अनिल अंबानी की एक और कंपनी दिवालिया होने की ओर, 9000 करोड़ का क़र्ज़ एनपीए घोषित

 

छोटे अंबानी, यानी अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस नेल एंड इंजीनियरिंग पर बकाया 9000 करोड़ रुपये का बैंक क़र्ज़ एनपीए (गैर निष्पादित संपत्ति) घोषित कर दिया गया है। रिलायंस नेवल, अनिल अंबानी समूह की एनपीए में डाली गई दूसरी कंपनी है. इससे पहले उनकी फ्लैगशिप कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम), एनपीए में डाली गई थी जो अब दिवालिया घोषित है।

नए नियमों के मुताबिक 2,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा के लोन डिफॉल्ट के मामलों में बैंक अधिकारियों को180 दिन के भीतर समाधान यानी प्रोविजनिंग की योजना तैयार करनी होगी। ऐसा नहीं होने पर उसे दिवालिया प्रक्रिया में ले जाना होगा। विजया बैंक ने कंपनी के कर्ज़ को मार्च तिमाही से एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया है। कंपनी केऑडिटर्स ने भी हाल ही में कंपनी के सुचारू रूप से चलने की क्षमता पर संदेह व्यक्त किया था.

इस कंपनी को पहले पीपावाव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग के नाम से जाना जाता था, जिसे बाद में 2016 में अनिल अंबानी समूह ने खरीद लिया और इसका नाम बदलकर रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग कर दिया. पिछले साल,  इसका नाम फिर से बदलकर रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग कर दिया गया था.

इस कंपनी के ऊपर आर्थिक तंगी से जूझ रहे आईडीबीआई की अगुवाई वाले दो दर्जन से अधिक बैंकों का करीब 9,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ है. ज़्यादातर क़र्ज़ देने वाले बैंक राज्य संचालित हैं।

मार्च 2017 तक रिलायंस नेवल का बकाया उधार 8,753.19 करोड़ रुपये था। मार्च 2018 तिमाही में, पिछले 12 महीनों की अवधि में इसका कुल घाटा 139.92 करोड़ रुपये से तीन गुना बढ़कर 408.68 करोड़ रुपये हो गया। मार्च 2018 तक पूरे वर्ष के लिए, पिछले साल के 523.43 करोड़ रुपये से बढ़कर इसका कुल घाटा लगभग दोगुना होकर 956.09 करोड़ रुपये हो गया।

एनपीए आख़िर है क्या ? समझने से पहले ये जान लेना चाहिए कि बैंक काम कैसे करते हैं. इसे एक उदाहरण से समझिए। मान लीजिए कि बैंक में 100 रुपये जमा हैं, तो उसमें से 4 रुपये (CRR)  रिज़र्व बैंक के पास रखा जाता है, साढ़े 19 रुपये (अभी एसएलआर 19.5 प्रतिशत है) बॉन्ड्स या गोल्ड के रूप में रखना होता है। बाकी बचे हुए साढ़े 76 रुपयों को बैंक कर्ज़ के रूप में दे सकता है। इनसे मिले ब्याज से वो अपने ग्राहकों को उनके जमा पर ब्याज का भुगतान करता है और बचा हुआ हिस्सा बैंक का मुनाफ़ा होता है।

रिज़र्व बैंक के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसंपत्ति (एसेट्स) यानी कर्ज़ से ब्याज आय मिलनी बंद हो जाती है तो उसे एनपीए माना जाता है। बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा।

पिछले साल 30 सितंबर 2017 तक सार्वजनिक बैंकों का समग्र एनपीए 7,33,974 करोड़ रुपये बताया था जिसमें करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास है। एनपीए 2014 में यह महज़ तीन लाख करोड़ रुपये था जो 2018  तक करीब 10 लाख करोड़ रुपये हो चुका है।

दिलचस्प यह है कि तमाम कॉरपोरेट कंपनियाँ सरकारी बैंकों का क़र्ज़ लेकर ख़ुशी-ख़ुशी दिवालिया हो रही हैं और कॉरपोरेट की ही एक लॉबी सरकारी बैंकों की बेहाली का हवाला देते हुए उनके निजीकरण की माँग उठा रही है।

 

एनपीए मामले में पाँचवें नंबर पर है भारत 

एनपीए के मामले में भारत दुनिया में पांचवीं रैंकिंग पर पहुंच चुका है। ब्रिक्स  देशों में तो वह शीर्ष पर है। केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 9.9 फीसदी एनपीए अनुपात के साथ पांचवें नंबर पर है। ग्रीस इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। एनपीए सूची में सबसे ऊपर रहे देशों को पिग्स यानी पीआईआईजीएस  (पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड, ग्रीस और स्पेन) के नाम से जाना जाता है। हालांकि, इसमें स्पेन सातवें स्थान पर है, जो रैंकिंग में भारत और रूस के बाद आता है।

 



 

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