DU में ऑनलाइन परीक्षाओं की ज़िद, दांव पर ग़रीब छात्रों का भविष्य- रिपोर्ट

हम अक्सर सुनते आए हैं कि समस्याएँ अपने साथ समाधान को भी ले आती हैं। दुनियाभर में जब कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन हुआ, तो तमाम क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। शिक्षा भी इससे अलग नहीं है। ऐसे में दुनियाभर के विकसित देश की सरकारें ने शिक्षा को उबारने के लिए ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित करने लगी। भारत जैसे विकासशील देशों ने भी इसका अनुसरण किया। लेकिन भारत, शहरों से ज्यादा गाँवों का देश है। यहाँ आज भी कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ टूटा-फूटा इन्टरनेट तो पहुंच गया है, लेकिन बिजली ही नहीं है। वैसी जगहों पर ऑनलाइन शिक्षा का क्या मतलब रह जाता है? वैसे भी भारत के सुदूर ग्रामीण, आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में आज भी शिक्षा की गुणवत्ता बेहद ख़राब है। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन शिक्षा का चुनाव महज़ ख़ास वर्गों के लिए – किए गए फ़ैसले से इतर कुछ नहीं प्रतीत होता।

भारत के सभी विश्वविद्यालयों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तरफ से जारी अधिसूचना में साफ तौर पर ऑनलाइन क्लासेज़ तथा एग्जाम लेने की स्वतंत्रता दी गई है। जिसका अनुसरण करते हुए देश के प्रतिष्ठित संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी ऑनलाइन ऑनलाइन क्लासेज़ के बाद ऑनलाइन एग्जाम लेने का फ़ैसला किया है। अधिसूचना जारी करते हुए विश्वविद्यालय ने कहा, यदि कोरोनोवायरस महामारी के कारण उत्पन्न गंभीर स्थिति सामान्य नहीं हुई तो ‘ओपन बुक मोड’ के माध्यम से अंतिम वर्ष के स्नातकोत्तर और स्नातक के छात्रों की परीक्षाएं आयोजित की जाएगी। परीक्षा की तिथि 1 जुलाई से निर्धारित की गई है। ये सभी परीक्षाएं दिन के तीन सत्रों में आयोजित की जाएगी, जिसमें रविवार को भी दो घंटे की अवधि की परीक्षा होगी। इस महीने के अंत तक एक डेट शीट अधिसूचित कर दी जाएगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय (फाइल इमेज)

विश्वविद्यालय के इस फैसले का चौतरफा विरोध हो रहा है। जैसाकि ऊपर कहा गया है, समस्याएँ अपने साथ समाधान भी ले आती हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर ऑनलाइन क्लासेज़ के बाद ऑनलाइन एग्जाम की पहल जिस तरह हुई, ठीक इसी तरह चौतरफा इसका विरोध भी होने लगा। डीयू के ऑनलाइन एग्जाम लेने के निर्णय के विरुद्ध विभिन्न लेफ्ट छात्र संगठनों ने ‘ट्विटर स्टॉर्म’ के माध्यम से विरोध किया। दरअसल, AISA, SFI, DSU और अन्य छात्र संगठनों ने ट्विटर पर कल दोपहर 2 बजे से लगातर कई घंटों तक #DUAgainstOnlineExams हैशटैग के बैनर तले तक़रीबन 50 हज़ार से अधिक ट्वीट्स की। ट्विटर पर यह हैशटैग कई घंटों तक भारत में दूसरे नम्बर तथा एजुकेशन श्रेणी में पहले नम्बर पर ट्रेंड करता रहा। AISA ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा, डीयू में लोकतंत्र और प्रतिरोध के इतिहास में आज एक महत्वपूर्ण दिन था। जैसे ही डीन ऑफ एग्जामिनेशन ऑनलाइन परीक्षाओं की घोषणा करने के लिए नोटिस जारी की, AISA और अन्य छात्र संगठनों ने हैशटैग #DUAgainstOnlineExams द्वारा ट्विटर स्टॉर्म के लिए एक कॉल दी। अभियान के नब्बे मिनट के भीतर छात्रों की आवाज ट्विटर पर नंबर 1 ट्रेंड कर रही थी। यह छात्र समुदाय के बीच बढ़ती एकजुटता का प्रतीक है।

ट्विटर पर छात्रों का विरोध, टॉप ट्रेंडिंग में

वहीं SFI के सुमित कटारिया ने कहा कि खुली पुस्तक परीक्षा के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है किताबें, नोट्स और अन्य अध्ययन सामग्रियों की, जो छात्रों के पास नहीं हैं। क्योकि लॉकडाउन के वजह से सभी छात्र वगैर किसी तैयारी के जैसे-तैसे अपने घरों को लौट गये।

ट्विटर स्टॉर्म के माध्यम से की गई इस प्रोटेस्ट में हजारों के संख्या में छात्रों ने भाग लिया। सभी ने अपने ट्विटर हैंडल से ऑनलाइन एग्जाम के समस्याओं संबंधी प्रश्न उठाने के साथ ऑनलाइन एग्जाम लेने के निर्णय के खिलाफ़ अपना प्रतिरोध दर्ज किया। विवि के हिंदी विभाग की छात्रा सुजाता ट्वीट कर कहती हैं, अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय को भी धैर्य धरना चाहिए। क्योंकि सभी विद्यार्थियों के पास इतनी सुविधा उपलब्ध नहीं है कि वो ऑनलाइन एग्जाम दे सके। जब बच्चे रुकने को तैयार हैं तो प्रशासन इतनी तेज़ चाल से कहाँ जाना चाहती है?

