हाईकोर्ट ने योगी सरकार से पूछा- अस्पतालों में ओपीडी क्यों बंद की?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के अलावा अन्य मरीजों के इलाज को प्रतिबंधित करने की नीति पर यूपी सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार से 18 जून को ये बताने को कहा है कि अस्पतालों में ओपीडी कैसे बंद की जा सकती है. ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी, विधि छात्र विनायक मिश्र और पत्रकार विशाल तलवार द्वारा दाखिल जनहित याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह जवाब तलब किया है.

आईपीएफ ने उत्तर प्रदेश में सरकारी व निजी अस्पतालों की आईपीडी बंद करने, कोविड-19 की इलाज की अलग से व्यवस्था निर्मित करने और कोरोना योद्धा डॉक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ को सुरक्षा उपकरण देने के लिए जनहित याचिका दाखिल की थी.

इस जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की खंडपीठ ने आज सरकार से जवाब तलब किया है और बृहस्पतिवार तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. हाईकोर्ट में आइपीएफ की तरफ से अधिवक्ता प्रांजल शुक्ला ने अपना पक्ष रखा.

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा कि पिछले दिनो नोएडा के अस्पतालों के भर्ती न करने के कारण एक गर्भवती महिला की मौत चुकी है। उन्होंने कोरोनो के अलावा अन्य किसी मरीज का इलाज प्रतिबंधित करने के सरकारी आदेश को असंवैधानिक बताते हुए इस रद्द करने की मांग की।

याचिका में 23 मार्च व 31 मई, 2020 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके जरिये कोरोना के अलावा अन्य मरीजों के इलाज को सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। याचिका में मांग की गई है कि अन्य मरीजों का भी इलाज अस्पतालों में किया जाए।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी ने इसे जनता की जीत बताते हुए कहा कि एक ऐसे दौर में जब उत्तर प्रदेश में कोविड-19 की संकटकालीन परिस्थिति में सरकार की तरफ से स्वास्थ्य को लेकर बड़े-बड़े बयान दिये जा रहे हो. वहीं जमीनी स्तर पर लोग इलाज के अभाव में मर रहे हों, तब हाईकोर्ट द्वारा सरकार से जवाब तलब करना राहतभरा फैसला है.

एस आर दारापुरी ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के संज्ञान में उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा आदेश देकर सरकारी व निजी अस्पतालों को बंद करने के फैसले को लाया है. लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, आजमगढ़, बस्ती,  सोनभद्र, चंदौली समेत पूरे प्रदेश की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था से अवगत कराया है.

याचिका में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 21 और 47 हमें जीने का अधिकार और स्वास्थ्य का अधिकार देता है. सरकार का यह कर्तव्य है कि वह हर नागरिक के इस अधिकार को पूरा करे. हाईकोर्ट से अपील की गई है कि बार-बार पत्रक देने के बावजूद सरकार की तरफ से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया जा रहा है. इसलिए न्याय पाने के लिए आपका दरवाजा खटखटाने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. न्यायालय से लोगों की जिंदगी की रक्षा के लिए आदेश देने की अपील की गई है.

साथ ही याचिका में यह भी कहा गया की कोविड-19 अब हमारी जिंदगी का हिस्सा हो गया है इसलिए इसके लिए एक अलग स्वास्थ्य व्यवस्था निर्मित की जानी चाहिए.

याचिका में स्वास्थ्य कर्मियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप पीपीई किट समेत स्वास्थ्य उपकरण न देने के प्रश्न को भी उठाया गया है. यह भी संज्ञान में लाया गया है कि भाजपा व संघ के नेताओं द्वारा डॉक्टरों के ऊपर हमले हुए और सरकार की बड़ी बातों के बावजूद आजतक हमलावरों की गिरफ्तारी नहीं की गई. याचिका को संज्ञान में लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है.


 

First Published on:
Exit mobile version