‘हिंदुत्ववादी ख़तरे’ पर अमेरिका में 14 अक्टूबर को कन्वेंशन

चेतन कुमार

 

भारत में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न अब अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। यूरोप और अमेरिका में कई मानवाधिकार संगठन ख़ासतौर पर इस मुद्दे पर सक्रिय हैं। ऐसी पहल लेने में अग्रणी समझा जाने वाले इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) लोकतंत्र और मानवाधिकार के प्रश्न पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक्शन प्लान के लिए एक दिवसीय कन्वेंशन करने जा रहा है है। यह कन्वेंशन डैलस (टेक्सास) में आयोजित होने जा रहे IAMC के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान 14 अक्टूबर को बुलाया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस बात पर चिंता जतायी जा रही है कि हिटलर और मुसोलिनी की विचारधारा से प्रेरणा लेने वाले आरएसएस के निर्देशन में चलने वाली बीजेपी के राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होने के साथ-साथ भारत में अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर पर मुस्लिमों और ईसाईयों का दमन तेज़ हो रहा है। उत्तर प्रदेश सहित भारत के कई बीजेपी शासित राज्यो में क़ानून को ताक पर रखकर उनके घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चलवाये जाते हैं। हालत ये है कि पिछले साल अमेरिका के न्यूजर्सी में निकाली गयी स्वतंत्रता दिवस परेड में बुलडोज़र शामिल किया गया और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर लगायी गयी जो अल्पसंख्यकों के दमन के प्रतीक हैं। यह अमेरिका में हिंदुत्ववादी घुसपैठ का सबूत था जिसके ख़िलाफ IAMC समेत कई अन्य मानवाधिकार संगठनों ने कड़ा प्रतिवाद किया और प्रशासन को इसकी अनुमति देने के लिए खेद जताना पड़ा।

बीते जून में भारत के प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भी मानवाधिकार संगठनों ने कोशिश की थी कि राष्ट्रपति जो बाइडन भारत में मानवधिकारों और अल्पसंख्यकों के दमन का मुद्दा उठायें। 75 सांसदों ने इसके लिए खुली चिट्ठी लिखी थी। प्रेस कान्फ्रेंस से दूरी बरतने वाले प्रधानमंत्री मोदी व्हाइटहाउस में आयोजित संयुक्त प्रेस वार्ता में एक सवाल का जवाब देने को तैयार हुए थे। यह सवाल वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सबरीना सिद्दिकी ने पूछा था। उन्होंने भारत में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव पर सरकार की नीतियों को लेकर सवाल पूछा था। पीएम मोदी ने सीधा जवाब न देकर कहा था कि लोकतंत्र भारत के डीएनए में है और किसी के साथ भेदभाव नहीं होता। हैरानी की बात ये है कि उसके बाद हिंदुत्ववादी ब्रिगेड ने सबरीना सिद्दिकी की जमकर ऑनलाइन ट्रोलिंग की और उनके मुसलमान होने पर सवाल उठाया। यह एक तरह से बीजेपी शासन में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार के आरोप की पुष्टि ही थी।

हाल में राष्ट्रपति बाइडन की जी-20 सम्मेलन के लिए हुई भारत यात्रा में भी अमेरिका के पत्रकारों को सवाल पूछने का मौका नहीं दिया गया। जबकि व्हाइट हाउस का प्रेस पूल अमेरिकी राष्ट्रपति के विदेशी दौरे को विस्तार से कवर करता है और प्रेस कान्फ्रेंस भी इसका अनिवार्य हिस्सा है। मोदी सरकार के इस रवैये की अमेरिकी और यूरोप के प्रेस में काफी आलोचना हुई। जो बाइडन ने वियतनाम के होनोई पहुँचकर प्रेस कान्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ मानवाधिकारों, अल्पसंख्यकों और सिविल सोसायटी के दमन का मुद्दा उठाया था।

IAMC के मुताबिक 13-15 अक्टूबर के बीच संगठन का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित होने जा रहा है। इस बीच 14 अक्टूबर को ‘अपहोल्डिंग डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स: अ ग्लोबल कॉल टू एक्शन’ पर एक दिवसीय कन्वेंशन होगा। इस कन्वेंशन में दुनिया भर के बुद्धिजीवियों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों की भागीदारी होगी। कन्वेंशन में बढ़ते हिंदुत्ववादी ख़तरे से निपटने और नयी पीढ़ी को इसके असर से बचाने के उपायों और कार्यक्रमों पर चर्चा होगी। अमेरिका से करीब एक हज़ार प्रतिनिधि सम्मेलन में भागीदारी करेंगे।

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

 

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