मन में कुछ करने का जज़्बा हो तो नामुमकिन को मुमकिन करने में कोई कठिनाई नहीं होती। हज़ार कठिनाइयां रास्ते में हो लेकिन मन में जज़्बा हो कुछ कर गुजरने का तो क्या मजाल कठिनाइयों की जो हमे हरा दे। ऐसे ही जज़्बे को मन में लिए दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध स्थल सियाचिन में खून जमा देने वाली ठंड के बीच आठ दिव्यांगों की टीम ने विश्व रिकॉर्ड बना डाला।
दिव्यांगों ने करीब 60 किलोमीटर की चढ़ाई पांच दिन में की पूरी..
इस ऑपरेशन का नाम है ‘ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम’, जिसमें कुछ दिव्यांगों ने सियाचिन ग्लेशियर की ऊंचाई मापकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का लक्ष्य रखा था और उसे पूरा भी कर लिया है। सेना के इस अभियान के तहत दृष्टिबाधित और पैर गंवाने वाले इन साहसी दिव्यांगों ने करीब 60 किलोमीटर की चढ़ाई पांच दिन में पूरी की। भारत सरकार ने सियाचिन ग्लेशियर को मापने के लिए दिव्यांगों की इस टीम का नेतृत्व करने के लिए ‘कॉन्कर लैंड एयर वॉटर’ (CLAW) को मंजूरी दी थी।
दिव्यांगों को सेना के विशेष बलों के दिग्गजों की एक टीम द्वारा प्रशिक्षित किया गया..
ब्लू फ्रीडम अभियान के तहत 15,632 फीट की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर पहुंचने के बाद एक ही समय में सबसे ज्यादा विकलांग लोगों के पहुंचने का विश्व रिकॉर्ड दर्ज हो गया। दृष्टिबाधित और पैर गंवा चुके लोगो अपने रोजमर्रा के कामों को करने में बहुत सारी दिक्कते का सामना करते हैं, लेकिन ऐसी ही एक टीम ने इतनी ऊंचाई पर पहुंचकर इतिहास रच दिया है। कहते है न की जब कुछ करने की चाह हो तो कोई भी मुश्किल हरा नही सकती। इस टीम को सेना के विशेष बलों के दिग्गजों की एक टीम द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। सैन्य प्रवक्ता ने बताया कि पांच दिन के इस चुनौतीपूर्ण कार्य को 7 सितंबर से शुरू कर 11 सितंबर को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।
विकलांग टीम के जज्बे को देख भारतीय सेना के जवान भी दंग..
शारीरिक और मानसिक शक्ति की मिसाल बनी विकलांग टीम के जज्बे को देख भारतीय सेना के जवान भी दंग रह गए। आठ सदस्यीय टीम को रोजाना 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। यात्रा के दौरान, चालक दल को ग्लेशियर की विशाल दरारें, स्टील जैसी कठोर बर्फीली सतह, बर्फीले पानी की धाराएं और पथरीले रास्तों पर खून जमा देने वाली ठंड का सामना करना होता था। 15 किमी की दूरी शाम 4 बजे से पहले पूरी करनी थी। दिव्यांगों की टीम जहां से भी गुजरी, उन्हें सैनिकों का स्नेह और प्रोत्साहन मिलता रहा।
यह शारीरिक ही नही बल्कि मानसिक शक्ति की थी परीक्षा..
बर्फीली हवाओं से गला सूखने लगता। इसके बावजूद, टीम ने सियाचिन ग्लेशियर पर सीढ़ी, बर्फ की सहायता और रस्सियों के साथ चलते हुए असाधारण कौशल का प्रदर्शन किया। यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक शक्ति की अनूठी परीक्षा थी, जिस पर टीम पूरी तरह से खरी उतरी।
सियाचिन को सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र माना जाता है..
60 किलोमीटर के बेहद मुश्किल सफर के साथ ही दिव्यांगों के दल ने चार हजार फुट की ऊंचाई चढ़कर विश्व रिकॉर्ड बनाया है। सियाचिन ग्लेशियर पृथ्वी पर सबसे कठोर क्षेत्रों में से एक है। इसे दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र माना जाता है। वहां का तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस रहता है। सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जहां भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।