मानवाधिकार संगठनों ने लिखा उद्धव ठाकरे को पत्र- क्या आंदोलनकारियों को जेल में रखना आपकी नीति है?

देश के विभिन्न संगठनों ने जेलों में कैद साठ साल से अधिक आयु के कैदियों को आंतरिम ज़मानत या आपातकाल पैरोल दिए जाने मांग की है। इन संघठनों ने कहा है कि कोविद 19 के खतरे के मद्देनज़र गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव समेत वरिष्ठ नागरिकों की रिहाई को रिहा किया जाना चाहिए।

संगठनों ने कोविद 19 के बढ़ते संक्रमण के मद्देनज़र महाराष्ट्र की जेलों और कथित क्वरंटीन सेंटरों की दुर्दशा पर महराष्ट्र सरकार पत्र लिखा है। पत्र में वरिष्ठ मानवाधिकारवादी गौतम नवलखा द्वारा उनकी पत्नी को बताई गई बातों का हवाला देते हुए कहा गया है कि महराष्ट्र की तालोजा, धुले और यरावदा जेलों में 4 संक्रमित कैदियों की मौत हो चुकी है, जेलों में क्षमता से काफी अधिक बंदी कैद हैं। जिससे बंदियों में संक्रमण फैलने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है।

पत्र में जनपद रायगढ़ के नामदार कृष्ण गोखले हाई स्कूल स्थित क्वरंटीन सेंटर का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वहां 350 कैदियों को छः कक्षाओं में भर दिया गया है। सुविधा के नाम पर केवल तीन शौचालय, सात मूत्रालय और एक स्नान गृह जहां बाल्टी और मग तक नहीं है। लोग राहदारी और बरामदे तक में सोने को मजबूर हैं।

पत्र में वरिष्ठ नागरिकों और विभिन्न रोगों से ग्रस्त कैदियों के जीवन के खतरों को रेखांकित करते हुए महाराष्ट्र सरकार से मांग की गई है कि किसी भी अपराध में आरोपित साठ साल से अधिक आयु के कैदियों को आंतरिम ज़मानत या आपातकाल पैरोल दिया जाए। क्वरंटीन सेंटरों में विश्व स्वास्थ संगठन के क्वरंटीन मानकों को लागू किया जाए और कैदियों के परिजन से नियमित सम्पर्क की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

विभिन्न संगठनों द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र

माननीय मुख्यमंत्री,

महाराष्ट्र

विषयः महाराष्ट्र जेलों में अमानवीय हालात के मद्देनज़र तत्काल कार्यवाही की ज़रूरत

महोदय, आपातकाल की 45वीं बरसी पर, उस दिन को याद करते हुए जब देश पर आपातकाल थोप दिया गया था और राजनीतिक मतभिन्नता रखने वाले हज़ारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया था, हम महाराष्ट्र की जेलों और क्वरंटीन केंद्रों के खेदजनक और अत्यंत दयनीय हालात को आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं। कुख्यात भीमा कोरेगांव मामले में फ़साँए गए राजनीतिक कैदी गौतम नवलखा द्वारा हाल ही में वहां के हालात के बारे में सूचित किया गया था। इस मामले में जो लोग आरोपी बनाए हैं उनमें से गौतम नवलखा और वरवर राव समेत नौ को नवी मुम्बई के तालोजा केंद्रीय कारागार में रखा गया है और दो महिला कैदी बाइकुला जेल में निरुद्ध हैं।

20 जून 2020 को गौतम नवलखा ने टेलीफोन पर क्वरंटीन केंद्र में अपने अनुभव को अपनी पत्नी से साझा किए। उन्होंने सूचना दी कि खारगर (जनपद रायगढ़) स्थित नामदार कृष्ण गोखले हाई स्कूल में लगभग 350 कैदियों को रखा गया था। अधिकांश कैदियों को छः कमरों में ठूँस दिया गया था, वहीं लोग गलियारों और बरामदों में भी सो रहे थे। इससे भी बुरा यह कि 350 कैदियों के लिए मात्र 3 शौचालय, 7 मूत्रालय और 1 स्नान गृह, जिसमें न तो बाल्टी थी और न कोई मग्गा। चूंकि कैदियों को ज़्यादातर बंद रखा जाता था, इसलिए ताज़ा हवा तक उनकी रिसाई नहीं थी, न ही उनके टहलने या शारीरिक व्यायाम के लिए कोई स्थान निर्धारित किया गया था। यह महाराष्ट्र जेल नियमावली का उल्लंघन है, जो प्रति छः कैदियों के लिए कम से कम एक शौचालय और अन्य सुविधाओं समेत पूरी तरह हवादारी का प्रावधान करता है।