 जबकि लीला लिखती हैं, दृष्टिहीन छात्र इसके(विवि) लिए कैसे दिखाई देंगे? कश्मीर के छात्रों के बारे में क्या? उन महिला छात्रों के बारे में क्या जो असमान घरेलू कामों से बोझिल हैं? इसीलिए ऑनलाइन परीक्षा को बहिष्कार करते हैं। इसे अस्वीकार करते हैं।

लगभग डेढ़ साल से कश्मीर में इन्टरनेट की सुविधा नहीं है। अभी कुछ समय पहले 2G डेटा की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। ऐसे स्थिति में वहाँ के छात्र ऑनलाइन एग्जाम कैसे दे पाएंगे? ये प्रश्न भी छात्रों ने खूब उठाया। कायनात सरफराज अपने ट्विटर हैंडल से लिखती हैं, जम्मू-कश्मीर में रहने वाले एक यूजी छात्र ने कहा कि उसे आज #DUAgainstOnlineExams हैशटैग का उपयोग करते हुए ट्वीट करने तथा अपनी विरोध दर्ज कराने में 20 मिनट लग गए। उनके जैसे छात्र प्रश्न पत्र डाउनलोड करने, सामग्री के माध्यम से स्किम करने, उत्तर पुस्तिकाएं लिखने तथा स्कैन करके और फिर 3 घंटे के भीतर कैसे अपलोड करेंगे?

मीडियाविजिल से छात्रों की असुविधा पर बात करते हुए एसपीएम कॉलेज की छात्रा खुशबू बताती हैं, “इस वक़्त ऑनलाइन एग्जाम लेना बिलकुल भी उचित निर्णय नहीं है क्योंकि अधिकतर छात्र अपने घर हैं, जिसके वजह से अधिकतर के पास पर्याप्त अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं है। ऐसे में हम कैसे ऑनलाइन एग्जाम देंगे! नेट की स्थिति कितनी बुरी है, हम सब जानते ही हैं। जब हमें एग्जाम के नाम पर फोर्मलिटिज ही पूरी करनी है तो छात्रों को सीधे अगले चरण में भेज देना चाहिए। ऐसे एग्जाम का क्या मतलब!”

वहीं डीयू के शोध छात्रों ने भी यूजी-पीजी छात्रों के साथ सॉलिडैरिटी दिखाई हैं। पीएचडी कर रही शोध छात्र एकता बताती हैं, “ऑनलाइन माध्यमों से परीक्षा लिए जाने की जो बात चल रही है, वह पूर्णतः अव्यवहारिक है और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी इन परीक्षाओं का विरोध करते हुए विद्यार्थियों के साथ सॉलिडैरिटी में खड़े हैं। दूर दराज़ के विद्यार्थी जिनकी पहली पीढ़ी विश्वविद्यालयों तक पहुँची है, उनसे ऑनलाइन परीक्षा की सामग्री (कम्प्यूटर, मोबाइल आदि) जुटाने की आशा करना बेमानी है।”

आगे वे कहती हैं, “शोधार्थियों ने अपने लम्बे विश्वविद्यालयी सफ़र में आने वाली जटिलताओं को बहुत नज़दीक से देखा है, वे उनकी भयावहता को पहचानते हैं इसलिए आर्थिक, सामाजिक, मानसिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त विद्यार्थियों के समक्ष गरीब, पिछड़े, अकेले छूट जाते विद्यार्थियों के पक्ष में खड़े हैं और ऑनलाइन परीक्षा का पुरज़ोर विरोध करते हैं।”

गौरतलब हो कि AISA द्वारा डीयू के 1600 छात्रों के बीच की गई सर्वेक्षण के अनुसार, 74 फीसदी छात्रों ने ऑनलाइन एग्जाम के खिलाफ़ अपना मत जाहिर किया हैं। जिसमें 32.4 प्रतिशत छात्रों ने पर्याप्त तकनीकी साधन, जैसे- लैपटॉप, कंप्यूटर, स्मार्टफ़ोन आदि की अनुपलब्धता तथा 29.4 छात्रों ने ऑनलाइन स्टडी मटेरियल या ई-नोट्स का उन तक नहीं पहुँच पाने जैसे कारण शामिल हैं।

ज़ाहिर है कि छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले के ख़िलाफ़ केवल एकजुट ही नहीं हैं, अगर तार्किक पहलू को समझें तो तमाम छात्र इस वक़्त या तो अपने घरों में, गांवों और छोटे शहरों में हैं। वो ऐसी जगहों पर भी फंसे हुए हैं, जहां से उनके लिए किसी भी तरह ये ऑनलाइन एक्ज़ाम देना संभव नहीं है। ऐसे में जब दुनिया एक गंभीर मानवीय संकट से जूझ रही है, दिल्ली विश्वविद्यालय महज अपने एकेडमिक कैलेंडर को क़ाग़ज़ों पर पूरा कर देना चाहता है, भले ही इसके लिए उसे ग्रामीण, कस्बाई और अभावग्रस्त वर्गों से आने वाले अपने बहुसंख्य छात्रों को परीक्षा से वंचित ही क्यों न कर देना हो। मानवीय संकट केवल कोरोना का संक्रमण नहीं है, भारत में ऐसे तमाम संस्थानों का असंवेदनशीाल रवैया भी है।

ये रिपोर्ट जगन्नाथ ‘जग्गू’ ने लिखी है, जो दिल्ली स्वतंत्र लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जगन्नाथ दिल्ली विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो भी हैं।

 

 


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