आज के अखबारों में पुलित्जर विजेता, भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत की खबर प्रमुखता से है। वे अफगान सैनिकों और तालिबान आतंकवादियों के बीच भीषण लड़ाई की कवरेज के दौरान मारे गए। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने दानिश सिद्दीकी के मारे जाने पर गहरा दुख व्यक्त किया है। द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया है और (अंदर के पन्ने पर) लिखा है, “विपक्षी नेता और यहां तक कि केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को भी शोक संवेदना ट्वीट करने के लिए गालियां पड़ीं।” सोशल मीडिया में देर रात तक चर्चा थी कि प्रधानमंत्री ने शोक संदेश जारी नहीं किया। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर में अफगानिस्तान के राजदूत के ट्वीट की चर्चा है।
आज दूसरी प्रमुख खबर टाइम्स ऑफ इंडिया के अधपन्ने पर है, दिल्ली मंत्रिमंडल ने किसान आंदोलन के लिए पुलिस के वकीलों के पैनल को खारिज किया। दिल्ली दंगों की जांच में दिल्ली पुलिस की भूमिका की आलोचना और दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट द्वारा दिल्ली पुलिस पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाना बड़ी खबरें है। इस पर मैंने कल ही लिखा था। इस लिहाज से आज दिल्ली कैबिनेट का फैसला और महत्वपूर्ण है। इसकी जड़ दिल्ली के उपराज्यपाल के जरिए केंद्र की भाजपा सरकार की राजनीति में है और इसीलिए इस खबर को आज प्रमुखता नहीं मिली है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अलावा यह खबर द हिन्दू में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है।
आज मैं तीसरी खबर की चर्चा करूंगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव क्षेत्र बनारस में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा कुछ ज्यादा ही कर दी। उसकी चर्चा पहले हो चुकी है और अभी वह मुद्दा भी नहीं है। आज मैं आपको बताउंगा कि कोरोना के दौरान हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन करने वाली डबल इंजन की सरकार ने उत्तराखंड में कुम्भ के बाद इंजन बदल दिया। इंजन तो उत्तर प्रदेश में भी बदले जाने की चर्चा थी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और बाद की स्थितियों में उत्तराखंड के ‘नए‘ इंजन ने कांवड़ यात्रा नहीं करवाने का फैसला लिया है तो उत्तर प्रदेश के पुराने इंजन के नेतृत्व में प्रतिबंधों के साथ कावड़ यात्रा होगी। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है और उससे संबंधित खबरें आज सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। आइए, कुछ शीर्षक देख लें। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से कहा, “अगली लहर मंडराती लग रही है तो कावड़ यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती है” (टाइम्स ऑफ इंडिया)। “कांवड़ यात्रा रद्द कीजिए या हम कर देंगे – सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से कहा” (हिन्दुस्तान टाइम्स)। इंडियन एक्सप्रेस में लाल स्याही से फ्लैग शीर्षक है, “कांवड़ संघों से संपर्क किया गया।” मुख्य शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा, प्रतीकात्मक कांवड़ यात्रा पर भी पुनर्विचार कीजिए।” द हिन्दू में शीर्षक बिल्कुल स्पष्ट है, “महामारी के बीच उत्तर प्रदेश कांवड़ यात्रा जारी नहीं रख सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा।”
