पहला पन्ना: राहुल गाँधी ने सरकार पर राजद्रोह का आरोप लगाया

द टेलीग्राफ का पहला पन्ना आज भी अलग खबरों से बना है और अगर टाइम्स ऑफ इंडिया ने राहुल गांधी के आरोप को न सिर्फ सिंगल कॉलम में छापा है बल्कि भाजपा प्रवक्ता राज्यवर्धन राठौड़ की "चुनौती" को छापकर शुद्ध चापलूसी की है तो द टेलीग्राफ ने बताया है कि सरकार जो कर रही है उसके लिए राहुल गांधी ने कहा है कि एक ही शब्द है, ट्रीजन (राजद्रोह)। यहां किसी राज्यवर्धन राठौड़ की चुनौती भी नहीं है और आप स्थिति को ऐसे समझिए कि केंद्र सरकार पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है और टाइम्स ऑफ इंडिया तथा इंडियन एक्सप्रेस उसे छोड़कर सिर्फ राहुल गांधी के फोन की जासूसी के आरोप को महत्व दे रहा है और बचकानी चुनौती को भी। लेकिन मूल मुद्दा गायब है। 

आज मेरे पांचों अखबारों में लीड अलग है। ऐसा बहुत कम होता है। आइए आज देखें किस अखबार ने किस खबर को लीड बनाकर महत्व दिया और इस चक्कर में कौन सी खबरें रह गई हैं। हमेशा की तरह द टेलीग्राफ का पहला पन्ना आज भी अलग खबरों से बना है और अगर टाइम्स ऑफ इंडिया ने राहुल गांधी के आरोप को न सिर्फ सिंगल कॉलम में छापा है बल्कि भाजपा प्रवक्ता राज्यवर्धन राठौड़ की “चुनौती” को छापकर शुद्ध चापलूसी की है तो द टेलीग्राफ ने बताया है कि सरकार जो कर रही है उसके लिए राहुल गांधी ने कहा है कि एक ही शब्द है, ट्रीजन (राजद्रोह)। यहां किसी राज्यवर्धन राठौड़ की चुनौती भी नहीं है और आप स्थिति को ऐसे समझिए कि केंद्र सरकार पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है और टाइम्स ऑफ इंडिया तथा इंडियन एक्सप्रेस उसे छोड़कर सिर्फ राहुल गांधी के फोन की जासूसी के आरोप को महत्व दे रहा है और बचकानी चुनौती को भी। लेकिन मूल मुद्दा गायब है। 

मुझे याद आता है कि कई साल पहले मेरे बेटे ने एक बार मेट्रो में किसी का मोबाइल चुराता हुए किसी को देख लिया और उसकी सक्रियता से चोर पकड़ा गया और सब शिकायत करवाने गए तो उन बच्चों के सामने यह शर्त रखी गई कि एफआईआर लिखी जाएगी तो बरामद फोन  भी जब्त होगा। इससे चोरी गया फोन बरामद होने से खुश व्यक्ति बिल्कुल दुखी हो गया और उसने एफआईआर कराने से मना कर दिया। पुलिस ने एफआईआर तो नहीं ही लिखी अपराधी गिरोह को भी छोड़ दिया। जो गिरफ्तार करवाने वालों को धमकाने लगे। किसी तरह बचकर आने के बाद मेरे बेटे ने (जो कानून का छात्र था) पूरा मामला समझने की कोशिश की। मैंने कहा कि कानून तो अपने शिक्षक से समझना व्यावहारिक बात यह है कि ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। 

