मंदिर में नमाज़ पढ़कर गिरफ़्तार फ़ैसल ख़ान या योगीराज में यूपी से निकाले गये रसखान!

"सब धर्मों की सत्यता पर विश्वास रखने वाले फैसल भाई अपनी ब्रज की 84 कोसी परिक्रमा के दरम्यान एक मंदिर में थे। नमाज़ का वक्त हुआ तो पुजारी ने कहा यह भी ख़ुदा का घर है, यहीं पढ़ लीजिये। यह फैसल भाई के मनमाफ़िक बात थी। वो कृष्ण भगवान के चरणों में बैठकर अल्लाह की इबादत कर सकते हैं। उन्होंने वही किया लेकिन साम्प्रदायिक राजनीति ने उसे अपना चारा बना लिया। फैसल भाई को दिन भर कुछ न्यूज़ चैनल्स साजिशकर्ता बनाते रहे। शाम को उन्हें दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार करके बरसाना ले जाया गया।"

सैयद इब्राहीम का नाम अब किसे याद है लेकिन रसखान का नाम आते ही लोगों के सामने कृष्णभक्ति की मीनार खड़ी हो जाती है। वह बादशाह अकबर का काल था जब सैयद इब्राहीम ने गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य बनकर पूरी ज़िंदगी वृंदावन में काट दी। कृष्णभक्ति में रचे उनका काव्य रस की खान कहा जाता है। इसीलिए वे रसखान कहलाये। हालाँकि उन्होंने इस्लाम धर्म कभी नहीं छोड़ा।

लेकिन कथित रूप से आधुनिक हो चुके समाज में कोई फ़ैसल ख़ान अगर यह रास्ता पकड़े तो वह साज़िशकर्ता हो जाता है। बिहार चुनाव के दूसरे चरण के मतदान की पूर्व संध्या पर तमाम न्यूज़ चैनलों ने मथुरा के मंदिर में फ़ैसल ख़ान की नमाज़ पर जिस तरह नफ़रती पंचायतें बैठायीं वह बताता है कि सौहार्द की विरासत में ज़हर घोलने का काम किस स्तर पर हो रहा है।

फ़ैसल ख़ान को यूपी की योगी पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। 29 अक्टूबर को उन्होंने नंद बाबा के मंदिर में नमाज़ पढ़ी थी। योगी राज में यह गुनाह ही है। पुलिस बरसाना थाने मेंन फ़ैसल ख़ान, चाँद मोहम्मद, नीलेश गुप्ता और आलोक रतन के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है जिसमें समुदायों के बीच तनाव बढ़ाने, धर्मस्थल का अपमान करने और धर्म के ख़िलाफ़ आपराधिक गतिविधि से जुड़ी धाराएँ लगायी गयी हैं। ।

अब ज़रा फ़ैसल ख़ान के बारे में जान लीजिए। वे ‘ख़ुदाई ख़िदमतगार’ से जुड़े हैं। इस नाम के संगठन का स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका रही है जिसे सीमांत गाँधी के नाम से मशहूर ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार खाँ ने बनाया था। फ़ैसल ख़ान ने 2011 में इस संगठन को सक्रिय किया और शांति, भाईचारा और सद्भावना का संदेश देने वाले कार्यक्रम आयोजित करने लगे। सभी धर्मों में आस्था का संदेश देने के लिए फ़ैसल ख़ान ने ब्रज की 84 कोसी यात्रा का फ़ैसला लिया था। यात्रा के समापन के बाद वे साथियों के साथ 29 अक्टूबर को नंदबाबा के मंदिर पहुँचे थे। वहाँ पुजारियों की इजाज़त लेकर गेट नंबर दो के पास उन्होंने नमाज़ पढ़ी। साथियों ने तस्वीर खींची ताकि इसे सद्भावना के संदेश बतौर प्रसारित किया जा सके।

