एक डॉक्टर की मौत!.. और चूंकि वह कोई फ़िल्म अभिनेता नहीं था.. (भाग 1)

‘उसके पूरे गांव-इलाके में शायद वो सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा लड़का था। हर समय परिवार के बारे में सोचता था और बेहद मेधावी था। आप उसकी रैंक देखिए – वो पढ़ाई में परेशान हो ही नहीं सकता था। उसने आखिरी बातचीत में मुझे ख़ुद बताया था कि उसके साथ, मेडिकल कॉलेज में उसके सीनियर्स बेहद अपमानजनक बर्ताव कर रहे थे…उसकी रैंक देखिए न आप NEET PG में..और एमबीबीएस में उसके मार्क्स देखिए..’

जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में आर्थोपीडिक्स विभाग से एमएस कर रहे, 28 साल के जूनियर डॉक्टर भागवत देवांगन के बारे में ये उनके पुराने और करीबी दोस्त, पुणे में उनके साथ एमबीबीएस कर चुके डॉ. विशाल गौरव कहते हैं। डॉ. भागवत देवांगन अब दुनिया में नहीं हैं, गांधी जयंती के एक दिन पहले – 1 अक्टूबर को उनका शव – हॉस्टल के कमरे में रस्सी से झूलता पाया गया। डॉ. भागवत ने पुणे के बयरामजी जीजीभाई मेडिकल कॉलेज से MBBS किया था और वे इसी साल एमएस करने जबलपुर आए थे। वे छत्तीसगढ़ के जांजागीर-चांपा के रहने वाले थे।

हम इस मृत्यु को आत्महत्या भी लिख सकते हैं पर ख़बर लिखे जाने तक पुलिस ने इस मामले में न तो कोई एफआईआर की थी और न ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ही उपलब्ध कराई गई थी। जी हां, 1 अक्टूबर से 7 दिन बाद तक, उनकी पोस्टॉमॉर्टम रिपोर्ट उनके परिवार को नहीं मिली है – जबलपुर के गढ़ा थाने की पुलिस ने मामले में कोई एफआईआर नहीं दर्ज की है, जबकि इस मामले में डॉ. भागवत के परिवार ने स्पष्ट रूप से रैगिंग-मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न-हिंसा के कारण आत्महत्या का आरोप लगाया है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर

एक आत्महत्या, कितने नैरेटिव, कौन सा सच?

इस मामले के बारे में हमको जब पहली जानकारी मिली, तो शुरुआती जांच में हमको मेडिकल कॉलेज से परस्पर विरोधाभासी जानकारियां मिलने लगी-जिनके कारण हमको लगा कि इस मामलें में सच कुछ और है और संभवतः जानबूझ कर भ्रम फैलाया जा रहा है। ये विरोधाभासी जानकारियां पहली नज़र में ही, इस मामले को रफा-दफा करने और एक नौजवान की आत्महत्या की ज़िम्मेदारी को, उसके ही ऊपर डाल देने की कोशिशों जैसी लगी। ये बातें, इस प्रकार थी –

इन सारे संस्करणों में एक बात बिल्कुल साफ दिख रही थी – मृतक की जान जाने को लेकर, उदासीनता और आत्महत्या के कारणों को लेकर अनिश्चितता के बावजूद – किसी तरह की भी शंका को दबा देने की कोशिश। एक पत्रकार के तौर पर, ऐसे तमाम मामलों में ऐसे ही शुरुआती संस्करणों को सुनते रहने के कारण, हम जानते थे कि अमूमन दो से अधिक ऐसे नैरेटिव – मामले की असल वजह को छुपाने के लिए फैलाए जाते हैं। ये ही पैटर्न, हम हाथरस के गैंगरेप के मामले में भी देख सकते हैं। लेकिन इसी के साथ, सिर्फ गिने-चुने लोगों ने बेहद स्पष्ट और दृढ़ लहजे में कहा कि भागवत ने सीनियर्स की रैगिंग से परेशान होकर अपनी जान दी है। बाकी सारे नैरेटिव्स में एक उपेक्षा, उदासीनता या डर छुपाने की कोशिश की अनिश्चितता बातचीत में ही साफ झलक रही थी। यहां तक कि ये भी कहा गया कि भागवत देवांगन अनुसूचित जाति से आते थे, जबकि वे पिछड़ी जाति से आते हैं। ये नैरेटिव भी झूठ है कि वे पढ़ने में कमज़ोर थे और उनकी रैंक कम आई थी। इस बारे में हम स्टोरी के पार्ट 2 में अहम जानकारियां साझा करेंगे।

