मंगलवार दोपहर दो बजे के करीब जब जाफराबाद पहुंच कर मैंने एक दोस्त को फोन किया कि भाई, मुझे इलाके के लोगों से मिलना है रिपोर्ट के सिलसिले में तो उसने रोकते हुए कहा कि भाई मेरी बात मान ले और इलाके के अंदर मत जा। हालात बहुत खराब हैं।
उसने कहा, “मैं जब में अपने घर के आस-पास अपने को सुरक्षित नहीं मानता तो तुझे कैसे कह दूं कि चल में तुझे अन्दर ले चलता हूं और जिससे मिलना है उससे मिला देता हूँ।”
पूर्वोत्तर दिल्ली के अधिकांश इलाकों का यही हाल है। जानने वाले एक दूसरे को वहां जाने से रोक रहे हैं। इस बीच कई मीडियाकर्मियों को भी इस हिन्सा का शिकार होना पड़ा जिनकी कहानी सोशल मीडिया पर तैर रही है। छोटे संस्थानों के रिपोर्टर वहां जाने से डर रहे हैं। अलग अलग संस्थानों के कई रिपोर्टरों से वहां मैंने चलने के बारे में बात की तो सबने मना किया। अधिकांश का कहना था कि एनडीटीवी जैसे संस्थान की टीम जिनके पास सभी संसाधन हैं तो हैं, उनके जैसों के साथ जब कुछ भी हो सकता है तो हमें कौन पूछेगा।
हिंसा प्रभावित पूरे इलाके का यही हाल था। हर किसी को अपनी जान का खतरा था, ऐसे में दूसरों की खबर किसे होती। प्रभावित इलाकों के अधिकांश लोग डरे हुए और उम्मीद कर रहे हैं कि हालात जल्द सुधरेंगे।
मैंने कुछ इलाकों में जाकर कुछ स्थानीय लोगों से बात की। जाफ़राबाद के असलम बात करते हुए कहते हैं, “हमलोग 40 दिन से यहां बैठे हुए हैं लेकिन कहीं कोई हिंसा नहीं हुई। और दो दिन पहले बीजेपी के कपिल मिश्र दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए भड़काने वाला भाषण देते हैं और उसी दिन हिंसा शुरू हो जाती है? ये महज इत्तेफाक तो नहीं है?”
वे बताते हैं, “बजरंग दल और उस जैसे न जाने कितने संगठन जो बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हुए हैं इलाके में आते हैं और भड़काऊ नारेबाजी करते हैं। उनके हाथों में लाठी, हॉकी स्टिक, क्रिकेट बैट और लोहे की रॉड हैं जिनसे वे लोगों को पीटते हैं, दुकानों में गाड़ियों के साथ तोड़फोड़ करते हुए जय श्रीराम, हर हर महादेव, मल्लों को मारों जैसे नारे लगाते हैं। इस सबके बीच पुलिस जिसका काम लोगों की सुरक्षा करना, शांति व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी है वो दंगाइयों और उन गुंडों का साथ देती है।”
एक स्थानीय नागरिक जावेद कहते हैं, “मैंने अपनी जिंदगी में कभी दंगे नहीं देखे थे लेकिन दो दिन में वो भी देख लिए। अब अल्लाह से यही दुआ है कि ये सब जितनी जल्दी हो सके बीत जाए।”
वे कहते हैं, “हम तो बस एक जगह शांति से बैठे हुए थे। कहीं कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिससे किसी को कोई परेशानी होती। हां, आने जाने में थोड़ी बहुत दिक्कत हो सकती थी लेकिन इसको झेला जा सकता था बस आपको हमारी, आने वाली नस्लों की थोड़ी सी फिकर होती तो। लेकिन उनको ये भी मंजूर नहीं था।”
अकील कहते हैं कि हम लोग पिछ्ले 40 दिन से नागरिकता कानून के विरोध कर रहे हैं कहीं कुछ नहीं हुआ लेकिन बीते दो दिनों में जो हुआ है उसने हमारा सब छीन लिया। हमारा व्यापार, रोजगार सब रुका हुआ था लेकिन उम्मीद थी कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा, इसी उम्मीद पर यहां बैठे हुए थे।
वे कहते हैं, “आखिर हमारी भी तो सरकार है, एक बार बात करके देखते, हमको समझाते लेकिन ऐसा क्या कि उन्होंने बात करना तक मुनासिब नहीं समझा। चुनाव के दौरान इतना सब कहा गया लेकिन हम संयम बरतते रहे लेकिन उसके बदले हमको मिला क्या? ये हिंसा, हमारे लुटे-जले हुए घर। हम हर बार, बार-बार कोशिश करते हैं जो पहचान हमारी बना दी गई है उससे छुटकारा पाएं लेकिन ऐसा सम्भव होता दिखाई नहीं देता।”
अकील रोते हुए कहते हैं आप ही देखिये न, कि कैसे कुछ लोग इस हिंसा के लिये हर जगह हमको ही दोषी ठहरा रहे हें। हमारे खिलाफ झूठा प्रचार कर रहे हैं।
पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़की हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। तीन दिनों से हो रही हिंसा में अबतक 13 लोगों की मौत हो चुकी है। 170 के करीब लोग घायल बताये जा रहे हैं। दिल्ली पुलिस के पीआरओ एमएस रंधावा ने जानकारी देते हुए कहा कि हेड कोंस्टेबल रतनलाल की मौत के अलावा पुलिस के 56 जवान घायल हैं जबकि शाहदरा के डीसीपी घायल हुए हैं।
मौजपुर, भजनपुरा, गोकुलपुरी, खजूरी खास, करावल नगर जाफराबाद, मुस्तफाबाद, बाबरपुर, चांदबाग जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इन इलाकों में मिश्रित आबादी पाई जाती है। इस कारण दोनों ही समुदाय प्रभावित हुए हैं। यहां रहने वाले लोग लगातार मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन दंगाइयों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
हिंसा की शुरुआत बीते रविवार नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई झड़प से हुई जो लगातार जारी है। सोमवार के दिन स्थिति ज्यादा गम्भीर हो गई जब बलवाइयों ने भीषण हिंसा करते हुए दुकानों, गाड़ियों और घरों में आग लगाई जिसमें सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति को जमकर नुकसान पहुंचाया।
हिंसा के चलते मौजपुर, कर्दमपुरी, चांद बाग, भजनपुरा समेत कई इलाकों में धाराआ 144 लगा दी गई। उसके बाद भी हिंसा और पत्थरबाजी की खबरें आती रहीं। इस्के बाद आने खजूरी खास सहित कई इलाकों में रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) को स्थिति नियंत्रण के लिये मैदान में उतारा गया जिसका बहुत असर नहीं हो रहा है और हिंसा लगातार जारी है। लगातार हो रही हिंसा में पुलिस और सुरक्षा बलों की भी भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है।
जाफराबाद के सुल्तान मौहम्मद का कहना है कि पुलिस तो है लेकिन दंगाइयों के साथ है। हमारी सुरक्षा के लिये नहीं। वे बताते हैं कि पुलिस के आला अधिकारी हमारे फोन तक नहीं उठाते हैं। बीती 24 तारीख की रात भीड़ ने चांदबाग की टायर मार्केट समेट कई दुकानों और घरों में घुसकर आग लगा दी जिससे पूरी की पूरी संपति जलकर राख हो गई।
दिल्ली में हो रही लगातार हिंसा के बीच उम्मीद थी कि सरकार और प्रशासन हिंसा को रोकने के लिये कोई ठोस और कड़े कार्रवाई करेगी लेकिन शाम तक ऐसी कोई खबर नहीं जिससे लगे कि सरकार हिंसा को रोकने के लिये गम्भीर है। इस बीच बीते मंगलवार को पूरे दिन कार्रवाई के नाम पर गृहमंत्री अमित शाह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल लगातार मीटिंग करते रहे। वहीं प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ अपनी बैठकों में व्यस्त रहे और दिल्ली दिनभर जलती रही। रात आठ बजे के आसपास चांद बाग में फिर से आगजनी की खबर आई जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया।
इस बीच दिन भर अफवाहों का बाजार भी गर्म रहा। दिनभर अलग अलग स्थानों से हिंसा की झूठी खबरें आती रहीं तो कभी मृतकों की संख्या को लेकर। शाम होते होते सोशल मीडिया पर एक खबर तैरने लगी जिसमें जीटीबी हॉस्पिटल के डॉक्टर के हवाले से मरने वालों की संख्या 35 तक बताई जाने लगी। वहीं दूसरी खबर कि कुछ हिंदूवादी संगठनों ने अशोक विहार की एक मस्जिद पर कब्जा कर वहां भगवा झण्डा फहरा दिया है। बाद में दिल्ली पुलिस ने इस खबर को झूठा करार दिया।
DCP North West, Delhi: Some false information/news item has been circulating regarding damage to a mosque in Ashok Vihar area. It is to clarify that no such incident has taken place in the area of Ashok Vihar. Please do not spread false information.
— ANI (@ANI) February 25, 2020