आपदा में अवसर: नोएडा में प्रवासी दलित मज़दूरों को बंधक बनाकर घर बनवाया!

कोरोना काल में एक दूसरे की मदद करने की तमाम कहानियाँ सोशल मीडिया में तैर रही हैं, लेकिन करुणा के प्रतीक गौतम बुद्ध के नाम पर बने नोएडा में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों को बँधुआ बनाकर काम कराया गया। दो महीने तक बेगार करने के बाद मध्यप्रदेश के ये प्रवासी मज़दूर, जिनमें बच्चे भी हैं, अब ज़िलाधिकारी कार्यालय पर धरना दे रहे हैं।

ये कहानी बताती है कि कोरोना और लॉकडाउन ने मज़दूर तबके के लोगों को किस तरह बर्बाद किया है। दलित पृष्ठभूमि के मज़दूरों के लिए तो हालात बेहद ख़राब हैं क्योंकि उनके पास दूसरा कोई आसरा नहीं है और न कोई जमा-पूँजी। मध्य प्रदेश के सागर जिले एवं उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले से आये दलित परिवार के इन मजदूरों की यही कहानी है। उन्हें 2020 में कोरोना महामारी के चलते अपने जिले में काम न मिलने के कारण किसी ठेकेदार का सहारा लेना पड़ा ताकि कहीं और काम मिल सके। उन्हें नहीं पता था कि इस रास्ते वे मानव तस्कर के हत्थे चढ़ने वाले हैं।

नवंबर 2020 में ये लोग संदीप खजूरिया नाम के मानव तस्कर के चक्कर में फँस गये। संदीप खजूरिया ने लगभग 13 मजदूरों, जिनमें महिलाएं एवं बच्चे सम्मिलित हैं, को नोएडा लाया और अनुज भाटी के घर पर चल रहे निर्माण कार्य में बेलदार एवं मिस्त्री के बतौर काम पर लगा दिया। इन मजदूरों ने बच्चों ने 10 मई 2021 तक क़रारी मेहनत के साथ काम किया। मालिक को उसका भवन बना कर दिया। इन मजदूर परिवारों को क्या पता था की जितनी खून पसीने की कमाई इन्होंने की है वह इनके नसीब में नहीं लिखी है। जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल पड़ती है तब संदीप खजुरिया कार्य स्थल से फरार हो गया। इधर उत्तर प्रदेश में लॉक डाउन लगने की वजह से ये मजदूर अपने कार्यस्थल पर ही फँस गये। इन मजदूरों को कोई वेतन तो छोड़िये, मालिक एवं ठेकेदार की तरफ से भोजन का खर्च भी नहीं दिया। मालिक ने साफ कह दिया कि वह मजदूरों को किसी कीमत पर मजदूरी का भुगतान नहीं करेगा। उसने मजदूरों को धमकी भी दी कि यदि वे ज्यादा बोलेंगे तो उनको कार्यस्थल पर ही मार कर दफ़न कर दिया जायेगा।

मजदूरों ने ये जानकारी 9 मई 2021 की सुबह को बंधुआ मुक्ति मोर्चा के जनरल सेक्रेटरी निर्मल गोराना को फोन पर दी। निर्मल गोराना ने शिकायत पत्र बनाकर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गौतम बुद्ध नगर एवं एसडीएम गौतम बुद्ध नगर, निदेशक चाइल्डलाइन नोएडा और डीसीपी गौतम बुद्ध नगर को ईमेल के माध्यम से दिनांक 9 मई 2021 की दोपहर जानकारी दे दी। 11 मई 2021 को सभी मजदूर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कार्यालय, गौतम बुद्ध नगर पर पहुंचे और न्याय देने के संबंध में गुहार लगाई। सभी मजदूर अपने परिवार सहित डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कार्यालय, गौतम बुद्ध नगर पर डेरा डाले हुए हैं।

रामकिशोर नाम के 17 वर्षीय बाल बंधुआ मजदूर ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ अजीत भाटी एवं संदीप खजूरिया के आदेश पर हर काम करता रहा। निर्माण कार्य में बतौर श्रमिक उसने कार्य किया, किंतु काम का दाम न मिला और परदेस में फंस गया। रतन नाम के बाल बंधुआ मजदूर ने बताया कि कोरोना महामारी में मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश तक की दौड़ करने पर और खून पसीना बहाने पर भी मजदूरी नहीं मिली।लॉकडाउन में हम किसके पास जायें, और कैसे घर जायें, कुछ नहीं पता।

सागर जिले के रहने वाले मोहन लाल अहिरवार ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उसे दोबारा बंधुआ मजदूर बनकर काम करना पड़ा। इसी गौतम बुद्ध नगर में कई वर्ष पूर्व डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने उसे निर्माणाधीन क्षेत्र से बंधुआगीरी से मुक्त करवाया था किंतु लॉडाउन में पेट की भूख ने उसको फिर से उत्तर प्रदेश आने पर मजबूर कर दिया। मोहन ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते हर व्यक्ति दया भाव दिखा रहा होगा, किंतु उत्तर प्रदेश में उल्टा ही हुआ। मालिकों ने काम लिया और मजदूरों का शोषण किया, यह हमारे साथ अन्याय है।

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के जनरल सेक्रेटरी निर्मल गोराना ने बताया की इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्क मैन एक्ट 1979 के अंतर्गत मजदूरों को उनके पैतृक गांव तक पहुंचने के लिए मार्ग एवं भोजन खर्च प्राथमिक नियोक्ता या प्रशासन की तरफ से देना चाहिए। चूंकि मजदूरों को 2 माह तक बिना मजदूरी के जबरन काम करवाया गया इसलिए सभी मजदूरों के बयान बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के तहत जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज होने चाहिए और समस्त मजदूरों को मुक्ति प्रमाण पत्र के साथ प्रति मजदूर ₹20000 की राशि, तत्काल सहायता राशि के रूप में बंधुआ मजदूरों की पुनर्वास की योजना 2016 के तहत प्रदान की जानी चाहिए।

इसी क्रम में जिला मजिस्ट्रेट को संबंधित पुलिस थाने में मालिक एवं ठेकेदार के खिलाफ बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 एवं अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत मामला दर्ज करवाना चाहिए और मजदूरों को उनकी उचित मजदूरी का भुगतान करवाना चाहिए।

दलित मज़दूरों के साथ यह व्यवहार देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में हुई है तो सुदूर इलाकों में शोषण का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है। देखना है कि प्रशासन और योगी सरकार की नींद टूटती है या नहीं।

 

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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