जनगणना में आदिवासी कॉलम की मांग-‘आदिवासी न आस्तिक हैं, न नास्तिक हैं, वे सभी वास्तविक हैं!’

जनगणना 2021 में आदिवासी/ ट्राइबल कॉलम लागू करवाने की मांग पूरे देश में लगातार रफ्तार पकड़ रही है। 2021 की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग ट्राइबल कॉलम देने की मांग को लेकर 15 मार्च को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर ”राष्ट्रीय आदिवासी इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति, भारत” के बैनर तले एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया गया।

जहां छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, असम, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र सहित झारखंड के आदिवासी अगुआ शामिल हुए। कार्यक्रम में धर्म कोड की मांग को लेकर भारत के 21 राज्यों से आदिवासी साहित्यकार, इतिहासकार, समाजिक चिंतक, समाज सेवक, बुद्धिजीवी, लेखक आदि शामिल हुए और आदिवासी धर्म कोड की मांग को काफी मजबूती से रखा।

इस अवसर पर आदिवासी जनजाति के बुद्धिजीवियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आदिवासी किसी भी परिस्थिति में हिंदू नहीं हैं। आदिवासी जनजातियों का रीति-रिवाज, पूजा-पद्धति, जन्म-विवाह-मरण संस्कार हिंदुओं से भिन्न हैं। इसलिए इसकी अस्मिता पहचान की रक्षा के लिए जनगणना 2021 के फॉर्म में आदिवासियों के लिए अलग कोड होना नितांत आवश्यक है। वक्ताओं ने कहा कि ब्रिटिश शासन काल में 1871-1941 तक की हुई जनगणना प्रपत्र में देश के आदिवासियों के लिए अलग 7वां कॉलम अंकित किया गया था, जहां देश के आदिवासी, धर्म के स्थान पर खुद को अन्य धर्म जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन से अलग मानकर 7वें कॉलम में अपना धर्म लिखते थे। परंतु देश की आजादी के बाद एक बड़ी और सोची समझी साजिश के तहत सुनियोजित तरीके से इस कॉलम को हटा दिया गया।

बुद्धिजीवियों ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम सेक्शन-2 में स्पष्ट अंकित है कि हिंदू विवाह अधिनियम शेड्यूल्ड ट्राइब्स पर लागू नहीं होता है, क्योंकि शेड्यूल्ड ट्राइब्स के पूजा व शादी विधान, हिंदू शादी विधान से अलग है। इस अवसर पर कहा गया कि देश के आदिवासी ना ही आस्तिक हैं, ना ही नास्तिक है, वे सभी वास्तविक हैं। प्रकृति की रक्षा और प्रकृति के साथ चलने वाले आदिवासी ही भारत के मूल निवासी हैं और इनका अस्तित्व और इनकी पहचान के लिए जनगणना प्रपत्र में कॉलम होना चाहिए।

विभिन्न राज्य से पहुंचे आदिवासी अगुआओं ने आह्वान करते हुए कहा कि जब तक धर्म कोड की मांग पूरी नहीं होती है, तब तक उलगुलान जारी रहेगा। धरना-प्रदर्शन के पश्चात राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, अनुसूचित जनजाति आयोग, महा रजिस्ट्रार जनगणना आयोग को ज्ञापन सौंपा गया।

धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में मुख्य रूप से राष्ट्रीय आदिवासी इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति भारत के मुख्य संयोजक अरविंद उरांव, राष्ट्रीय सह संयोजक राजकुमार कुंजाम, राष्ट्रीय आदिवासी इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति भारत के सदस्य सह पूर्व प्रोफेसर एवं आदिवासी साहित्यकार मार्गदर्शक डॉ हीरा मीणा, असिस्टेंट प्रोफेसर ​नीतीशा खलखो, निरंजना हेरेंज, धीरज भगत, तेज कुमार टोप्पो, प्रहलाद सिडाम, नारायण मरकाम, एनआर हुआर्या, गेंदशाह उयके, अरविंद शाह मंडावी, राजकुमार अरमो, सुखु सिंह मरावी, दर्शन गंझू, भरत लाल कोराम, भीम आर्मी के संदीप कुमार, टेक्निकल सेल के बिगु उरांव, विकास मिंज, रंजीत लकड़ा, अनिल उरांव, नारायण उरांव सहित देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे प्रबुद्धजन शामिल हुए।

15 मार्च के उक्त कार्यक्रम के पहले 13 मार्च को राजस्थान के गोवर्धन गाईन, गलता रोड, जयपुर में वर्ष 2021 के जनगणना प्रपत्र में आदिवासी / ट्राईबल कॉलम लागू कराने हेतु राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन का आयोजन  राजस्थान के विधायक सह राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामकेश मीणा की अध्यक्षता में किया गया।

इस राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन में उपस्थित राजस्थान विधानसभा के पांच विधायकों रामकेश मीणा, गोपाल मीणा, रामप्रसाद डिंडोर, राम कुमार राऊत एवं रफीक खान ने वहां उपस्थित देशभर के विभिन्न राज्यों से आए हुए आदिवासी प्रतिनिधियों से कहा कि वे जल्द ही अन्य विधायकों से इस मुद्दे पर विचार विमर्श कर एवं उनका समर्थन लेकर राजस्थान विधानसभा से आदिवासी / ट्राईबल धर्म कॉलम प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र को भेजेंगे, ताकि इस देश के आदिवासियों की वर्षों पुरानी मांग पूरी हो सके तथा उनको स्वतंत्र धार्मिक पहचान मिल सके।

इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों से आए हुए विभिन्न आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों ने पूरे देश के आदिवासियों से अपील किया कि वे 2021 के जनगणना प्रपत्र में अपना धर्म आदिवासी/ट्राइबल लिखें, ताकि पूरे देश के आदिवासियो को उनका धर्म कॉलम मिल सके। इस अवसर पर  राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति, भारत के तमाम प्रतिनिधि उपस्थित थे।


विशद कुमार, स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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