कई इलाकों में बहुत तेजी से गर्मी बढ़ रही है. इस स्टडी में पाया गया था कि दिल्ली के इन इलाकों में आसपास के इलाकों के मुकाबले तापमान 8.3% तक ज्यादा था. आईएलओ की इस रिपोर्ट में अहमदाबाद में चलाए जा रहे हीट एक्शन प्लान को एक अच्छा कदम बताया गया है. इसमें शहर के स्लम इलाकों और शहरी गरीबों की छतों को ठंडा रखने की कोशिश की जा रही है.
तमिलनाडु के एक कृषि विज्ञानी आर मनी ने इस रिपोर्ट के बारे में कहा है, ‘इसमें पर्यावरण परिवर्तन के कृषि पर प्रभाव को अच्छे से दिखाया गया है. बढ़ते हुए तापमान और हीट स्ट्रेस के चलते पैदावर में 4.5% से 9% की कमी आने की संभावना है. यह अलग-अलग हिस्सों में गर्मी के स्तर पर निर्भर करेगा. हालांकि भारत में खेती की हिस्सेदारी कुल जीडीपी में 15% है. ऐसे में उत्पादन पर पड़ने वाला 4.5% से 9% तक का नकारात्मक प्रभाव जीडीपी पर 0.6% से 1.5% तक का असर डालेगा.’