लंबी चुप्पी के बाद आख़िरकार एडिटर्स गिल्ड ने यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे, अपने पूर्व अध्यक्ष एम.जे.अकबर की सदस्यता निलंबित कर दी। लेकिन गिल्ड की एक्ज़िक्युटिव कमेटी ने यह फ़ैसला सर्वसम्मति से नहीं बहुमत से लिया है। इस विभाजित स्थिति में मिसाल क़ायम की वरिष्ठ पत्रकार और गिल्ड की एक्ज़िक्युटिव कमेटी के सबसे नए और कमउम्र सदस्य दिलीप मंडल ने। उन्होंने अकबर के निलंबन का समर्थन किया जबकि इंडिया टुडे के संपादक के रूप में उनका चुनाव ख़ुद अकबर ने किया था।
दिलीप मंडल ने यह बात ख़ुद फ़ेसबुक पर दर्ज की है-
ज़ाहिर है, पूर्व विदेश राज्यमंत्री और रसूखवाले पत्रकार एम.जे.अकबर के ख़िलाफ़ जाकर दिलीप मंडल ने एक नैतिक आदर्श प्रस्तुत किया। वरना अहसान और भविष्य के अरमान ऐसे क़दमों पर ज़ंजीर की तरह लिपट जाते हैं। यह बात इससे भी पता चलती है कि गिल्ड ने यह फ़ैसला सर्सवसम्मति से नहीं लिया। गिल्ड के अंदर बहुत से संपादक ऐसे भी हैं जो अकबर के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं चाहते थे। क़रीब 20 महिला पत्रकारों ने अपने यौन उत्पीड़न की बेहद दर्द भरी दास्तान मीटू अभियान के तहत सोशल मीडिया पर लिखी है, लेकिन उन पर असर नहीं पड़ा। वरना क्या वजह थी कि अकबर को विदेश राज्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा, लेकिन गिल्ड की जुंबिश में महीनों लग गए?
वैसे, अकबर पर फ़ैसला लेने के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड तरुण तेजपाल को भी निलंबित करने पर मजबूर हुआ। यह हैरानी की बात है कि यौन उत्पीड़न के आरोपी तेजपाल के पर सालों से मुकदमा चल रहा है और वे जेल भी हो आए, लेकिन गिल्ड ने कभी चर्चा तक नहीं की। जब अकबर का मसला आया तो तेजपाल भी निलंबित हुए क्योंकि कुछ सदस्यों ने सवाल उठा दिया कि तेजपाल को बख्शने की वजह क्या है? फ़ैसला तो नज़ीरी होना चाहिए। आख़िरकार यही हुआ। भविष्य में अगर यौन उत्पीड़न के मामले में कोई संपादक फंसेगा तो गिल्ड से निलंबित रहेगा, जब तक कि अदालत उसे बरी नहीं कर देती। अकबर और तेजपाल पर हुए फ़ैसले की मिसाल दी जाएगी।
नीचे पढ़िए वह पत्र जिसमें एम.जे.अकबर और तरुण तेजपाल को निलंबित करने और गौतम अधिकारी से जवाब तलब करने का ‘मेजॉरिटी फ़ैसले’ की बात दर्ज है–