यहां से हमने तय किया कि हमको इस मामले में शायद लंबी तफ़्तीश करनी होगी। हमने अपनी जांच को 4 अक्टूबर से शुरु किया और डॉ. भागवत देवांगन के परिवार, परिचितों, साथियों, बैचमेट्स और पुराने दोस्तों से संपर्क साधना शुरू किया। हमारी सबसे पहले बात हुई, 28 साल के भागवत के बड़े भाई प्रहलाद देवांगन से और उन्होंने पहली ही लाइन में ये कहा कि भागवत को उसके सीनियर्स बहुत ज़्यादा परेशान कर रहे थे। हमारे शक और सबसे कम लोगों द्वारा कही गई बात की ये पहली पुष्टि थी और वह भी परिवार के द्वारा। लेकिन इसके बाद जो बात हमको प्रहलाद देवांगन ने बताई, वह इस पूरे मामले की जांच में सबसे अहम बात होनी चाहिए।

यह डॉ. भागवत की आत्महत्या की पहली कोशिश नहीं थी!

भागवत देवांगन के बड़े भाई की इस बात ने हमारी रिपोर्ट को दिशा दी नहीं, बल्कि इसे सीनियर छात्रों की रैगिंग से कहीं ऊपर की ओर जाने को मजबूर कर दिया। डॉ. भागवत के भाई प्रहलाद देवांगन के मुताबिक, जुलाई 2020 में एमएस में एडमिशन के कुछ दिनों बाद ही – अचानक उनको सूचना मिली कि उनके भाई की तबीयत गंभीर है और वे आईसीयू में हैं। वे बताते हैं,

‘हमसे कभी भागवत ने ज़िक्र ही नहीं किया कि उसको ऐसे टॉर्चर किया जा रहा है। जब हम जबलपुर पहुंचे और हमको पता चला कि उसने आत्महत्या की कोशिश की है – तो हम समझ ही नहीं पा रहे थे कि ये क्या हुआ। तब जाकर हमको पता चला कि उसके साथ क्या हो रहा था।’ 

हमारे ये पूछने पर कि क्या इस बारे में उनके विभागाध्यक्ष और मेडिकल कॉलेज के प्रशासन को जानकारी थी कि उन्होंने इसलिए आत्महत्या का पहला प्रयास किया था – प्रहलाद देवांगन ने बताया कि न केवल प्रबंधन और प्रशासन को ये जानकारी थी, उनके एचओडी ने उनसे – परिवार के सामने ही कहा था कि अगर उनके साथ रैगिंग हो रही थी – तो उन्होंने एचओडी से शिकायत क्यों नहीं की?

आत्महत्या की पहली कोशिश के बाद, मेडिकल कॉलेज ने क्या किया?

