विलय के बाद नए राज्य में कर्मी को आरक्षण से वंचित नहीं कर सकती सरकार: सुप्रीम कोर्ट 

 

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि विलय (Fusion) के बाद यदि कर्मी (staff) किसी नए राज्य में जाते हैं, तो उन्हें उस राज्य का निवासी ही माना जाएगा और उन्हें सेवा में आरक्षण (Reservation) का लाभ दिया जाएगा। चाहे उनका निवास पुराना राज्य ही क्यों न हो।

दरअसल, यह आदेश न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के एक आदेश पर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को राज्य में प्रवासित (migrated) समझा गया था और उसे आरक्षण (Reservation) का लाभ देने से इनकार कर दिया था। कर्मचारी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। जहां सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त (canceled) कर दिया।

पूरा मामला..

यह मामला तब का है जब वर्ष 2000 में झारखंड के गठन (Formation) से पहले पटना के पंकज कुमार हजारीबाग में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। लेकिन जब झारखंड अलग राज्य बना, तो उन्होंने झारखंड को ही चुना और वहां विलय करा लिया। उसके बाद 2008 में, उन्होंने संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा दी और 2010 में परिणाम में आरक्षित वर्ग में पांचवें नंबर पर चयनित भी हो गए।

तब से ही उनकी परेशानी बढ़ गई वह चयनित तो हुए, लेकिन जब नियुक्ति की बात आई, तो राज्य ने उन्हें नियुक्ति दी ही नहीं और कहा गया कि उनका स्थायी निवास स्थान सर्विस रजिस्टर में पटना लिखा है। वह झारखंड के निवासी नहीं बल्कि प्रवासी (Migrant) हैं। इस मामले को जब वह हाईकोर्ट ले गए तो सिंगल बेंच ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके बाद राज्य सरकार ने फैसले के खिलाफ फुल बेंच में अपील की और 2:1 के अनुपात में राज्य सरकार के पक्ष में फैसला देकर पंकज को प्रवासी माना गया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया है।

क्यों मिलेगा विलय के बाद भी कर्मी को आरक्षण..

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह देखा जाना चाहिए कि कर्मचारी ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत खुद को झारखंड में विलय कर लिया था। अधिनियम में कहा गया है कि ऐसे कर्मी अपने साथ आरक्षण की व्यवस्था भी रखेंगे और उन्हें वही सुविधाएं दी जायेगी जो वह अविभाजित राज्य में रहते तो उन्हें मिलतीं।

इसलिए, नहीं कहा जा सकता कि वह प्रवासी हैं..

अदालत ने कहा कि संविधान पीठ यह फैसला कर चुकी है कि प्रवासी आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, भले ही उनकी जाति उस राज्य में आरक्षित श्रेणी के रूप में चिह्नित हो। लेकिन पंकज के साथ ऐसा नहीं है। वह कानून के तहत सेवा में विलय कर झारखंड में आए हैं। आगे कोर्ट ने यह भी कहा कि उनकी जाति को बिहार के उन 18 जिलों में आरक्षण का लाभ प्राप्त था, जिनसे झारखंड बनाया गया है। अविभाजित बिहार में उन्हें जो आरक्षण मिला था, उसमें झारखंड शामिल था, उसके बाद उन्होंने झारखंड को चुना और वहीं रहे।

इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह प्रवासी हैं और उन्हें झारखंड में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। क्योंकि न ही वह दोनों राज्यों में आरक्षण ले रहे हैं। न ही उन्होंने बिहार में आरक्षण की मांग की है उनकी केवल झारखंड में ही आरक्षण मांगा है। इसी के साथ कोर्ट ने राज्य को आदेश दिया कि पंकज को नियुक्त किया जाए और उन्हें वरिष्ठता दी जाए, उसी के अनुसार उनका वेतन और भत्ते तय किए जाएं।

 

First Published on:
Exit mobile version