सवाल उठता है कि ऐसी हालत में अगर उत्तर प्रदेश की चिन्ता प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को नहीं है या उत्तर प्रदेश ही उन्हें सबसे ठीक लगता है तो क्या देश के बाकी हिस्सों के मामले में उनकी राय सही मानी जा सकती है? आज के अखबारों में टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिन्दू ने सुप्रीम कोर्ट की खबर के साथ लगभग बराबर में बाकी राज्यों में कोरोना पर प्रधानमंत्री की चिन्ता को प्रमुखता से छापा है। द हिन्दू में एक तरफ शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महामारी के बीच उत्तर प्रदेश कांवड़ यात्रा जारी नहीं रख सकता है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री ने कहा है, महाराष्ट्र और केरल में बढ़ते मामले चिन्ता का कारण हैं। इससे पहले, प्रधानमंत्री ने उत्तर पूर्व के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी। तब विज्ञप्ति में कहा गया था-
- आज हम पूरे देश में 20 लाख से अधिक टेस्ट प्रतिदिन करने की क्षमता तक पहुंच चुके हैं।
- नॉर्थ ईस्ट के हर जिले में, विशेष रूप से अधिक प्रभावित जिलों में टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ाना होगा।
- यही नहीं, रैंडम टेस्टिंग के साथ–साथ हम क्लस्टर वाले ब्लॉक में ऐग्रेसिव टेस्टिंग करें, इसको लेकर भी हमें ज़रूर कदम उठाने चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा था, ये सही है कि कोरोना की वजह से टूरिज्म, व्यापार–कारोबार, ये बहुत प्रभावित हुआ है। लेकिन आज मैं बहुत जोर देकर कहूंगा कि हिल स्टेशंस में, मार्केट्स में बिना मास्क पहने, बिना प्रोटोकॉल का अमल किए बिना, भारी भीड़ का उमड़ना मैं समझता हूँ ये चिंता का विषय है, ये ठीक नहीं है। लोगों को समझाना ज़रूरी है कि तीसरी लहर अपने आप नहीं आएगी। कभी–कभी लोग सवाल पूछते हैं तीसरी लहर की क्या तैयारी की है? तीसरी लहर के लिये आप क्या करेंगे? आज सवाल ये होना चाहिए हमारे मन में कि तीसरी लहर को आने से कैसे रोकना है? हमारे प्रोटोकॉल को चुस्ती से कैसे अमल करना है? ये कोरोना ऐसी चीज है, वो अपने आप नहीं आती है, कोई जाकर के ले आये तो आती है और इसलिए हम अगर इन चीजों को बराबर सावधानी करेंगे, तो हम तीसरी लहर को भी रोक पाएंगे। आने के बाद क्या करेंगे वो एक अलग विषय है लेकिन आते हुए रोकना ये एक प्रमुख विषय है और इसके लिए हमारे नागरिकों में सजगता, सतर्कता, प्रोटोकॉल का पालन, इस पर हमने थोड़ा सा भी कौमप्रोमाइज नहीं करना है और एक्सपर्ट भी बार–बार यही चेतावनी दे रहे हैं कि असावधानी, लापरवाही, भीड़–भाड़, ऐसे कारणों से कोरोना संक्रमण में भारी उछाल आ सकता है। इसलिए जरूरी है कि हर स्तर पर, हर कदम गंभीरता के साथ उठाए जाएं। अधिक भीड़ वाले जो आयोजन रुक सकते हैं, उनको हमें रोकने का प्रयास करना चाहिए।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के बारे में उन्होंने कहा है, यूपी ने पूरे सामर्थ्य के साथ इतने बड़े संकट का मुकाबला किया। देश का सबसे बड़ा प्रदेश, जिसकी आबादी दुनिया के दर्जनों बड़े–बड़े देशों से भी ज्यादा हो, वहां कोरोना की दूसरी वेव को जिस तरह यूपी ने संभाला, सेकेंड वेव के दौरान यूपी ने जिस तरह कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका, वो अभूतपूर्व है। वरना यूपी के लोगों ने वो दौर भी देखा है जब दिमागी बुखार, इन्सेफ्लाइटिस जैसी बीमारियों का सामना करने में यहां कितनी मुश्किलें आती थीं। पहले के दौर में, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और इच्छा–शक्ति के अभाव में छोटे–छोटे संकट भी यूपी में विकराल हो जाते थे। और ये तो 100 साल में पूरी दुनिया पर आई सब से बड़ी आफत है, सबसे बड़ी महामारी है। इसलिए कोरोना से निपटने में उत्तर प्रदेश के प्रयास उल्लेखनीय हैं। मुझे याद है कि आधी रात में भी जब मैं यहां व्यवस्था में जुटे लोगों को फोन करता था, तो वो मोर्चे पर तैनात मिलते थे। कठिन समय था, लेकिन आपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी। आप सभी के ऐसे ही कार्यों का नतीजा है कि आज यूपी में हालात फिर संभलने लगे हैं।
