कठुआ मामले के बाद सरकार ने प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 में संशोधन करते हुए इसके प्रावधानों को और कड़ा कर दिया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मंत्री के अनुसार कड़े कानून बना कर बच्चों के साथ हो रहे रेप जैसे जघन्य अपराधों को रोका जा सकता है। सरकार ने पोक्सो एक्ट में संशोधन करते हुए इसको अध्यादेश के रूप में लागू कर दिया है।
सिविल सोसायटी के सदस्यों और तमाम कानूनविदों द्वारा इस कानून का विरोध हो रहा है। इस कानून के विरोध में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस एपी शाह सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर, मानवाधिकार कार्यकर्ता अनुजा गुप्ता ने प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस कानून का विरोध किया।
जस्टिस एपी शाह ने पोक्सो एक्ट में किए गए बदलाव का जल्दबाजी का कदम बताया। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए शाह ने कहा कि इससे अपराध रुके न रुके लेकिन बच्चों को लाभ नहीं होने वाला। अनुजा गुप्ता ने कहा कि अपराध करने की मानसिकता को बढ़ावा देना ज्यादा बेहतर है बजाय इसके कि अपराधी को सीधे फांसी पर चढ़ा दिया जाए। यौन हिंसा में केवल लड़कियां ही नहीं ही बल्कि लड़के भी प्रभावित होते हैं और सरकार ने इस ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया।
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि कानून बनाकर अपराध नहीं रोके जा सकते। ग्रोवर ने निर्भया काण्ड के बाद जस्टिस वर्मा द्वारा बनाए कानून का हवाला दिया और पूछा की क्या इससे रेप जैसे घटनाएं रुकी हैं? ज्यादा कानून बनाना किसी समस्या का हल नहीं हैं, बल्कि जो नियम कानून पहले से हैं उनके आधार पर ही हमें काम करना चाहिए। ग्रोवर सरकार से मांग की कि ऐसे मामलों की सुनवाई जल्द संभव हो इसके लिए नए जजों को भर्ती किया जाए, नए कोर्ट स्थापित किए जाएँ और सबसे ज़रूरी कि पुलिस जो प्राथमिक स्तर पर मामले को देखती है उसको संवेदनशील बनाया जाए। बच्चों के साथ यौन अपराध के केस में ज्यादातर तो पारिवारिक या फिर सम्बन्धी होते हैं ऐसे में ज़रूरी है कि उनको सामने लाया जाए। ज्यादा कानूनों को बनाने के बजाय जो कानून पहले हैं उनके क्रियान्वन पर जोर दिया जाए।
12 साल तक के बच्चों के साथ हो रही रेप जैसी जघन्य वारदातों को रोकने और अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए सरकार ने नाबालिग बच्चों के सरंक्षण के लिए बने कानून प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (पोक्सो एक्ट) में बदलाव करते हुए अपराधियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है।
पोक्सो एकट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के यौन अपराध (छेड़छाड़ से लेकर रेप जैसा जघन्य अपराध शामिल है) यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।
2012 में बने इस कानून के तहत पहले अपराधियों को अधिकतम 7 साल की सजा और आर्थिक दंड का प्रावधान किया था जिसको अब संशोधित कर अधिकतम फांसी की सजा तक बढ़ा दिया गया है। इस कानून के दाएरे में 0-12 साल तक के बच्चों को शामिल किया गया है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल भारती ली ने बताया कि अध्यादेश के लागू होने के पहले सेव द चिल्ड्रन संस्था के तहत 196 लोगों द्वारा हस्ताक्षरित एक मेमोरेंडम माननीय राष्ट्रपति जी दिया गया था जिससे की इस अध्यादेश को कानून बनने से रोका जा सके. लेकिन राष्ट्रपति ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।