गौतम नवलखा

यह खौफनाक स्थिति ज़ाहिर करती है कि किस तरह क्वरंटीन केंद्र, जो असल में महामारी से बचने के लिए बनाए गए थे, अब कैदियों में वायरस फैलाने वाले प्रजनन स्थल में परिवर्तित हो रहे हैं और इस तरह जेलों के विसंकुलन के उद्देश्य ही विफल हो रहे हैं । ऐसे में, कैदियों को रिहा करने के बजाए, जेल अधिनियम 1894 की धारा 7 के अंतर्गत राज्य में 36 स्थानों को सरकार द्वारा अस्थाई जेल या क्वरंटीन केंद्र घोषित किया जाना चिंताजनक है। जेल अधिकरियों द्वारा कैदियों को हिरासत में सुरक्षित रखने के संवैधानिक दायित्व का खुलेआम हनन हो रहा है। इसके अतरिक्त, इन केंद्रों के बारे में नियमों और अधिसूचनाओं के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध न होने और नियमित संचार सुविधाओं के अभाव में, यह अस्थाई जेल ऐसी काल-कोठरियाँ बन गए हैं जहां विचाराधीन बंदी अनिश्चित काल के लिए कैद रखे जा रहे हैं।

यह भी पता चला है कि रायगढ़ में इस केंद्र में लोगों को मनमाने ढंग से 14 दिनों की क्वरंटीन अवधि से अधिक रखा जा रहा है क्योंकि तालोजा केंद्रीय कारागार नए कैदियों को समायोजित कर पाने में असमर्थ है। जानकारी के अनुसार इस जेल में पहले ही क्षमता से 1,000 अधिक कैदी हैं। राज्य में अति भीड़भाड़ वाले आठ जेलों को तालाबंद करना पड़ा है। सामाजिक दूरी के नियमों को लागू करने के लिए जेल की आबादी कम से कम दो-तिहाई घटाने की महाराष्ट्र उच्चाधिकार समिति के निर्णय का इससे दूर-दूर तक भी कोई संकेत नहीं मिलता।

भीमा कोरेगांव मामले में तीन आरोपियों सुरेंद्र गाडलिंग, अरुण फ़रेरा और वरनन गोनसालविज़ को, जो अपनी पैर्हवी खुद कर रहे हैं, अपने पांच हज़ार पृष्ठों के आरोप पत्र को जेल में रखने की जगह के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। सामान्य रूप से भी, महाराष्ट्र जेल नियमावली हर कैदी के लिए प्रत्येक शयन बैरक में कम से कम 3.71 वर्ग मीटर जगह अनिवार्य बनाती है। अब जानकारी मिली है कि आर्थर रोड जेल में 158 बंदी कोविड-19 पॉज़िटिव पाए गए हैं। इससे थोड़ा भी संदेह नहीं रह जाता कि सामाजिक दूरी के दिशा-निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और हिरासत में हज़ारों कैदियों का जीवन दाव पर लगा दिया गया है।

पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य (पीआईएल न0 5/2020) मामले में मुम्बई हाई कोर्ट द्वारा की जा रही सुनवाई में अतरिक्त पुलिस महानिदेशक और जेल एवं सुधार सेवाएं महारिनीक्षक द्वारा दाखिल जवाब के अनुसार तालोजा, धुले और येरावदा जेल में कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद चार कैदियों की मौत हो गई। तालोजा जेल में मरने वाले दो कैदियों में से एक डाइबीटीज़ से पीड़ित था। इस जेल में 277 कैदी गंभीर बीमारियों से ग्रसित बताए गए हैं जो राज्य के सभी जेलों में सबसे अधिक संख्या है। अब यह आम समझ है कि अन्य बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों को कोविड-19 के खिलाफ ख़तरा ज़्यादा है। फिर भी तालोजा जेल में रखे गए और कई बीमारियों से ग्रसित 81 वर्षीय वरवर राव की अंतरिम ज़मानत याचिका मार्च के अंत में खारिज कर दी गई। जेल अधिकारियों द्वारा उनकी मेडिकल रिपोर्ट देरी से जमा करने के कारण एनआईए न्यायालय के सामने उनकी वर्तमान ज़मानत याचिका की सुनवाई में भी विलंब हुआ है।