मुझे अपने बेटे को ऐसी व्यावहारिक सीख देने का अफसोस रहा है पर वह मजबूरी थी। अब देख रहा हूं कि जो काम एक दरोगा ने मेरे बेटे के साथ किया वही भारत सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी विपक्ष के नेता के साथ कर रही है। आप इसे अच्छे दिन मानिए पर असल में यह एक शर्मनाक स्थिति है। एक तरफ तो सरकार पेगासुस जासूसी के आरोप की जांच नहीं करा ही है और दूसरी तरफ राहुल गांधी को फोन जमा कराने के लिए ऐसे कह रही है जैसे बच्चों को एफआईआर नहीं कराने के लिए हतोत्साहित किया जाता है। द टेलीग्राफ की आज की लीड पर आने से पहले आज सभी अखबारों की लीड (और सेकेंड लीड) का शीर्षक पढ़ लीजिए। इंडियन एक्सप्रेस ने और स्पष्ट कर बताया है कि राहुल का आरोप यह भी है कि उनके सुरक्षा कर्मियों से कहा जाता है कि वे राहुल के बारे में जानकारी दें (जासूसी करें)। लेकिन इसके लिए राहुल गांधी क्या करें यह अखबार ने नहीं बताया है। ना ही यह कहा है कि राहुल गांधी का एतराज बेमतलब है, सुरक्षा अधिकारियों का यही काम होता है। ना ही राहुल गांधी के पास यह विकल्प है कि देश की सुरक्षा और जासूसी कांड की जांच के लिए अपना फोन सौंपना हो तो राहुल गांधी या कोई और न सौंपे। असल में अधिकारी अपना काम करने से बचने के लिए ऐसी शर्तें रखते हैं। वरना कंप्यूटर के हार्ड डिस्क और तमाम फाइलें, दस्तावेज जबरन जब्त कर लिए जाने के सैकड़ों मामले हाल-फिलहाल में मिल जाएंगे। फिलहाल आज के शीर्षक :    

 

  1. हिन्दुस्तान टाइम्स 

(अधपन्ने पर) पश्चिम भारत में भारी बारिश से 60 मरे

पहले पन्ने पर – पेगासुस का मामला सदन में अब भी छाया हुआ है। 

द वायर ने खबर छापी है जम्मू व कश्मीर के नेताओं के फोन की भी जासूसी हुई। खबर के अुनसार महबूबा मुफ्ती के परिवार के दो सदस्य भी इनमें शामिल हैं। महबूबा ने वायर की इस रिपोर्ट को शेयर करते हुए जो लिखा है उसे ज्यादा महत्व देते हुए राहुल गांधी की खबर को दो कॉलम की इस खबर के साथ सिंगल कॉलम में छापा है और जो टेलीग्राफ में लीड है उसे यहां बाकायदा दबाने की व्यवस्था की गई लगती है। खबर की हत्या करने के लिहाज से यह टाइम्स ऑफ इंडिया से ज्यादा प्रतिभाशाली कार्रवाई है। 

 

  1. टाइम्स ऑफ इंडिया 

अधपन्ने पर विज्ञापन है

पहले पन्ने पर – (कर्नाटक) हाईकोर्ट ने ट्वीटर इंडिया के एमडी को उत्तर प्रदेश पुलिस का नोटिस खारिज किया, कहा : वीडियो के जरिए पूछताछ हो या उनके पास जाकर। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में भी पहले पन्ने पर है। 

अखबार में दूसरी लीड हरिद्वार में मांस पर प्रतिबंध से संबंधित एक खबर है। इसके अनुसार उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर करके मांस के प्रतिबंध को भेदभाव पूर्ण कहा गया है। उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने कहा है कि यह बुनियादी अधिकार का मामला है, बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं। कहने की जरूरत नहीं है कि अदालत ने बिल्कुल ठीक कहा है लेकिन अदालत में याचिका दायर करने वाले कौन हैं और क्या चाहते हैं तथा उनका मकसद क्या हो सकता है यह सब कुछ खबर से समझ में नहीं आ रहा है। हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी याचिका को संशोधित करें। और यह पूरे मन से तैयार नहीं किया गया है। मुझे नहीं पता ऐसी याचिका और ऐसी खबर को पहले पन्ने पर छापने का क्या मकसद हो सकता है। खासकर तब जब यह मामला 3 मार्च 2021 से चल रहा है।   

 

  1. इंडियन एक्सप्रेस 

फ्लैग शीर्षक है, पेगासुस टकराव : पहला हफ्ता बेकार गया (बह गया)। वह भी तब पूरी आशंका है कि सरकार ने जनता के पैसों से करोड़ों का मालवेयर खरीद कर भारतीयों की ही जासूसी करवाई और इससे कितनों को न जाने कितना अघोषित, अज्ञात नुकसान हुआ। इसमें अखबार के संवाददाता भी हैं तब अखबार इसे बर्बादी मान रही है जबकि नोटबंदी और जीएसटी को लागू करने जैसी नौटंकी को अखबार ने कभी बर्बादी लिखा हो, मुझे ध्यान नहीं है। वैसे भी संसद में हफ्तों कोई कार्रवाई न हो पाय ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है और तब अखबार के तेवर ऐसे नहीं रहे हैं।   

