तमाम विरोधों के बाद भी मोदी सरकार ने ‘सूचना का अधिकार कानून 2005’में भारी फेरबदल करते हुए ‘RTI संशोधन विधेयक’ को संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया है. अब इस विधेयक पर राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करना है. ऐसे में ख़बर है कि पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने पत्र लिख कर राष्ट्रपति से इस नये बिल पर हस्ताक्षर न करने का निवेदन किया है.
Save RTI: An Appeal To President Of India By Former CIC Shailesh Gandhi https://t.co/5XkZALx0jb
— Live Law (@LiveLawIndia) July 26, 2019
पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर ‘नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए’ सूचना के अधिकार संशोधन विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा देने की अपील की है.
गांधी ने कहा कि जब कभी सरकार ऐसी कोई सूचना उजागर नहीं करती है जिसे छूट नहीं प्राप्त है तब नागरिक आयोग के पास जाता है. इससे आयोग पर एक जिम्मेदारी आती है जिसे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए निष्पक्ष फैसला करने के लिए आरटीआई कानून के तहत सृजित किया गया है. अंतिम अपीलय प्राधिकरण सूचना आयोग है. ऐसे में उन्हें अपना कर्तव्य निष्पक्ष रूप से निभाने के लिए सरकार से स्वतंत्र रहने की जरूरत है.’’
2009 से 2012 तक केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्त रहे शैलेष गांधी का कहना है कि इस संशोधन के ज़रिये सरकार आरटीआई क़ानून में अन्य संशोधन करने का रास्ता खोल रही है.
रामनाथ कोविंद उस स्थायी समिति के सदस्य थे जिसने सूचना के अधिकार विधेयक,2004 को अंतिम रूप दिया था और सूचना आयोग को चुनाव आयोग के समतुल्य रखने का सुझाव दिया था ताकि वे ‘स्वतंत्र रूप से और पूर्ण स्वायत्तता के साथ’ अपना कर्तव्य निभा सकें.
#SaveRTI BJD and TRS are turncoats. Let us appeal to the President to send the RTI bill back. It negates his recommendation of the Parliamentary Committee. He will not go against his conscience. pic.twitter.com/K4upwr4cXk
— Shailesh Gandhi (@shaileshgan) July 25, 2019
गौरतलब है कि, आरटीआई कार्यकर्ता इस संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं.
सरकार का कहना है कि चूंकि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का वेतन सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होती है. इस तरह मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट के बराबर हो जाते हैं. लेकिन सूचना आयुक्त और चुनाव आयुक्त दोनों का काम बिल्कुल अलग है.
सरकार का तर्क है, ‘चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 की धारा (1) के तहत एक संवैधानिक संस्था है वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत स्थापित एक सांविधिक संस्था है. चूंकि दोनों अलग-अलग तरह की संस्थाएं हैं इसलिए इनका कद और सुविधाएं उसी आधार पर तय की जानी चाहिए.’