इसी प्रकार, डाइबीटीज़, हृदय रोग और फेफड़ों से सम्बंधित टीबी के कारण असुरक्षित होने के आधार पर सुधा भारद्वाज की अंतरिम ज़मानत अर्ज़ी भी मई के अंत में खारिज कर दी गई। पहले सुधा की बेटी को लगभग एक महीने तक उनसे बात नहीं करने दिया गया, और फिर जेल अधिकारियों ने ज़मानत का यह कहते हुए विरोध किया कि उनकी हालत “स्थिर’’ है। हालांकि, 67 वर्षीय गौतम नवलखा के मामले में जेल अधिकारियों द्वारा उनके वकील को सूचना दी गई थी कि उनकी कोविड-19 जांच की जा चुकी है और रिपोर्ट नेगेटिव है, लेकिन बाद में उन्होंने अपने परिवार को बताया कि उनकी जांच कभी की ही नहीं गई। यह बात समझ से परे है कि ऐसे विचाराधीन क़ैदियों, जिन्हें मात्र उनके असुविधाजनक विचारों के लिए कैद किया गया है, को मौत जैसी सज़ा क्यों दी जा रही है।

पीयूसीएल व अन्य की याचिका पर 16 जून को सुनवाई करते हुए मुम्बई हाई कोर्ट ने जेल महानिरीक्षक द्वारा दाखिल रिपोर्ट देखने के बाद महाराष्ट्र की जेलों की बुरी परिस्थितियों पर टिप्पणी की थी। बताये जा रहे हालात गंभीर और तात्कालिक चिंता का स्रोत हैं और राज्य की हिरासत में कैदियों के लिए बीमारी और मौत के खतरे की स्थिति उत्पन्न करते हैं।

इसके लिए हम आप से तत्काल निम्नलिखित कदम उठाने का अनुरोध करते हैंः

1-विचाराधीन या दोषी करार दिए जा चुके 60 साल से अधिक आयु वाले और अन्य बीमारियों से ग्रसित कैदियों की आतंरिम ज़मानत या पेरोल का विरोध न किया जाए, चाहे वे किसी भी अपराध के अंतर्गत कैद किए गए हों।

2-जेलों और सभी क्वरंटीन केंद्रों में बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए सामाजिक दूरी के नियमों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) के दिशा-निर्देशों के अनुसार कड़ाई से लागू किया जाए।

3-जब तक व्यक्तिगत मुलाकातें शुरू नहीं हो जातीं, तब तक कैदियों और उनके परिजनों व अधिवक्ताओं के बीच फोन और वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से नियमित और प्रभावी संपर्क सुनिश्चित किया जाए।

हस्ताक्षरकर्ताः

आल्टरनेटिव लॉ फोरम, बंगलुरू, एम्नेस्टी इंटरनेशनल, इंडिया, असोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, पंजाब, असोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स, पश्चिम बंगाल, सिविल लिबर्टीज़ कमेटी, आंध्र प्रदेश, सिविल लिबर्टीज़ कमेटी, तेलंगाना, ह्युमन राइट्स डिफेंडर्स एलर्ट, इंडिया, जम्मू कश्मीर कोलीशन ऑफ सिविल सोसाइटी, जम्मू एंड कश्मीर, नेशनल एलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट, इंडिया, पीपल्स यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, दिल्ली, प्रिज़ंस फोरम, कर्नाटक, रिहाई मंच, उत्तर प्रदेश, साउथ एशियन राइट्स डॉक्युमेंटेशन सेंटर, दिल्ली, वूमन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन, इंडिया

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