आज लीड का मुख्य शीर्षक हैटीएमसी सांसद निलंबित, नायडू ने कहा उनका आचरण लोकतंत्र पर हमला है (नागरिकों की जासूसी लोकतंत्र पर हमला नहीं है?)। जो नहीं जानते हैं उन्हें बता दूं कि तृणमूल सांसद द्वारा राज्यसभा में केंद्रीय आईटी मंत्री के कागज छीन कर फाड़ देने की खबर छपी थी। इस खबर के अनुसार संबंधित सांसद सांतनु सेन हैं। उन्हें संसद के इस सत्र के बाकी कार्यकाल के लिए निलंबित कर दिया गया है। राहुल गांधी वाली खबर इसी के साथ है। यहां दो कॉलम में।   

 

  1. द हिन्दू 

महाराष्ट्र में बारिश से 60 लोगों के मारे जाने की खबर द हिन्दू में लीड है। यहां सेकेंड लीड का शीर्षक है, संसद लगातार चार दिन ठप्प रही। विपक्ष ने पेगासुस, किसानों के आंदोलन का मुद्दा उठाया। कहने की जरूरत नहीं है कि इन दिनों यही दोनों मुद्दे महत्वपूर्ण हैं और संसद के सत्र ऐसे ही गुजरते रहे हैं पता नहीं, अखबारों और नेताओं को यह चिन्ता अब क्यों हो रही है। जहां तक मुझे याद है, अरुण शौरी लिखकर स्वीकार कर चुके हैं कि उनके खुलासे संसद के सत्र के दौरान होते रहे हैं और इसीलिए उन्हें गंभीरता से लिया गया और वैसे भी लोकतंत्र में संसद का ध्यान खींचने की कोशिश करना न नया है ना अनूठा न कोई अनैतिकता, फिर भी अब सारी परिभाषाओं के साथ संसद सत्र की परिभाषा भी बदलने की कोशिश चल रही है। दुर्भाग्य यह कि खुद करें तो रास लीला और दूसरा करे तो कैरेक्टर ढीला वाले अंदाज में। और पेगासुस को लेकर संसद में जो स्थितियां बनी हैं वह पूरी तरह, “ना इज्जत की चिन्ता ना फिकर किसी अपमान की, जय बोलो बेईमान की जय बोलो बेईमान की वाले अंदाज है। यह दिलचस्प है कि यह गाना जब लिखा गया गया था उस स्थिति को देखने और अब इसे सार्वजनिक होने में इतना समय लग गया। 

 

  1. द टेलीग्राफ 

फ्लैग शीर्षक है, पेगासुस घोटाले पर राहुल गांधी का हमला 

एक ही शब्द है : ‘राजद्रोह’

खबर में कहा गया है कि राहुल गांधी ने भारत राज्य और देश की जनता के खिलाफ पेगासुस का उपयोग किए जाने के लिए अमित शाह और नरेन्द्र मोदी का नाम लिया और कहा कि ऐसा करके दोनों ने राजद्रोह किया है। इसके अलावा, टेलीग्राफ की आज की पहले पन्ने की अन्य खबरें हैं 1) स्टैन स्वामी के लिए मानव श्रृंखला 2) एक और गोबर गिरफ्तारी का अंत। आज मुख्य खबर के साथ अखबार में एक और खबर है, सुरक्षा शाखा के बजट में वृद्धि की पहेली। इस खबर के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का बजट 2011-12 में 17.43 करोड़, 12-13 में 20.33 करोड़ और 2013-14 में 26.06 करोड़ रुपए था। 2014-15 में जब मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई तो यह बजट बढ़कर 44.46 करोड़ हो गया 2016-17 में यह घटकर 33 करोड़ रह गया और 2017-18 में एनएससी के बजट में एक नया मद जोड़ा गया – साइबर सुरक्षा अनुसंधान और विकास। इस मद में 333 करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया और आरोप है कि पेगासुस से जासूसी इसी साल शुरू हुई। यह दिलचस्प है कि कल ही सुब्रमण्य स्वामी ने ट्वीट कर यह आरोप लगाया था और यह मामला गंभीर होने के साथ ही एक आशंका को पुष्ट करता लगता है फिर भी आज यह खबर उस प्रमुखता से नहीं है जिस प्रमुखता से होनी चाहिए। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसि्द्धध अनुवादक हैं

 

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