लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो.रविकांत को ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भारी पड़ गया है। मुखर दलित चिंतक प्रो.रविकांत ने मंगलवार को एबीवीपी के उपद्रवियों के ख़िलाफ़ हज़रतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज करने का प्रार्थनापत्र दिया था, लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। उल्टा अब उनके ख़िलाफ़ ही एफआईआर दर्ज कर ली गयी है और उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है।
प्रो.रविकांत का दोष इतना था कि उन्होंने एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बहस के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और इतिहासकार पट्टाभि सीतारमैया की किताब का ज़िक्र किया था जिसमें कहा गया है कि औरंगज़ेब ने कच्छ की रानी की प्रार्थना पर काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनायी थी जिनके साथ पंडों ने मंदिर के गर्भगृह में लूटपाट की थी। पट्टाभि सीतारमैया वही हैं जिन्हें 1938 में महात्मा गाँधी ने सुभाषचंद्र बोस के ख़िलाफ़ कांग्रेस अध्यक्ष का उम्मीदवार बताया था जो हार गये थे।
पट्टाभि सीतारमैया की किताब फ़ेदर्स एंड स्टोन का वह पन्ना आप नीचे देख सकते हैं-
प्रो.रविकांत का कहना है कि आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी के लड़कों ने पट्टाभि सीतारमैया का संदर्भ हटाकर वीडियो वायरल किया जिससे वह बयान उनके नाम से लगे। उनके ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाई गयी। एक तरह से उनकी लिंचिंग की तैयारी थी। पूरे परिसर में नारेबाज़ी की गयी। जिसके बाद उन्होंने एफआईआर दर्ज करायी थी।
प्रो.रविकांत के साथ हुई घटना का पूरे देश में विरोध हुआ था। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर अभियान चलाये। लेकिन हद तो ये है कि योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने प्रो.रविकांत को सुरक्षा देने और नामज़द उपद्रवियों को गिरफ़्तार करने की जगह उनके ख़िलाफ़ ही एफआईआर दर्ज कर ली है। उनके खिलाफ़ सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने की धाराएँ लगायी गयी हैं।
सूत्रों का ये भी कहना है कि बीजेपी के कुछ नेता प्रो.रविकांत पर माफी मांगकर मामला सुलझाने का दबाव डाल रहे हें। दरअस्ल उनका दलित होना बीजेपी को असहज कर रहा है। रोहित वेमुला से लेकर जिग्नेश मेवानी तक के मामले में जिस तरह बीजेपी को बैकफुट पर जाना पड़ता है, प्रो.रविकांत उसकी ताज़ा कड़ी हो सकते हैं।