AAP के घोषणापत्र में ‘दिल्ली जनलोकपाल बिल’ फिर पहले नंबर पर!

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के घोषणा पत्र में आम आदमी पार्टी ने ‘दिल्ली जनलोकपाल बिल’ को पहले नंबर पर जगह दी है. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने इसे पहला स्थान दिया था. पार्टी ने मंगलवार को घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल 2015 में ही पास कर दिया गया था. लेकिन केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना ये बिल अभी तक अटका हुआ है. अगर इस बार दिल्ली में आप की सरकार फिर से सत्ता में आती है तो जनलोकपाल बिल और दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का संघर्ष जोर-शोर से जारी रहेगा.

क्या हुआ जनलोकपाल बिल का ?

दिसंबर 2013 में लोकसभा और राज्यसभा में लोकपाल बिल को पारित कर दिया गया, जिसे 1 जनवरी 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी मंजूरी दे दी. लेकिन संसद में जो बिल पास हुआ वो अन्ना आंन्दोलन के दौरान प्रस्तावित जनलोकपाल बिल से कुछ अलग था. ये बिल संसद में कुछ संशोधनों के साथ पारित किया गया. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही ये पूरे देश में लागू हो गया.

लेकिन 2013 में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जनलोकपाल बिल को बिना संशोधन के दिल्ली विधानसभा में पास कराने का प्रस्ताव सदन में रखा. इस दौरान तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग लगातार दिल्ली विधानसभा स्पीकर को कहते रहे कि ये बिल विधानसभा में पेश नहीं होना चाहिए. वहीं दूसरी ओरबीजेपी और कांग्रेस पर केजरीवाल ने आरोप लगाया कि दोनों पार्टियां नहीं चाहती हैं कि जनलोकपाल बिल पास हो. अगर ऐसा होता है तो उनकी पार्टी मुश्किल में पड़ सकती है. इस पर कांग्रेस और बीजेपी का कहना था कि आप बिल को संवैधानिक प्रकिया के तहत पेश नहीं कर रही है. यही कारण है कि हम बिल का समर्थन नहीं करपा रहे हैं. उनका कहना था कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, जहां कानून और पुलिस दोनों केंद्र से होकर गुजरते हैं. इसलिए जरूरी है कि विधानसभा में बिल पेश होने से पहले केंद्र की अनुमति हो.

इधर बिना संशोधन बिल को पास न होते देख मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने धरना प्रदर्शन भी किया. इसी संदर्भ में केजरीवाल ने 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इस दौरान केंद्र में सत्ता पलट हो गई और बीजेपी सत्ता में आ गई. इसके एक साल बाद 2015 में दिल्ली में दोबारा विधानसभा चुनाव हुए. इसमें आप ने जनलोकपाल बिल को दोबारा मुद्दा बनाया और भारी बहुमत से 67 सीटों के साथ दिल्ली में दोबारा सरकार बनाई. सरकार बनने के बाद केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में बहुमत के दम पर जनलोकपाल बिल पारित कर दिया. लेकिन अभी तक यह बिल केंद्र सरकार के पास लंबित पड़ा हुआ है.

इस पर दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के विधायकों ने एक बार साल 2015 में यह कहते हुए सदन से वॉक आऊट कर दिया था कि सरकार जनलोकपाल बिल पर कोई जवाब नहीं देती है. इस पर में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदियाने कहा था कि केंद्र में बैठी बीजेपी की सरकार ही विधानसभा द्वारा पास किए जा चुके बिल पर कोई जवाब नहीं दे रही है. आप का आरोप है कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार मिलकर इस बिल को लागू नहीं करने देना चाहते हैं.

क्या अन्ना आंदोलन का जनलोकपाल बिल और ‘आप’ का जनलोकपाल बिल अलग है?

आम आदमी पार्टी के पूर्व सदस्य और अन्ना आंदोलन के दौरान जनलोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने वाले प्रशांत भूषण ने विधानसभा में आप द्वारा पास किए गए बिल की कड़ी आलोचना की थी. उनका कहना था कि आप जो बिल लेकर आई है, उस बिल और पुराने लोकपाल बिल में कोई अंतर नहीं है. जनलोकपाल बिल का आंदोलन ही इसलिए था कि लोकपाल को नियुक्त करने या हटाने में किसी भी तरीके से सरकार और संसद का कोई हस्तक्षेप न हो. हमने लोकपाल का जो ड्राफ्ट तैयार किया था, उसमें लोकपाल की चयन समिति में एक आदमी सरकार का, दो राजनेता और पांच स्वतंत्र लोग शामिल किए जाने थे.

लेकिन आप सरकार जो बिल लेकर आई है, उसमें चार में से तीन राजनेता हैं, जिनमें से दो सरकार के हैं. इसका मतलब यह हुआ कि सरकार की इजाज़त के बिना कोई लोकपाल बनाया ही नहीं सकता है. जनलोकपाल बिल में लोकपाल को सिर्फ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ही हटा सकती थी. लेकिन आप के इस बिल से सदन में दो-तिहाई बहुमत से लोकपाल को हटाया जा सकता है.

दिल्ली में क्यों लागू नहीं हो पा रहा है जनलोकपाल बिल ?

दिल्ली में जनलोकपाल लागू न हो पाने का सबसे बड़ा कारण दिल्ली का केंद्रशासित प्रदेश होना है. दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और यहां राज्य द्वारा पारित कोई भी कानून तब ही लागू हो सकता है जब उसे केंद्र सरकार अनुमति देगी. चूंकि दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित जनलोकपाल बिल केंद्र द्वारा संसद में दिसंबर 2013 में पारित बिल से अलग है. यही कारण है कि केंद्र इस बिल को पेश करते समय भी दिल्ली विधानसभा को अनुमति नहीं दे रही थी. लेकिन बिल के विधानसभा में पारित हो जाने के बाद भी उस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है.

यही कारण है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में दोबारा इसे पहला स्थान दिया है. हांलाकि सवाल ये है कि क्या दिल्ली की जनता दोबारा आम आदमी पार्टी को जनलोकपाल के मुद्दे पर वोट देगी?


तेज बहादुर सिंह IIMC के छात्र और युवा पत्रकार हैं 

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