लोक ‘तांत्रिक’ भारत ने जलते रोम में बांसुरी बजाते नीरो को पीछे छोड़ा

अपने साहब तो नीरो के भी हीरो निकले!

नीरो को भी पीछे छोड़ कर उसे साहब ने अपनी महान बैण्ड पार्टी में नौकर रख लिया है!

कबीर ने कहा है ” सत्य कहो तो लोग मारने दौड़ते हैं, झूठ कहो तो सत्य मानते है” लेकिन फिर भी चुप रहना कठिन है।

आप सब को साहब की घोषणाएं तो याद होंगी। चुनावी नहीं कोरोना वाली? याद ही होगा बड़े महोदय ने कोरोना युद्ध में सफलता के लिए पहले कहा कि एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाओ। भक्त जनों ने कुतर्क दिया कि “14 घण्टे” के कर्फ्यू से चेन ऑफ ट्रांसमिशन टूट जाएगी। मास्टर स्ट्रोक है यह। वह लागू तो हुआ लेकिन लाभ पर कोई बात न हुई! कहां हो कर्फ्यू योजना से मुदित भक्तों? लाभ गिनाओ। मैं भी तो समझूं। देश भी तो समझे!

कर्फ्यू योजना के बाद बड़े जोर से बोला गया कि थाली बजाओ। भक्तों ने कुतर्क दिया कि इसके “साउंड इफ़ेक्ट’ से कोरोना वायरस मर जाएगा। देश “नमक लगे न फिटकरी” वाले निदान से तत्काल स्वस्थ हो जाएगा। अद्भुत अगुआ मिला है देश को। ऐसा हमारे साहब ही सोच सकते हैं। ताली थाली निदान हुआ। लेकिन उससे मिले लाभ पर न साहब बात किए न साहब के गुलाम! कहां हो भक्तों ताली थाली निदान की सफलता पर कब बात होगी?

फिर साहब बोले कि दीप जलाओ। उजाला करो। साहब के महान भक्तों ने कुतर्क दिया कि इसके फ़ोटो इफ़ेक्ट से वायरस भ्रमित हो जाएगा और मर जाएगा। देश एक मोम बत्ती एक दीया से सुरक्षित हो जाएगा। तो दीया जलाओ। इसमें दिक्कत क्या है? जब एक मोमबत्ती सारा निदान कर सकती है। ऐसा निदान साहब ही ला सकते हैं। और किसी के पास यह विचार न आया। साहब महान हैं।

आप लिख कर रखें। कल से इस महान “मोम बत्ती निदान” के राष्ट्रीय लाभ पर कोई बात न करेगा। कोई सवाल न करेगा कि कोरोना पर लाइट इफेक्ट का क्या हुआ?

वैसे ही जैसे जनता कर्फ्यू का लाभ उठा कर कितने लोग कोरोना मुक्त हुए। कोई बात नहीं करेगा की ताली थाली निदान योजना से कितने लोग कोरोना मुक्त हुए। उसी तरह “दीपक योजना’ पर भी तर्क और चर्चा न होगी। हां अगली योजना अवश्य पेश की जाएगी।

आज दिन के इस वक्त तक लगभग 70 हजार लोग पूरे विश्व में कोरोना से मारे जा चुके हैं। सारा संसार शोक में डूबा है। भारत में बीते 33 दिन में केवल 9000 टेस्ट हुए हैं। लोग मारे जाएंगे पर कोरोना मरीजों की गिनती में वे शामिल नहीं होंगे।

देश में डॉक्टरों के प्राण संकट में हैं। उपचार के लिए उचित उपाय नहीं है। करोना से करीब पचासी मौतें हो चुकी है। इतने ही लोग घर जाते समय रास्ते में मारे गए हैं। सरकार “दीपक निदान” में लगे हैं!

ऐसे शोक के समय जो आंनद उत्सव मना सके उसे आप क्या कहेंगे। मेरे पास कोई उचित शब्द नहीं है। क्योंकि अपनी प्रजा के साथ ऐसा अभूत पूर्व व्यवहार इतिहास में कहीं नहीं मिलता। नीरो पीछे छूट गया है! बहुत पीछे। वह तो साहब के बैंड का केवल एक इंस्ट्रूमेंट बजाने वाला होकर रह गया है। नीरो और नीरव को साहब ने नौकर रख लिया है!

आप लोग शोक मनाएं या उत्सव। सत्तर हजार मृतकों को याद अवश्य करने। मरने के पहले और बाद में भी वे सभी मनुष्य थे! मनुष्यता की महान यात्रा में यह उत्साही उत्सव क्रूरता एक पड़ाव भर है। यात्रा जारी रहेगी!


बोधिसत्व

लेखक हिंदी के वरिष्ठ कवि और विचारक हैं।

 

 

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