प्रधानमंत्री के इस बयान से साफ है कि अभी स्थिति संभली नहीं है। जो बेहतर और विशेष बताया जा रहा है उसका सत्य भी हम जानते हैं तो सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश के मामले में प्रधानमंत्री की यह विशेष भूमिका क्या ठीक है। उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना एक बात है और राज्य के लोगों के भले के लिए काम करना बिल्कुल अलग। जिस ढंग से उत्तर प्रदेश की तारीफ की गई, उत्तर पूर्व में जरूरत बताई गई और विपक्षी राज्यों में कमी बताई जा रही है क्या वह यकीन करने लायक है। उत्तर प्रदेश की तारीफ में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है, आज यूपी, कोरोना की सबसे ज्यादा टेस्टिंग करने वाला राज्य है। आज यूपी, पूरे देश में सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन करने वाला राज्य है। सबको वैक्सीन–मुफ्त वैक्सीन अभियान के माध्यम से, गरीब, मध्यम वर्ग, किसान–नौजवान, सभी को सरकार द्वारा मुफ्त वैक्सीन लगाई जा रही है। साफ–सफाई और स्वास्थ्य से जुड़ा जो इंफ्रास्ट्रक्चर यूपी में तैयार हो रहा है वो भविष्य में भी कोरोना से लड़ाई में बहुत मदद करने वाले हैं। आज यूपी में गांव के स्वास्थ्य केंद्र हों, मेडिकल कॉलेज हो, एम्स हो, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में अभूतपूर्व सुधार हो रहा है। चारसाल पहले तक जहां यूपी में दर्जन भर मेडिकल कॉलेज हुआ करते थे, उनकी संख्या अब करीब चार गुना हो चुकी है। बहुत सारे मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अपने अलग–अलग चरणों में हैं। अभी यूपी में करीब साढ़े पांच सौ ऑक्सीजन प्लांट्स बनाने का काम भी तेज़ी से चल रहा है। आज बनारस में ही 14 ऑक्सीजन प्लांट्स का यहां लोकार्पण भी किया गया। हर जिले में बच्चों के लिए विशेष ऑक्सीजन और आईसीयू जैसी सुविधाएं निर्मित करने का जो बीड़ा यूपी सरकार ने उठाया है, वो भी सराहनीय है। कोरोना से जुड़ी नई स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण के लिए हाल में केंद्र सरकार ने 23 हज़ार करोड़ रुपए का विशेष पैकेज घोषित किया है। इसका भी बहुत बड़ा लाभ यूपी को होने वाला है।
छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ कल की बैठक की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, आज छह राज्य आज हमारे साथ हैं। पिछले हफ्ते के करीब 80 प्रतिशत नए केसेस इन्हीं राज्यों से आए हैं। चौरासी प्रतिशत दुखद मौतें भी इन्हीं राज्यों में हुई हैं। शुरुआत में विशेषज्ञ ये मान रहे थे कि जहां से सेकंड वेव की शुरुआत हुई थी, वहाँ स्थिति अन्य की तुलना में पहले नियंत्रण में होगी। लेकिन महाराष्ट्र और केरल में केसेस का इजाफा लगातार देखने को मिल रहा है। ये वाकई हम सबके लिए, देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। आप सब इससे परिचित हैं कि ऐसे ही ट्रेंड हमें सेकंड वेव के पहले जनवरी–फरवरी में भी देखने को मिले थे। इसलिए, ये आशंका स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है कि अगर स्थिति नियंत्रण में नहीं आई तो मुश्किल हो सकती है।
बहुत जरूरी है कि जिन राज्यों में केस बढ़ रहे हैं, उन्हें खास उपाय करते हुए तीसरी लहर की किसी भी आशंका को रोकना होगा। लेकिन यूपी में क्या कोई आशंका नहीं है, वहां नए मामले नहीं आ रहे हैं। अगर ऐसा हो भी तो इस बार कांड़ यात्रा रद्द करने में क्या जाता है। नाक का सवाल क्यों है और किसके लिए है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।