इलाहाबाद HC ने नये धर्म परिवर्तन क़ानून को चुनौती देने वाली PIL पर नोटिस जारी किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 ( Uttar Pradesh Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Ordinance,2020) को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है।

मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने एडवोकेट वृंदा ग्रोवर के ज़रिये दायर की गयी एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स की एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है। बेंच ने निर्देश दिया है कि अगली तारीख से पहले मामले में दलीलें पूरी कर ली जायें। मामले को 2 अगस्त, 2021 से शुरू होने वाले सप्ताह में बहस के लिए सूचीबद्ध किया गया है। इससे पहले, हाईकोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अपनी याचिकाओं को वापस लेने के लिए कहा था क्योंकि अध्यादेश को एक अधिनियम के साथ बदल दिया गया है।

इस साल फरवरी में पारित यह विवादित अधिनियम, विशेष रूप से विवाह द्वारा धर्मांतरण को अपराध मानता है। अधिनियम की धारा 3 एक व्यक्ति को विवाह द्वारा दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने से रोकती है। दूसरे शब्दों में, विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन को गैर-कानूनी बना दिया जाता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर कम से कम एक साल की कैद की सजा हो सकती है, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है और कम से कम पंद्रह हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है। यदि परिवर्तित व्यक्ति एक महिला है, तो सजा सामान्य अवधि से दोगुनी हो सकती है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यह कानून सलामत अंसारी मामले में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ की आधिकारिक घोषणा के विपरीत है। यूपी सरकार ने हालांकि दावा किया कि अध्यादेश सभी प्रकार के जबरन धर्मांतरण पर समान रूप से लागू होता है और यह केवल अंतरधार्मिक विवाह तक ही सीमित नहीं है। सरकार ने यह भी कहा कि सलामत अंसारी मामले में हाईकोर्ट के हाल के खंडपीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कानून के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करते हुए पक्षकारों को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था।

 

लाइव लॉ के इनपुट के साथ।

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