केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ और उसके ट्रस्टियों के खिलाफ़ विदेशी अनुदान प्राप्त करने के मामले में विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010, (एफसीआरए) उल्लंघन के तहत केस दर्ज़ किया है. लॉयर्स कलेक्टिव सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह का एनजीओ है.
लॉयर्स कलेक्टिव के संस्थापक सदस्य अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर ने इस पर नाराज़गी और हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्हें चुप कराने की यह साजिश 2016 से चल रही है.
"Blatant attack of the right to representation", Lawyers Collective express outrage at CBI FIR @IJaising @LCHIVWRI https://t.co/xUEeZpBFa3
— Bar and Bench (@barandbench) June 18, 2019
लायर्स कलेक्टिव के द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा है कि “एफआईआर पूरी तरह से फारेन कांट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट, 2010 (एफसीआरए) के तहत उसकी प्रक्रियाओं पर आधारित है जिसमें 2016 में गृह मंत्रालय ने आदेश पारित कर लायर्स कलेक्टिव के विदेशी फंड हासिल करने की प्रक्रिया को निलंबित और रद्द कर दिया है जिसको एलसी ने बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी है, और याचिका अभी पेंडिंग है.”
We will resist this attack most foul pic.twitter.com/HlYJUHYBZI
— Indira Jaising (@IJaising) June 18, 2019
इस विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि यह एफआईआर बीजेपी से जुड़े एक संगठन लायर्स वायस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करने के बाद दर्ज करायी गयी है. इसमें नीरज नाम का एक शख्स शामिल है जो दिल्ली बीजेपी के लीगल सेल का हेड है. ट्रस्ट का कहना है कि चूंकि उसके वरिष्ठ वकील मानवाधिकारों, सेकुलरिज्म और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मसले पर खुलकर बोलते रहे हैं इसलिए उनको निशाना बनाया जा रहा है.
लॉयर्स कलेक्टिव ने इसे लीगल प्रोफेशन पर हमला करार दिया है. साथ ही वह इसे उन सभी व्यक्तियों खास कर हाशिए और उन लोगों के प्रतिनिधित्व के अधिकार पर एक कठोर हमले के रूप में देखता है, जो सत्ता की नीतियों और विचारों से असहमति रखते हैं.
बयान में कहा गया, “कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और दुनिया के हर सभ्य देश के न्यायप्रणाली का अभिन्न हिस्सा है”.
लायर्स कलेक्टिव ने इस बात पर हैरानी जताई है कि एक ऐसे संगठन द्वारा दायर याचिका के आधार पर उन्हें नोटिस जारी किया गया था जिसके खुद के पास पैन कार्ड नहीं है जबकि पीआईएल दाखिल करने के लिए इनकम सर्टिफिकेट अथवा पैन कार्ड में से किसी एक का होना अनिवार्य है.
ट्रस्ट ने बताया कि हाल के दिनों में उसने भीमा कोरेगांव और पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का मामला उठाया था जो राजनीतिक तौर पर बेहद ही संवेदनशील मामले थे. और अब इन मामलों को लेकर ही उसे निशाना बनाया जा रहा है. इंदिरा जयसिंह का कहना है कि इसके पहले उन्होंने सोहराबुद्दीन के मामले में भी पीड़ित पक्ष की वकालत की थी जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद एक आरोपी थे और अब जबकि वह गृहमंत्री बन गए हैं तो इस एफआईआर के पीछे की मंशा को समझना किसी के लिए कठिन नहीं है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सब कुछ 2016 से चला आ रहा है और हर चीज रिकार्ड पर है. ऐसे में सवाल यह बनता है कि आखिर 2016 से 2019 के बीच ऐसी क्या तब्दीली आ गयी जिसमें गृहमंत्रालय को यह कदम उठाना पड़ा. संगठन का कहना है कि वो हर फोरम पर कानून के मुताबिक अपनी रक्षा करेगा.
इंदिरा जयसिंह लोकतांत्रिक और संवैधानिक सवालों पर लगातार मुखर रही हैं और सरकार के खिलाफ खुलकर बोलती रही हैं. इंदिरा जयसिंह ने जज बीएच लोया मामले में उच्चस्तरीय जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भी जांच के पक्ष में वकालत की थी.
लायर्स कलेक्टिव का व्यक्तव्य आप यहां पढ़ सकते हैं:
STATEMENT-OF-LAWYERS-COLLECTIVE-2 (1)