‘भारत ग़ुलामी की ओर’- बीती सदी के नवें दशक में आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन नयी आर्थिक नीतियों के प्रतिवाद में ये जुमला उछालते थे। अफ़सोस अब मोदी सरकार उन्हीं नीतियों को पूरी ताक़त से लागू करने में जुटे हैं और राजनीतिक-सामाजिक मोर्चे पर वह जुमला एक क्रूर सच्चाई बन गया है। अमरिकी थिंक टैंक फ्रीडम हाउस की ओर से जारी ‘फ्रीडम रिपोर्ट’ में भारत को स्वतंत्र देशों की सूची से हटाकर ‘आंशिक स्वतंत्र’ देशों की सूची में डाल दिया गया है।
फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग बीते कुछ सालों से लगातार नीचे जा रही है। भारत में पिछली बार 71 अंक मिले थे। इस बार वह 67 अंक पर फिसल गया और 211 देशों में 83 से 88 वें स्थान पर आ गया है। फ्रीडम रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 फीसदी लोग ही अब मुक्त देश में रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 के बाद भारत में न सिर्फ मानवाधिकारों पर हमले बढ़े हैं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी एक लोकतांत्रिक नेता की जगह ‘संकीर्ण हिंदूवादी नेता’ बतौर काम कर रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक बदलाव तो 2014 में नरेंद्र मोदी की पहली जीत के साथ ही शुरू हो गये थे लेकिन 2019 में मिली दूसरी जीत के बाद तो भारत में आज़ादी काफ़ी तेज़ी से घटी है। मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ गया है। पत्रकारों और एक्टिविस्टों को धमकाया जा रहा है। मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हमले ख़ासतौर पर बढ़े हैं। मोदी राज में सभी के लिए समान अधिकार और समावेश की कीमत पर संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवादी हितों को ऊपर उठाने का काम किया गया।
‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021’नाम से जारी इस रिपोर्ट में 195 देशों में 2019 के दौरान स्वतंत्रता की स्थिति का मूल्यांकन किया गया है । रिपोर्ट में फिनलैंड और स्वीडन को सौ में से सौ अंक मिले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार ने कश्मीर को लेकर लिए गये विभिन्न फ़ैसलों में लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। रिपोर्ट में अचानक लगाये गये लॉकडाउन की भी चर्चा की गयी है जिससे लाखों मज़दूरों को पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर चलकर अपने घर वापस जाना पड़ा।
रिपोर्ट में भारत की कमज़ोर स्थित पर चिंता जताते हुए इसके कारण भी गिनाये हैं। रिपोर्ट के मुताबिक-
1.भारत सरकार ने कश्मीर में शटडाउन किया। सीएए और नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।
2.विरोध प्रदर्शनों के प्रति मोदी सरकार के रुख की वजहर से भारत के धर्मनिरपेक्ष और समावेशी स्वरूप को ख़तरा उत्पन्न हो गया।
3.मोदी सरकार ने देश की बहुलता और नागरिक अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता से ख़ुद को दूर कर लिया जिसके बिना लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता।
4.मोदी सरकार के रवैये के कारण भारत के प्रति नज़रिया बदल रहा है। अब चीन के समान भारत को भी लोकतंत्र के मुद्दे पर आलोचना झेलनी पड़ रही है।
इस रिपोर्ट में ट्रंप शासन के दौरान अमेरिकी में भी लोकतंत्र में आयी कमी को चिन्हित किया गया है लेकिन भारत को तो स्वतंत्र देशों की सूची से ही हटा दिया गया है। भारत को तिमोर-लेस्ते और सेनेगल जैसे देशों के साथ रखा गया है। 25 बड़े लोकतंत्रों में भारत का स्कोर सबसे कम है। भारत को नागरिक स्वतंत्रता की श्रेणी में 60 में से केवल 37 अंक प्राप्त हुए हैं जबकि राजनीतिक अधिकार श्रेणी में 40 में 34 अंक। इस तरह भारत को सौ में से 71 अंक मिले हैं।