हालांकि ये एक सवाल होना चाहिए कि सरकारों को जनहित के मामलों में नींद से जागने के लिए अदालतों की फटकार की ज़रूरत क्यों होती है, लेकिन ख़बर ये है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश के बाद यूपी सरकार ने अस्पतालों में ओपीडी खोलने का आदेश जारी कर दिया है। यूपी के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद द्वारा जारी 16 जून के आदेश में कहा गया है कि तत्काल प्रभाव से सभी सरकारी व निजी चिकित्सालयों में आउटडोर सुविधा शुरू की जाए। आदेश में कहा गया है कि कोविड-19 के संक्रमण के दृष्टिगत प्रदेश के समस्त चिकित्सालयों में ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गयी थीं। इससे आम जन को चिकित्सकीय उपचार के संबंध में आ रही कठिनाईयों को देखते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं प्राइवेट क्लीनिकों में सभी प्रकार की ओपीडी सेवाओं को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है।
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में मंगलवार को निर्देश के अपलोड होने के बाद सरकार हरकत में आई और अपने पुराने फैसले को बदलते हुए प्रदेश के सरकारी व निजी चिकित्सालय में ओपीडी खोलने का आदेश जारी किया। दरअसल सोमवार को हाईकोर्ट में हुई बहस के बाद मंगलवार को निर्देश अपलोड हुआ जिसमें साफ लिखा हुआ है कि सरकार को ओपीडी और आईपीडी बंद करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की खंडपीठ ने सरकार की तरफ से उपस्थित एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल से फैसले पर पुनर्विचार की बात कही थी।
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने उम्मीद जताई कि अब सरकार प्रदेश में कोविड-19 के इलाज की अलग से व्यवस्था करने का कार्य भी करेगी ताकि दिल्ली, महाराष्ट्र व गुजरात जैसे हालात का सामना प्रदेश की जनता को न करना पड़े। उन्होंने कहा कि सरकार को ओपीडी में कार्य करने वाले डाक्टरों व पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार पीपीई किट, एन 95 मास्क व सक्षम उपकरण की व्यवस्था करें।
बता दे कि सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के अलावा अन्य मरीजों के इलाज को प्रतिबंधित करने की नीति पर यूपी सरकार से जवाब मांगा था। कोर्ट ने प्रदेश सरकार से 18 जून को ये बताने को कहा था कि अस्पतालों में ओपीडी कैसे बंद की जा सकती है। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की खंडपीठ ने सरकार से बृहस्पतिवार तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा था। हाईकोर्ट में आइपीएफ की तरफ से अधिवक्ता प्रांजल शुक्ला ने अपना पक्ष रखा।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा था कि पिछले दिनो नोएडा के अस्पतालों के भर्ती न करने के कारण एक गर्भवती महिला की मौत चुकी है। उन्होंने कोरोनो के अलावा अन्य किसी मरीज का इलाज प्रतिबंधित करने के सरकारी आदेश को असंवैधानिक बताते हुए इस रद्द करने की मांग की थी।
याचिका में 23 मार्च व 31 मई, 2020 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके जरिये कोरोना के अलावा अन्य मरीजों के इलाज को सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। याचिका में मांग की गई है कि अन्य मरीजों का भी इलाज अस्पतालों में किया जाए।
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