कोरोना काल: सड़क पर फंसे हैं प्रवासी तो गुजरात में नाव पर फंसे 114 मछुआरे!

कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान गरीबों पर इसका सबसे अधिक असर देखा जा सकता है। प्रशासन में बैठे लोग इन सभी समस्याओं को देखना ही नहीं चाहते और तो और गरीबों की लाचारगी भी उन्हें नहीं दिखती। जैसे देश भर में लाखों प्रवासी मज़दूर सड़क पर पैदल चल रहे हैं और करोड़ों गरीब न जाने, कहां-कहां फंसे हुए हैं – ऐसे ही एक मामले में गुजरात में 114 मछुआरे, नाव पर ही फंस गए।

गुजरात मछुआरा संघ के उपाध्यक्ष लखन खेरी ने बताया कि एक नाव 114 मछुआरों को लेकर ओखा पोर्ट से नवसारी आई थी लेकिन उन मछुआरों को बोट से नीचे नहीं उतरने दिया गया। 2 दिनों तक उनके लिए भोजन, पानी और सैनिटेशन की कोई व्यवस्था नहीं उपलब्ध हुई। उनकी समस्या को लेकर प्रशासन के साथ चली लंबी बातचीत के बाद शुक्रवार को उन्हें नाव से बाहर आने दिया गया।

एक अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक जो जानकरी सामने आई है वो ये कि कोरोना वायरस के लिए एहतियात बरतते हुए इन लोगों की कोई स्क्रीनिंग न होने और सोशल डिस्टेंसिंग न फॉलो किये जाने की वजह से इन्हें नाव से उतरने नहीं दिया गया था। इनको भूखा रखा गया। पीने को पानी भी नहीं मिला। कहां एक तरफ़ सभी मछुआरे जो लॉकडाउन की वजह से अपने घरों से दूर फंसे हुए थे और अपने घर पहुंचना चाहते थे। उनको सरकारी बदइंतज़ामी के चलते दो दिन और नाव पर ही बंधक सरीखा रखा गया। 

ओखा समुद्र तट पर एक मछुआरों की नाव (प्रतीकात्मक चित्र)

इस अमानवीय कृत्य के बारे में नवसारी के प्रान्त अधिकारी का कहना है कि स्थानीय प्रशासन को इस बारे में मालूम नहीं था कि मछुआरों ने ओखा से बिना किसी अनुमति के अपना सफ़र शुरू किया। वो बिना किसी चिकित्सीय जांच के यहां पर आ पहुंचे। सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को भी नहीं माना गया। इसलिए हम उन पर क़ानूनी कार्रवाई भी करेंगे। इन मछुआरों के दो दिन तक नाव पर फंसे होने की बात पर कहा जाता है कि पहले से मिली सूचना के आधार पर मछुआरों को नाव से बाहर न आने को कहा गया था। हमें ये पता चला था कि ओखा से नवसारी के लिए 2 और नाव निकल चुकी हैं। जब हमने ये पक्का कर लिए कि अब कोई नाव नहीं है तब उन लोगों को नाव से नीचे आने दिया गया।

सड़क पर पैदल चल रहे हजारों मजदूरों की तस्वीरें आपको दिखाई देंगी। जहाँ इसी तरह की प्रशासनिक उदासीनता के कारण लोग पैदल ही कई सौ और हज़ार किलोमीटर चल कर अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं। ज़ाहिर है कि ऐसे मुश्किल वक़्त में ये मछुआरे इसीलिए पानी में उतरे होंगे कि उनको अपना घर चलाना है और उसके लिए आजीविका कमानी होगी। ऐसे में सरकारी नियम क्या कहते हैं, ये बात पेट की आग और बच्चों की बेबसी के आगे छोटी ही पड़ जाएगी। 


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हम सब कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहे हैं और अपने घरों में बंद रहने को मज़बूर हैं। इस आसन्न संकट ने समाज की गैर-बराबरी को भी सतह पर ला दिया है। पूरे देश में जगह-जगह मज़दूर फंसे हुए हैं। पहले उन्हें पैदल हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करते हुए अपने गांव की ओर बढ़ते देखा गया था। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले ही चौपट हो चुकी है, फसलें खेतों में खड़ी सड़ रही हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण दूर दराज के इलाकों से कोई ग्राउंड रिपोर्ट्स नहीं आ पा रहीं। सत्ता को साष्टांग मीडिया को तो फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन हम चाहते हैं कि मुश्किलों का सामना कर रहा ग्रामीण भारत बहस के केंद्र में होना चाहिए। 
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