नाम- विवेक तिवारी
काम- एप्पल कंपनी में एरिया मैनेजर
इनाम- यूपी पुलिस की गोली से मौत
जगह- ‘रामराज इन मेकिंग’, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का पॉश इलाका गोमती नगर
वह दौर अब इतिहास में बिला गया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने टिप्पणी की थी- ‘पुलिस वर्दीधारी गुंडों का गिरोह है।’
अब उत्तर प्रदेश में योगी-राज है जहाँ पुलिस को ‘वर्दीधारी हत्यारों का गिरोह’ बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि रामराज पुलिस की बंदूक से निकलेगा। इसीलिए उन्होंने ‘अपराधियों के एन्काउंटर’ की नीति बनाकर सरकार के शोरूम के काउंटर पर सजा दिया। है इतने लोग मुठभेड़ों में मारे गए कि सुप्रीम कोर्ट तक को नाराज़गी ज़ाहिर करनी पड़ी।
पर योगी का रामराज का मॉडल यही है। इसमें पुलिस ही अदालत है। अपराधियों को पकड़कर अदालत से सज़ा दिलवाने की क़ानूनी प्रक्रिया को बेकार की कवायद मान लिया जाता है।
फ़ैसला तुरंत–ठाँय-ठाँय..!
यह अलग बात है कि ऐसी खुली छूट पाकर पुलिस किसी से मिलकर उसके विरोधियों का भी सफ़ाया करने लगती है। या अचानक किसी को भी गोली मार देती है। कई बार रियाज़ में और कई बार सुपारी लेकर।
एप्पल के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी का अपराध बस इतना था कि उन्होंने अपनी कार नहीं रोकी। आधी रात का वक्त था और लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर में सिपाही प्रशांत चौधरी ने उन्हें संदिग्ध मानकर गोली मार दी। गोली सिर पर लगी। इलाज के दौरान विवेक की मौत हो गई।
सुल्तानपुर के रहने वाले विवेक तिवारी ने एप्पल कंपनी के एरिया मैनेजर के पद पर पहुँचने में न जाने कितनी मशक्कत की होगी। अपने परिवार की आँखों में न जाने कितने सपने भरे होंगे, लेकिन एक सिपाही को सरकार की ओर से मिले ग़ैरक़ानूनी हौसले ने सबकी चिता जला दी। विवेक की दो बेटियों और पत्नी के सारे सपने राख हो गए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में गर्व से कहते है- अपराधियों को ऊपर पहुँचा दिया।
और अपराधी कौन? जिसे पुलिस अपराधी समझे। वरना गंभीर धाराओं में आरोप तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी हैं।
बहरहाल, लीपापोती में जुटी लखनऊ पुलिस का कहना है कि विवेक तिवारी ने कार रोकने के बजाय सिपाही की मोटरसाइकिल पर चढ़ा दी थी ।
तो?
गोली मार दोगे? क्या अगले चौराहे पर बैरीकेड नहीं लग सकता था? क्या लखनऊ पुलिस के पास वायरलेस सिस्टम नहीं है?
लखनऊ के एसएसपी कलानिदि नैथानी को ट्रेनिंग में क्या किसी योगी के मुख्यमंत्री बन जाने पर भारतीय संविधान को स्थगित करने का निर्देश मिला था? उन्होंने घटना के तुरंत बाद फ़रमाया- ” विवेक ने निकलने की कोशिश की तो पुलिस ने रोकने की कोशिश की। अचानक लगा कि गोली चली है। गा़ड़ी खंभे से टकरा गई। विवेक के सिर से खून बहने लगा। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी मौत हो गई। मौत हादसे से हुई या गोली से, इसकी जाँच की जा रही है।”
वाह एसएसपी साहब। लखनऊ पुलिस की गोली ‘अचानक’ चल जाती है। यूँ ही.अचानक..!
बहरहाल, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है। सिर पर गोली लगने की पुष्टि हो गई है। परिवार पुलिस पर सीधे हत्या का आरोप लगा रहा है। सिपाही प्रशांत चौधरी गिरफ्तार कर लिया गया है।
विवेक के साथ कार में उनकी सहयोगी सना थीं। वे उन्हें घर छोड़ने जा रहे थे। सना सच न बता दें, इसलिए पुलिस ने उन्हें शुरू में किसी से मिलने की इजाज़त नहीं दी। एक तरह से नज़रबंदी की हालत थी। पुलिस वालों ने शीशे के सामने से गोली मारी जो सिर पर लगी। अगर रोकने का इरादा होता तो टायर पर भी मार सकते थे।
वाक़ई पुलिस के लिए मुश्किल तो है। नाम विवेक था, इसलिए कथित मुख्यधारा मीडिया भी सवाल पर सवाल दाग़ रहा है। कोई ‘वसीम’ होता तो हेडलाइन होती –
‘आधी रात हुई मुठभेड़ में मारा गया आतंकवादी’
मीडिया आमतौर पर पुलिस के साथ नत्थी है। पुलिस का हौसला इतना है कि वह मुठभेड़ के पहले मीडिया को आमंत्रित करती है विज़ुअल बनाने के लिए। और मीडिया के कैमरे हँसते-बोलते पुलिस वालों को बीच-बीच मे ं गोली चलाते शूट करते हैं। बाद में किसी मकान में कुछ लाशें पड़ी दिखाई जाती हैं। हेडलाइन बनती है-मुठभेड़ में अपराधी मारे गए।
मीडिया हत्या का चश्मदीद है, पर कोई सवाल नहीं करता।
वैसे, पुलिस को हत्या का लाइसेंस देने वाले राज और समाज का ‘विवेक’ मरा हुआ ही होता है। मुठभेड़ों के नाम पर होने वाली हत्याओं पर ताली बजाने वालों को आगे चलकर ख़ुद भी क़ीमत चुकानी पड़ती है।
पुलिस के मुँह में ख़ून लगा नहीं है, लगाया गया है। वह अपराधी होती नहीं बनाई जाती है।
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी साफ़ कह रही हैं कि बड़े ज़ोर-शोर से बीजेपी की सरकार यूपी मे ंलाई गई थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से वे बहुत ख़ुश थीं। वे आकर बताएँ कि विवेक की हत्या क्यों की गई..वे कौन से आतंकवादी थे…