विधानसभा में तकरार – मीडिया की मौज

आमने - सामने

अभी कल ही की बात है, उत्तर प्रदेश विधानसभा में अखिलेश यादव और केशवप्रसाद मौर्य के बीच एक गै़र-ज़रूरी शाब्दिक मैच चला। दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा में होने वाले हंगामों के इतिहास को देखा जाए, तो जो हुआ बहुत ही शालीन हुआ, और इतना भी ना होता, तो भई विधानसभाओं में पक्ष और विपक्ष कोई एक दूसरे को पान का बीड़ा खिलाने तो जाते नहीं हैं।

तो आखिर हुआ क्या था….?

 

अखिलेश: ये पी डब्ल्यू डी मिनिस्टर रहे, ये भूल गए, इनके ज़िले की मुख्यालय की सड़क किसने बनाई, आपने बनाई, बताइए, बताइए, फोर लेन, फोर लेन किसने बनाई, बताइए, माननीय सदस्य जी

केशव प्रसाद मौर्य: अध्यक्ष जी, माननीय अध्यक्ष जी, मैं….आप कृपा करके

स्पीकर: आपस में डिबेट नहीं करें, आपस में डिबेट नहीं करें।

के प्र मौ: कृपया करके नेता प्रतिपक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री को ये बता दीजिए, ये पांच साल सत्ता में नहीं रहे, आगे पांच साल के लिए फिर विदा हो चुके हैं, 2027 में फिर चुनाव आएगा, मैं तो यह मानता हूं कि फिर कमल खिलेगा, फिर आपका, अभी कोई भविष्य इस समय नहीं है, लेकिन सड़क किसने बनाई, एक्सप्रेस किसने बनाया है, मैट्रो किसने बनाया है, जैसे लगता है आपने सैफई की जमीन बेच करके ये सब बनवा दिया है

अखिलेश: क्या तुम अपने….तुमने घर के….तुम अपने पिताजी से पैसा लाते हो…ये बनाने के लिए….तुमने राशन बांटा तो….चुप…. क्या बात है….भप्प….भप्प…

 

इस सबके बीच, शोर-शराबा, धुल्लम-धुल्ली हुई, जो भारतीय लोकतंत्र के हर मंदिर में, फिर चाहे वो लोकसभा, राज्यसभा हो या विधानसभा, विधान परिषद हो, की सामान्य कार्यशैली होती है। जो हुआ, उसे अगर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखें तो बहुत ही शालीन तरीके से हुआ। बात का कुल जमा सार संक्षेप ये था कि न तो भाजपा और न ही सपा, अपने घर के पैसे से जनता का काम कर रहे हैं, बल्कि वो जनता के ही पैसे हैं, जिनसे तमाम निमार्ण कार्य करवाए जाते हैं। दरअसल अखिलेश यादव ने बात शुरु भी ऐसे ही की थी, किसने बनवाए से उनका तात्पर्य था, कि भई समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो उसने ये सब विकास कार्य करवाए, और अब पिछले पांच साल से भाजपा की सरकार है तो इनमें से कोई कार्य नहीं हुआ। केशव प्रसाद मौर्य ने इस बात को कुछ यूं घुमाया कि इसमें जो खर्चा हुआ वो पैसा किसका था।

विधानसभा में अक्सर ऐसा होता है, नेता प्रतिपक्ष ने पूछा कि आपने विकास कार्य क्यों नहीं कराया, उपमुख्यमंत्री जवाब नहीं दे सकता था, तो उसने कहा कि अगर तुमने कराया भी तो क्या, कोई अपना निजी पैसा तो लगाया नहीं, यानी जनता के पैसे से ही करवाया था।

