श्रम कानूनों पर रोक के खिलाफ 8 मई को ‘माले’ का विरोध, हाईकोर्ट जायेगा ‘वर्कर्स फ्रंट’

उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों को तीन साल तक स्थगित करने के योगी सरकार के अध्यादेश का विरोध शुरू हो गया है. भाकपा माले ने 8 मई को प्रदेश व्यापी विरोध का एलान किया है. माले का कहना है कि कोरोना सतर्कता मापदंडों का पालन करते हुए विरोध किया जाएगा. वहीं वर्कर्स फ्रंट ने राज्य सरकार के अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट जाने का फैसला किया है.

मजदूरों को बंधुआ बनाने की ओर बढ़ी यूपी सरकार- वर्कर्स फ्रंट

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा है कि उत्तर  प्रदेश में सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए लगाई रोक औद्योगिक विकास को अवरूद्ध कर देगी और इससे निवेशक भी निवेश करने से बचेंगे. दरअसल श्रम कानूनों द्वारा श्रमिकों को मिले अधिकारों के कारण उनका विश्वास व्यवस्था में बहाल रहता था और श्रम विभाग द्वारा विवाद उत्पन्न होने पर हस्तक्षेप करने से बेहतर उत्पादन के लिए अनिवार्य शर्त औद्योगिक शांति कायम रहती थी. सरकार द्वारा कानूनों को खत्म करने से औद्योगिक विवाद बढेंगे और मालिकों के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न होगा.

इसलिए सरकार को इस मजदूर विरोधी उद्योग विरोधी अध्यादेश को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और यदि सरकार वापस नहीं लेती तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जायेगा.

दिनकर कपूर ने इस फैसले की तीखी निंदा करते हुए कहा कि सरकार ने यहां तक कर दिया कि अब श्रमिक उत्पीड़न पर श्रम विभाग एक अदद नोटिस तक किसी मालिक को नहीं देगा और किसी कारखाने का निरीक्षण नहीं करेगा. यह श्रमिकों को मालिकों का बंधुआ मजदूर बना देना है. ऐसे तो नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों के लागू करने के बाद से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है. अब तो वह हाथी के दिखाने वाले दांत ही रह गए थे जिसे भी योगी सरकार ने उखाड़ दिया.

उन्होंने प्रवासी मजदूर को रोजगार देने के नाम पर इसे लागू करने के सरकार के तर्क को प्रवासी मजदूरों के साथ भद्दा मजाक कहा. प्रदेश का सच यह है कि सरकार फर्जी आकंडेबाजी करने में लगी है. गुजरात से लाखों रूपया खर्च कर आ रहे श्रमिकों को गुजरात की कारपोरेट लाबी के दबाब में मध्यप्रदेश से इस सरकार के आदेश पर वापस कर दिया गया. सरकार ने अभी महज उन्हीं मजदूरों को

उनसे किराया वसूल कर लाया है जो अन्य प्रदेशों में क्रोटांइन सेटंरों में थे. अभी भी जो मजदूर बाहर है उनके खाने तक इंतजाम नहीं हो रहा है. प्रवासी मजदूरों को लाने की कोई व्यवस्थित नीति तक सरकार के पास नहीं है. जो मजदूर प्रदेश में आ गए है उनके लिए बने क्रोटांइन सेंटरों को बंद किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि निवेश आकर्षित करने और कोरोना महामारी के दौरान बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने का सरकार का तर्क भी सही नहीं है. सभी लोग जानते है कि पिछले पंद्रह साल से प्रदेश में रही हर सरकार ने हर साल इंवेस्टर्स समिट करके निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन प्रदेश में कोई नया निवेश नहीं हुआ. तीन साल बिता चुकी इस सरकार से प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर इनके कार्यकाल में कितना निवेश हुआ. वास्तविकता तो यह है कि कई ईकाइयां खराब कानून व्यवस्था के कारण प्रदेश से चली गयीं. उन्होंने कहा कि इस काले अध्यादेश के खिलाफ मजदूरों में सोशल मीडिया के जरिए मुख्यमंत्री को पत्र भेजने का अभियान चलाया जायेगा और सहमना संगठनों के साथ व्यापक मंच तैयार कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य किया जायेगा.

