कर्नाटक के बाद अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि जो लोग शांतिपूर्ण तरीके से किसी कानून का विरोध कर रहे हैं, उन्हें राष्ट्र विरोधी और देशद्रोही नहीं कहा जा सकता. बंबई हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन के लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी थी.
The powerful Bombay High Court Order. On why anti-CAA protests aren’t by traitors. Need to protect rights. (1/2) pic.twitter.com/Zy4mNuVVPH
— Seema Chishti (@seemay) February 15, 2020
जस्टिस टीवी नलवाडे और जस्टिस एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने इफ्तिखार ज़की शेख़ की याचिका पर यह फैसला दिया है. शेख़ ने बीड़ जिले के मजलगांव में पुराने ईदगाह मैदान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अनुरोध किया था, हालांकि बीड़ के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की ओर से धारा 144 लागू किए के आदेश का हवाला देते हुए उन्हें अनुमति नहीं दी गई. अदालत ने कहा कि भले ही धारा 144 के आदेश को आंदोलनों पर लगाम लगाने के लिए लागू किया गया था, लेकिन इसका असली उद्देश्य सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को चुप कराना था.
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा कि किसी नागरिक को केवल इसलिए देशद्रोही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह किसी सरकारी कानून के खिलाफ प्रदर्शन करता है या करना चाहता है.
बेंच ने कहा कि ‘भारत को ऐसे प्रदर्शनों के कारण ही स्वतंत्रता मिली है, जो अहिंसक थे. इस अहिंसा के रास्ते को ही आज तक लोग मानते आ रहे हैं. हम खुशनसीब हैं कि इस देश के ज्यादातर लोग आज भी अहिंसा में यकीन रखते हैं.अदालत ने यह फैसला गुरुवार को सुनाया.
बता दें कि एडीएम के आदेश में बीड के पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट का हवाला दिया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि विभिन्न कारणों से हुए आंदोलनों के कारण कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होती है. याचिकाकर्ता इफ़्तेख़ार ज़की शेख को माजलगांव के पुराने ईदगाह मैदान में सीएए और एनआरसी के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अनुमति से इनकार कर दिया गया था. एडीएम के आदेश और पुलिस द्वारा अनुमति से इनकार करने को शेख ने याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी.
अदालत के आदेश को यहां पढ़ा जा सकता है :
Bombay-HC-on-CAA-agitation