जवाब है – कुछ नहीं! जुलाई 2020 में दवाएं खाकर, आत्महत्या की भागवत देवांगन की कोशिश के बाद – मेडिकल कॉलेज ने न तो पुलिस को सूचित किया, न इस मामले में कोई शिकायत दर्ज हुई – यहां तक कि कोई विभागीय जांच या कार्रवाई भी नहीं हुई। इस आत्महत्या की कोशिश की पुष्टि, डॉ. भागवत के एक करीबी मित्र ने भी हमसे की – जो कि पुणे में उनके सहपाठी ही नहीं थे बल्कि वे इस दौरान भी उनके साथ ही थे। डॉ. भागवत के इस मित्र को ही उन्होंने आत्महत्या के पहले प्रयास के बाद, सूचित किया था कि उन्होंने कुछ दवाएं खा ली हैं। लेकिन इस मामले में मेडिकल कॉलेज प्रशासन सारी जानकारी के बावजूद, क़ानूनी तौर पर अपरिहार्य कार्रवाई यानी कि पुलिस में शिकायत नहीं की। यानी कि मेडिको-लीगल केस की सूचना पुलिस को देना। 
इसके अलावा हमको किसी तरह की विभागीय जांच या कार्रवाई की जानकारी भी नहीं है। हालांकि हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के प्रशासन से संपर्क की कोशिश में हैं। उनका पक्ष मिलते ही हम इस रिपोर्ट के अगले भाग में प्रकाशित करेंगे। पर दरअसल ये विभाग और मेडिकल कॉलेज की ओर से भयानक आपराधिक लापरवाही का मामला है, क्योंकि इसमें पहली क़ानूनी प्रक्रिया का ही पालन नहीं हुआ। तो क्या ये नहीं संभव कि इस लापरवाही की भी डॉ. भागवत की जान जाने में भूमिका है? बिल्कुल माना जाना चाहिए।

आत्महत्या के बाद, पुलिस की संदिग्ध भूमिका!

इस मामले में सबसे ज़्यादा चिंताजनक पहलू है अभी तक इस मामले को लेकर, पुलिस की हीला-हवाली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर के गढ़ा थाने के अंतर्गत आता है। भागवत देवांगन के भाई ने गढ़ा थाने में रैगिंग के कारण हुए भयानक मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के कारण आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला 5 लोगों के खिलाफ़ दर्ज करने के लिए थाने में तहरीर दी हुई है। लेकिन ये ख़बर लिखे जाने तक, पुलिस ने उनको ये सूचना नहीं दी है कि कोई एफआईआर दर्ज की गई है। हम आगे अपनी रिपोर्ट में पुलिस का पक्ष भी लाने की कोशिश करेंगे। लेकिन दरअसल अभी तक डॉ. भागवत देवांगन की पोसटमॉर्टम रिपोर्ट तो छोड़िए, प्रोविज़नल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी उनके परिवार को नहीं दी गई है।

कहां है पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट?

प्रहलाद देवांगन के मुताबिक, पुलिस से पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट के बारे में पूछने पर उनको बताया गया – ‘डॉक्टर के छुट्टी पर होने के कारण, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में देर हो रही है।’ अपराध कवर करने वाले पत्रकार और पुलिसकर्मी, दोनों ही इस बहाने को बखूबी पहचानते होंगे। आत्महत्या के 7 दिन बाद तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट न आने पर ये कारण, केवल तब ही दिया जाता है, जब पुलिस अधिकारी देखते हैं कि सामने वाला गरीब है और कमज़ोर है। वरना जबलपुर मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर के छुट्टी पर जाने से अगर पोस्टमॉर्टम या रिपोर्ट बनना रुक जाते हैं और हफ्ते-हफ्ते भर तक रुके रहते हैं, तो वहां की पुलिस आख़िर अपराध को नियंत्रित कैसे कर रही है, कैसे अपराधियों को पकड़ रही है और क्या ये संभव भी है?

ख़बर लिखे जाने तक, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को लेकर भी परिवार को कोई सूचना नहीं दी गई थी। हालांकि उनके गृहराज्य छत्तीसगढ़ में इस मामले को लेकर विरोध-प्रदर्शन और श्रद्धांजलि सभाएं हुई हैं। जांच की मांग भी की जा रही है लेकिन ज़ाहिर है कि इससे मध्य प्रदेश सरकार या पुलिस को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है या फिर पुलिस पर कोई दबाव है।

तो क्या मामला रैगिंग का ही है?