श्रम कानूनों को तीन साल तक स्थगित करने का अध्यादेश अलोकतांत्रिक : माले

भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने श्रम कानूनों को तीन साल तक स्थगित करने वाले योगी सरकार के अध्यादेश को अलोकतांत्रिक बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की है. पार्टी ने इसे वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि महामारी के इस दौर में भी संघ व भाजपा साम्प्रदायिकता का वायरस फैलाने से लेकर कारपोरेट की सेवा करने और श्रमिक-विरोधी फैसले थोपने से बाज नहीं आ रही हैं.

माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा है कि कड़े संघर्षों से हासिल मजदूरों के अधिकारों पर चोट करने वाले इस अध्यादेश का औचित्य ठहराने के लिए सरकार द्वारा दयावान होने का नाटक किया गया है. मसलन, कहा गया है कि कोरोना संकट के चलते गृह राज्य लौट रहे प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तरों पर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए श्रम कानूनों को स्थगित करने की जरूरत है. यानी मजदूरों पर फायर करने के लिए उन्हें ही इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि मकसद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाना है. इस अध्यादेश के लागू होने पर उद्योगपतियों को श्रमिकों के शोषण की खुली छूट मिल जाएगी.

माले राज्य सचिव ने कहा कि इसी तरह से भाजपा शासित राज्य कर्नाटक में भी प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य ले जाने के लिए तैयार खड़ी श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को बुधवार को बिल्डरों और कारपोरेट के इशारे पर अचानक से रदद् कर घरवापसी की इच्छा रखने वाले श्रमिकों को बंधुआ मजदूर की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया गया है. यही नहीं, कई राज्यों में श्रमिकों से आठ के बजाय 12 घंटे रोजाना काम लेने के लिए कानून में बदलाव करने की कवायद की जा रही है.

माले नेता ने कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों समेत उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में कोरोना संकट की आड़ में पहले ही कटौती की गई है. जबकि इसी संकट में कारपोरेट के 68 हजार करोड़ रुपये के बैंक कर्जों की माफी दी गई है. प्रवासी श्रमिकों के पास 40 दिन से ऊपर हो चुके लॉकडाउन में न तो रोजगार है न खाने को अनाज न हाथों में पैसा है. इसके बावजूद उनसे घर वापसी के लिए ट्रेनों का किराया वसूला जा रहा है और जब इस अमानवीय कार्रवाई पर सवाल उठाये जाते हैं, तो केंद्र सरकार द्वारा 85-15 प्रतिशत की हिस्सेदारी बताकर 100 फीसदी झूठ बोला जाता है. इस झूठ में योगी सरकार की भी हां में हां है.

माले नेता ने कहा भाजपा सरकार कोरोना महामारी के चलते अर्थव्यवस्था में छाई मंदी का सारा बोझ मेहनतकशों के कंधों पर डाल देना चाहती है. महामारी के दौर में योगी सरकार निजी व सरकारी संपत्ति नुकसान प्रतिपूर्ति जैसे अध्यादेश को मंजूरी देकर नागरिकों को डराने और लोकतंत्र पर बंदिशें लगाने का काम कर रही है. वहीं मोदी सरकार कोरोना संकट की आड़ में देशवासियों पर खुफिया नजर रखने के लिए आरोग्य सेतु एप को माध्यम बना रही है. महामारी फैलाने का ठीकरा संघ-भाजपा के लोग चीन के बाद मुसलमानों पर फोड़ने का काम बखूबी कर चुके हैं.

राज्य सचिव ने कहा कि मोदी-योगी सरकार की उपरोक्त जनविरोधी कार्रवाइयों का 8 मई को कोरोना सतर्कता मापदंडों का पालन करते हुए घरों से ही प्रदेशव्यापी विरोध किया जाएगा. उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में ‘घर से काम करने (वर्क फ्रॉम होम)  की तरह ही आठ मई को ‘घर से प्रतिवाद (प्रोटेस्ट फ्रॉम होम) किया जायेगा.


विज्ञप्ति पर आधारित

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