कृषि क़ानूनों के खिलाफ बुलाये गये भारत बंद ने आज यह साबित कर दिया कि यह सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन नहीं है। इसका देश के 25 राज्यों में असर दिखा। करीब दस हज़ार जगह प्रदर्शन हुए। लगभग सभी विपक्षी दलों के अलावा श्रमिक संघों, महिलाओं, छात्रों, नौजवानों, लेखकों, मछुआरों, ऑटो-टैक्सी संगठनों ने भी इस बंद को समर्थन देकर क़ामयाब बनाया। दिल्ली की सरहद को घेरे बैठे किसानों ने लेकिन दिल्ली में घुसने की कोई कोशिश नहीं की। पूरी तरह शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बीच टिकरी बार्डर पर किसानों ने रक्तदान किया और सिंघू बार्डर पर शाम को मशाल जुलूस निकाला।
अरसे बाद देश में जनांदोलन जैसी सूरत बनती नज़र आ रही है। कृषि कानूनों पर सरकार ने अड़ियल रवैया अपना रखा है लेकिन किसानों ने भी साफ़ कर दिया है कि वे क़ानूनों की वापसी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव ने प्रेस कान्फ्रेंसस में कहा कि महीनों तैयारी के बाद भारत बंद बुलाया जाता है। लेकिन यह महज़ चार दिन की तैयारी में इतने व्यापक प्रभाव के साथ संपन्न हुआ। उन्होंने बताया कि हरियाण और पंजाब में तो जबरदस्त बंदी स्वाभाविक थी, लेकिन बाक़ी देश में भी व्यापक असर रहा। कर्नाटक के सौ ताल्लुकों में बदी रही और प्रदेश के सभी किसान संगठन इसमें शामिल हुए। तमिलनाडु में कावेरी डेल्टा में पड़ने वाले सभी जिलों में आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन हुए। तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र में भी व्यापक बंदी हुई।
योगेंद्र यादव ने यूपी और गुजरात जैसे बीजेपी शासित राज्यों में प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि गुजरात के डीजीपी ने आदेश निकाला था कि बंद में शामिल होने वालों की तो गिरफ्तार होगी ही जो इसकी सूचना सोशल मीडिया पर शेयर करेगा, उस पर भी कार्रवाई होगी। योगेंद्र यादव ने पूछा कि आख़िर ऐसा किस क़ानून के तहत करने की चेतावनी दी गयी है, गुजरात सरकार को बताना चाहिए।
योगेंद्र यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इसे नाक का सवाल न बनायें। इस ऐतिहासिक लड़ाई से किसानों के पीछे हटने का सवाल ही नहीं है। महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात से किसानों के जत्थे दिल्ली की ओर कूच कर चुके हैं। लड़ाई में नया उत्साह आया है। बेहतर है कि वे किसानों की बात मान लें। किसानों के सामने झुकने से कोई छोटा नहीं हो जाता।
देर शाम ख़बर आयी कि गृहमंत्री अमित शाह ने 13 किसान नेताओं को वार्ता के लिए बुलाया है। ज़ाहिर है, सरकार पर भारत बंद की सफलता का असर नज़र आ रहा है। 9 दिसंबर को अगले चरण की वार्ता पहले से तय थी, इसके बावजूद गृहमंत्री का वार्ता के लिए बुलाना बताता है कि सरकार दबाव में है। शाम को 13 संगठनों के नेता अमित शाह से बात करने दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट पहुँचे। सूत्रों के मुतबाकि बैठक में कोई फ़ैसला नहीं हो सका। तय हुआ कि सरकार कल फिर प्रस्ताव देगी। लेकिन वह कृषि क़ानून वापस नहीं लिया जाएगा। कल यानी नौ दिसंबर को होने वाली छठें दौर की वार्ता टाल दी गयी है।