लेकिन सोशल मीडिया में इस तस्वीर के आते ही हंगामा हो गया। इसे ‘मंदिर पर हमले की साज़िश’ के रूप में प्रसारित किया गया। हैरान फ़ैसल ख़ान ने कहा है कि वे किसी भी तरह की जाँच के लिए तैयार हैं। उनका दावा है कि उन्होंने मंदिर के पुजारी के आग्रह के बाद वहाँ नमाज़ पढ़ी थी। उनके मुताबिक नमाज़ का वक़्त हुआ तो पुजारी जी ने कहा कि नमाज़ वहीं पढ़ी जा सकती है।तमाम लोग वहाँ मौजूद थे, किसी ने आपत्ति नहीं की। उन्हें खाना और आश्रय, दोनों ही मंदिर में मिला, पर अब राजनीतिक कारणों से विवाद हो रहा है।

फ़ैसल ख़ान सद्भभावना के लिए समर्पित ‘राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट’ से भी जुड़े हैं। फ्रंट ने उनकी गिरफ़्तारी पर यह बयान जारी किया है-

“फैसल भाई खुदाई खिदमतगार नामक संगठन के संयोजक हैं। यह संगठन सीमान्त गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे महानायक ने बनाया था। खान अब्दुल गफ्फार खान भी पाँच वक्त के नमाज़ी थे। फैसल खान भी पाँच वक्त के नमाज़ी हैं। वो मुस्लिम समाज के भीतर युवाओं को सहिष्णुता और सौहार्द का संदेश देते हैं। उनके घर पर होली, दीवाली और जन्माष्टमी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वो अक्सर गीतापाठ करके भगवान कृष्ण का संदेश सुनाते हैं।

अब यह न कट्टरपंथी मुसलमानों को सुहाता है न कट्टरपंथी हिंदुओं को। सब धर्मों की सत्यता पर विश्वास रखने वाले फैसल भाई अपनी ब्रज की 84 कोसी परिक्रमा के दरम्यान एक मंदिर में थे। नमाज़ का वक्त हुआ तो पुजारी ने कहा यह भी ख़ुदा का घर है, यहीं पढ़ लीजिये। यह फैसल भाई के मनमाफ़िक बात थी। वो कृष्ण भगवान के चरणों में बैठकर अल्लाह की इबादत कर सकते हैं। उन्होंने वही किया लेकिन साम्प्रदायिक राजनीति ने उसे अपना चारा बना लिया। फैसल भाई को दिन भर कुछ न्यूज़ चैनल्स साजिशकर्ता बनाते रहे। शाम को उन्हें दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार करके बरसाना ले जाया गया।

फैसल भाई एक जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता हैं; साम्प्रदायिक सद्भाव के अग्रदूत हैं; गांधीजी और सीमांत गांधी के अनुयायी हैं। उनको किसी भी साम्प्रदायिक साजिश में फंसाने की हर कोशिश का राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट पुरज़ोर विरोध करता है और उन्हें जल्द से जल्द रिहा करने की मांग करता है।”

फ़ैसल ख़ान जैसे लोग कुछ समय तक आमतौर पर दिखते थे, लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति ने सद्भवाना को साज़िश बना दिया है। मंदिर और मस्जिद में दूसरे धर्म वालों का सम्मान कोई नयी बात नहीं है। गोस्वामी तुलसीदार ने जब अवधी में रामचरित मानस लिखी तो काशी के पंडितों ने उन्हें अपमानित किया। तुलसी ने तब लिखा कि माँग के खा लूँगा और मस्जिद में सो जाऊँगा, पर इनसे रिश्ता नहीं रखूँगा। तब तुलसी मस्जिद में सो सकते थे और रसखान मंदिर में बैठ सकते थे, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं। तुलसी का लिखा पढ़िये–

धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ
काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब काहू की जाति बि‍गार न सोऊ
तुलसी सरनाम गुलाम है राम कौ जाके रुचै सो कहै कछु ओऊ
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो लेबे को एक न देबे को दोऊ

 

 

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