वैसे इस पूरी बातचीत और धौल-धप्पे में थोड़ी-बहुत गर्मागर्मी भी नहीं दिखाई दी। मतलब, उत्तर प्रदेश विधान सभोचित गाली-गलौज़, माइक फेंकना, आदि कुछ होता तो समझ में आता कि हंगामा हुआ, तीखी बहस हुई। हां इसे नोंक-झोंक कहा जा सकता है। बताइए, यू पी की विधानसभा में कुछ हो, स्पीकर सिर्फ ये कहें कि आपस में डिबेट नहीं करें। स्पीकर को ये तक कहने का मौका न दिया जाए, कि शांत रहें, या फिर ये कि इन बातों को सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं किया जाएगा। बल्कि अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य को माननीय सदस्य जी कहा, और केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव को नेता प्रतिपक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री कहा। इसमें कौन शालीनता खराब हुई है जनाब। बल्कि हैरत हुई कि बात इससे आगे नहीं बढ़ी, किसी को मार्शलों ने उठाकर बाहर नहीं फेंका, न ही किसी ने गाली दी, न ही अससंदीय भाषा का प्रयोग हुआ, यहां तक कि तू तड़ाक तक नहीं हुई, जिसकी झूठी रिपोर्ट कई झूठे चैनलों ने दिखाई। किसी को तुम कहना, तू -तड़ाक नहीं होता। तुम एक सामान्य सम्बोधन है। बल्कि कहीं – कहीं तो इसे इज्जतदार सम्बोधन भी समझा जाता है।

अब सवाल ये उठता है कि आखिर फिर चैनलों ने, सोशल मीडिया ने इस मुद्दे को इतना उछाल क्यों दिया। उछाला, भूना, मसाले में लपेटा और अपने दर्शकों के लिए एक मसालेदार डिश परोसी। आखिर ऐसा क्यों किया गया। तो जो समझ आता है वो ये कि अभी भाजपा के पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं है। जबकि इस बार के चुनाव में विधासभा में विपक्ष की सीटें बढ़ी हैं और भाजपा की कम हुई हैं। इसका एक नतीजा तो ये देखने में सामने आया कि कल गर्वनर के भाषण के समय पूरा विपक्ष जिसमें लाल टोपियां ही दिखाई दे रही थीं, सदन के वेल में आ गया और खासा हंगामा खड़ा कर दिया। ऐसे में भाजपा जिस मुश्किल में पड़ती दिखाई दे रही है, उससे निपटने की जमीन पहले से ही तैयार की जा रही है। पिछले पांच सालों में भाजपा ने उत्तरप्रदेश की हालत और खराब की है, लेकिन पिछली बार विधानसभा में भाजपा का संख्याबल इतना था कि उसे सदन में कोई दिक्कत नहीं थी। जबकि इस बार सपा की सीटों में 100 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी है। सत्तापक्ष को पता है कि इस बार सदन साधना उतना आसान नहीं होगा, विपक्ष भी चुप रहने का नतीजा देख और भुगत चुका है। जाहिर है, विपक्ष सत्तापक्ष को चैन की सांस नहीं लेने देगा। ऐसे में भाजपा अपने तरकश के सारे तीरों का इस्तेमाल करने को मजबूर होगी। भाजपा मीडिया को ऐसे इस्तेमाल करेगी कि जैसे वो सत्तापक्ष ही हो, और उसे ठीक से विपक्ष पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। अभी अखिलेश यादव के भाजपा पर साम्प्रदायिक राजनीति करने के बयान पर भी मीडिया ने उन्हें निशाना बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।

केशव प्रसाद मौर्य के बयान से कि, 2027 में चुनाव हैं, ये भी समझ में आता है कि भाजपा की हड़बड़ाहट 2027 के चुनावों को लेकर अभी से दिखाई देने लगी है, उपर से 2024 के चुनावों में उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा असर डाल सकता है। सपा और तमाम विपक्ष की कोशिश ये रहेगी कि भाजपा को घेरा जाए, और भाजपा की ये कोशिश रहेगी कि विपक्ष की छवि को इतना खराब किया जाए कि वो कामयाब न हो सके। अब देखना ये है कि अखिलेश यादव अपने हमलों को और तीखा करेंगे, या भाजपा अपने मंसूबों में कामयाब होगी।

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