हमारी 4 दिनों की जांच के बाद, हम यह बात पक्के तौर पर कह सकते हैं कि डॉ. भागवत (28), लगातार मानसिक और शारीरिक हिंसा के शिकार थे। ये उनके सीनियर्स द्वारा की जा रही थी। न केवल उनके परिवार की जबलपुर पुलिस को दी जा रही शिकायत में ये बात है, बल्कि उनके करीबी दोस्तों ने भी इस बात की हमसे पुष्टि की है कि उनके साथ भयानक उत्पीड़न किया जा रहा था। जिसका ज़िक्र उन्होंने अपने परिवार और मित्रों से किया था। इसके अलावा हमको हमारे सूत्रों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपीडिक्स विभाग के बारे में भी पुख्ता जानकारियां मिली हैं, जिससे वहां निर्बाध तरीके से – खुलेआम रैगिंग की बात सामने आती है। प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है, तो फिर उसके होने का क्या औचित्य है, ये उसे सोचना होगा – हम इस कोई भी टिप्पणी करेंगे, वो बेहद स्वाभाविक ही होगी।

सबका एक ही सवाल है…

और एक सवाल, जो डॉ. भागवत के बड़े भाई प्रहलाद देवांगन से लेकर, उनके हर मित्र ने हमसे पूछा…या यूं कहें कि हमारे ज़रिए आप सबसे और मेनस्ट्रीम मीडिया से पूछा है और वो था –

‘क्या केवल सुशांत सिंह राजपूत युवा थे? वो देश का भविष्य थे? क्या केवल उनकी मृत्यु पर न्याय चाहिए देश को? क्यों डॉ. भागवत देवांगन जैसे नौजवान की रैगिंग की वजह से की गई आत्महत्या ख़बर नहीं है? क्या देश, देश के युवा, देश की प्रतिभा और देश के भविष्य में डॉ. भागवत जैसे लोग नहीं आते?’

हम इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते थे, क्योंकि वह न्याय की सारी उम्मीदें तोड़ सकता है। लेकिन एक समाज के तौर पर हम आपके सामने ये सवाल रख देते हैं। पिछड़ी जाति के एक गरीब परिवार से निकला एक मेधावी नौजवान, संघर्ष कर रहा था – अपनी ही नहीं, अपने परिवार, अपने समाज, अपने गांव और अपनी कई पीढ़ियों की पहचान बदलने के लिए! क्या दिया हमने उसे? क्या हम वाकई इस मामले को न्याय तक पहुंचाने के इच्छुक नहीं हैं? क्या कल को हम में से किसी के घर के किसी बच्चे के साथ ऐसा नहीं हो सकता है? क्या तब भी हम केवल किसी एक ख़ास व्यक्ति के लिए न्याय के नारे लगाते रहेंगे? क्या हमारी भावनाएं, संवेदनाएं, समझ और यहां तक न्याय की प्रक्रिया को भी टीवी पर चिल्लाते आदमख़ोर एंकर तय करेंगे? 

ये इस रिपोर्ट का केवल पहला भाग है। इसके अगले पार्ट्स में कई और तथ्य हम सामने रखेंगे। इस मामले में और भी कई पहलू, हमारी इनवेस्टीगेशन के दौरान निकल कर आए, जिनके बारे में हम इस स्टोरी के पार्ट 2 में आपको बताएंगे। हम ये बात भी कहना चाहते हैं कि हम इस मामले में बेहद ज़िम्मेदारी से जांच और रिपोर्टिंग कर रहे हैं – जो हमारी ज़िम्मेदारी भी है। हम आपसे नागरिक के तौर पर आपकी ज़िम्मेदारी पर भी थोड़ी उम्मीद करते हैं। 

 

आगे के भागों में


 

ये स्टोरी मयंक सक्सेना ने की है। वे मीडिया विजिल के वर्तमान एडिटर – Audio/Visual हैं। पूर्व टीवी पत्रकार हैं, वर्तमान में मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं। मीडिया विजिल के वीडियो सेक्शन के संपादक मयंक के वीडियोज़ आप हमारे फेसबुक पेज पर देख सकते हैं।

 

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