डॉक्टर इलाज करें, संक्रमित हों और वेतन भी कटवाएं…

कोरोना वायरस जैसी महामारी के ख़िलाफ़ युद्ध में सबसे आगे के मोर्चे पर जो खड़े हैं – वो हैं वैश्विक स्तर पर हजारों स्वास्थ्यकर्मी, जो इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं । 2 अप्रैल 2020 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में एक डॉक्टर दम्पति को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया, इस जोड़े में 9 महीने की गर्भवती पत्नी की पोस्टिंग इमरजेंसी वार्ड में थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों से स्वास्थ्य कर्मियों के लिए आभार जताने के लिए ताली और थाली बजाने का जो आग्रह किया था वो जनता ने सुना लेकिन जिन स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ताली और थाली बजायी गयी, उन्हीं के द्वारा सुरक्षा उपकरण, मास्क, सैनिटाईज़र व अन्य ज़रूरी संसाधनों को उपलब्ध कराने की गुहार किसी को नहीं सुनाई दे रही है।

डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों ने ऐसा क्या मांग लिया है सरकार से?

27 मार्च 2020 को पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के जूनियर डॉक्टरों ने एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बताया था कि हम बिना ज़रूरी सुरक्षा उपकरण और मास्क के अपनी ड्यूटी कर रहे हैं । हमारे साथ काम कर रहे कई डॉक्टरों में वायरस के लक्षण दिखाई दे रहे हैं लेकिन हमारी आवाज़ कोई सुन नहीं रहा है ।

7 अप्रैल 2020 को दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में नर्सेज़ यूनियन ने अपने साथ हो रहे दोयम दर्ज़े के व्यवहार व आवश्यक पीपीई किट की भारी कमी को समाप्त करने के लिए चिट्ठी लिखी।

3 अप्रैल 2020 को सफदरजंग अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने एक पत्र लिख कर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सुरक्षा किट के साथ ही मास्क और हैंड  सैनिटाईज़र जैसे आवश्यक सामानों को डोनेट करने की मांग की थी ।

इसी तरह देश के प्रतिष्ठित अस्पतालों में गिने जाने वाले एम्स दिल्ली में भी बुनियादी सुविधाओं की मांग को लेकर रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने ज़रूरी पीपीई किट, मास्क और सैनिटाईज़र की मांग की थी । साथ ही जब अस्पताल के चिकित्साकर्मियों ने सोशल मीडिया पर इन ज़रूरी सामानों की कमी पर सरकार को ध्यान दिलाना चाहा तो उन्हें संबंधित अधिकारियों द्वारा निशाना बनाया जाने लगा ।

बिहार के स्वास्थ्य सचिव द्वारा पहले ही बताया जा चुका है कि हमने 5 लाख पीपीई किट और मास्क कि मांग की थी लेकिन मिले सिर्फ़ 4000 ही। ये प्रतिशत के आंकड़ों में 10 फीसदी भी नहीं है।

दिल्ली के हिंदूराव हॉस्पिटल में भी डॉक्टरों, नर्सों व अन्य स्टाफ़ द्वारा इस्तीफ़े दिए जा रहे हैं और इस्तीफ़े का कारण उनको आवश्यक संसाधन नहीं उपलब्ध कराया जाना है।

वैश्विक महामारी घोषित हो चुके कोरोना वायरस के मामले भारत में भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिसकी वजह से ज़रूरी सुरक्षा संसाधनों की अनुपस्थिति में स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। सरकार की तरफ़ से लगातार ये बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस से इलाज और उसके संक्रमण से बचाव के लिए सभी ज़रूरी संसाधन मौजूद हैं लेकिन देश भर के अस्पतालों द्वारा पत्र के माध्यम से सुरक्षा उपकरणों की भारी कमी को पूरा करने की मांग, सरकार के दावों को पोल खोल देती है। अप्रैल 2020 में ही ग्वालियर के 50 डॉक्टर जिन्हें कोरोना वायरस के इलाज के लिए संविदा पर रखा गया था उन्होंने भी संक्रमण के डर से अपना इस्तीफ़ा दे दिया।

