US में भारत के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न से जुड़ा प्रस्ताव 542 पारित करने की बढ़ी माँग

भारत में ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय पर बढ़ते हमलों को लेकर पूरी दुनिया में चिंता जाहिर की जा रही है। ख़ासतौर पर मणिपुर में जारी हिंसा के बाद अमेरिकी संसद में प्रस्ताव 542 पारित किये जाने की माँग बढ़ गयी है जो भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निंदा करता है। इसमें कहा गया है कि भारत में ईसाईयों, मुस्लिमों, सिखों, दलितों, आदिवासियों के मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है।

इंटरनेशनल क्रिश्चिय कंसर्न की ओर से भारत की स्थिति पर चिंता जतायी जा रही है। अल्पसंख्यक अधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों की ओर से कहा गया है कि यह प्रस्ताव भारत में अल्पसंख्यकों के साथ लगातार बढ़ते दुर्व्यवहार के बारे में चिंता जताता है और भारत को विशेष चिंता वाल देश (सीपीसी) के रूप में नामित करने की सिफारिश करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) पिछले चार साल से भारत को सीपीसी में नामित करने की सिफ़ारिश कर रहा है लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं हुई।

भारत के प्रधान मंत्री मोदी ने जून 2023 में  अमेरिका  की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान उन्हों अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठाने वालों को जमकर कोसा था। उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ बढ़ती हिंसा को लेकर कोई बात नहीं की थी। उल्टा जब वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि भारत में लोकांत्रिक मल्यों में जाति या पंथ के आधर पर बिल्कुल कोई भेदभाव नहीं है, जबकि अकेले 2022 में ही अल्पसंख्यों के उत्पीड़न की छह सौ से अधिक घटनायें होचुकी मोदी की यह यात्रा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हुई त्रासदियों के तुरंत बाद हुई थी, जिसमें 98 लोग मारे गए, 35,000 विस्थापित हुए और 100 से अधिक चर्च नष्ट हो गए, जिसका दुनिया भर में ईसाई समुदाय के बीच काफ़ी क्षोभ है।

अल्पसंख्यक अधिकारो के लिए सक्रिय संगठनों का कहना है कि अगर हाउस रिज़ोल्यूशन 542 पास हो जाता है तो अमेरिकी और भारतीयों ही नहीं, दुनिया भर के लोगों को स्पष्ट संकेत देगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन को बरदाश्त नहीं करता है। धार्मिक स्वतंत्रता मानवाधिकरों की सार्वभौम घोषणा और संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान दोनों के अनुसार एक बुनियादी मानवाधिकार है।

 

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