डॉक्टरों और अन्य चिकित्साकर्मियों का एक दिन का वेतन काटने का फ़ैसला

एक तरफ़ तो सरकार डॉक्टरों, नर्सों और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए व्यापक स्तर पर ज़रूरी सुरक्षा उपकरण नहीं उपलब्ध करा पा रही है तो वहीं दूसरी तरफ़ एम्स, राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज और लेडी हार्डिंग मेडिकल मेडिकल कॉलेज एक नया शिगूफ़ा लेकर आ गए। इन संस्थानों ने डॉक्टरों के साथ ही अन्य मेडिकल स्टाफ़ की एक दिन की तनख्वाह काट कर उसे पीएम केयर्स फण्ड में दान देने का फ़ैसला ले लिया। वो भी बिना डॉक्टरों को भरोसे में लिए, यानी कि जो जान दे रहा है – उसकी कोई मर्ज़ी भी नहीं।

डॉक्टर्स का विरोध

इस फ़ैसले के बाद एम्स अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने अस्पताल प्रशासन से इस फ़ैसले पर फ़िर से विचार करने को कहा । उन्होंने ये भी कहा कि इस फ़ैसले को या तो पूरी तरह से स्वैच्छिक कर दें या पूरी तरह से रद्द कर दें  पीएम केयर्स फण्ड में तो देश भर से दान आ रहा है । इस दान का उपयोग स्थानीय स्तर पर ही बेहतर पीपीई व अन्य सुरक्षा उपकरण खरीदने के लिए किया जाए ।

एम्स के बाद आरएमएल हॉस्पिटल और अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के डॉक्टरों ने भी इस फ़ैसले का विरोध किया । डॉक्टर्स एसोसिएशन ने पत्र के माध्यम से आपत्ति जताने के साथ ही सैलरी नहीं काटे जाने की अपील की । उन्होंने कहा कि “डॉक्टर अपनी जान की परवाह न करते हुए इस लड़ाई को लड़ रहे हैं । जो खतरा डॉक्टर उठा रहे हैं उस पर कोई विचार न करते हुए उनकी एक दिन की तनख्वाह काटना उचित नहीं है । सैलरी काटने के बजाय डॉक्टरों को रिस्क अलाउंस दिया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना से लडाई में सबसे आगे डॉक्टर ही खड़े हैं । इसी क्रम में दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने भी एक दिन की तनख्वाह काटे जाने का विरोध किया है ।

 

डॉक्टर्स ही ख़तरे में, तो जान कौन बचाएगा?

देश में कोरोना महामारी से लड़ने वाले इन चिकित्साकर्मियों को ज़रूरी सुरक्षा किट और मास्क उपलब्ध कराये जाने के बजाय इनकी मर्जी के बगैर पीएम केयर्स फण्ड के लिए तनख्वाह काटी जाएगी तो वो इनके अधिकारों का हनन तो है ही, साथ ही ऐसे नाज़ुक समय में और ज़्यादा नाइंसाफी है। इतने पत्रों के बाद भी यदि सरकार की तरफ़ से कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए ज़रूरी सामान नहीं दिया जायेगा तो डॉक्टर और अन्य चिकित्सा कर्मी ही वायरस के संक्रमण में सबसे पहले आएंगे और ऐसा होते ही सारा हेल्थकेयर सिस्टम चौपट हो जाएगा। फ्रंटफ़ुट पर कोरोना वायरस से लड़ने वाले ये डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी जिस असुरक्षा और संसाधनों के कमी के साथ काम कर रहे हैं वो देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में सारे दावों की हवा निकाल देता है ।

ऐसे वक़्त में जब हम पिछले कई सालों से देश में विकास के दावों को दुनिया में झंडे की तरह लहराते रहे, जब हम चांद से मंगल तक जाने के लिए ज़िद पर उतारू रहे, जब हम मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया से लेकर विश्वगुरु बनने का ढोल पीटते रहे – देश में पीपीई किट्स तक उपलब्ध न होना बताता है कि चांद को सिरहाना बनाने के लिए भी, ज़मीन पर पैर टिके होना बेहद ज़रूरी है।

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