प्रसार भारती के भ्रष्‍टाचार का सबूत सड़कों पर, तानाशाही तले बिखरने के कगार पर राज्‍यसभा टीवी

राव के गिरोह और संपादकीय कवभाग के बीच एक छद्म युद्ध चल रहा है जिसका असर 21 जनवरी को परदे पर दिखा।

ज्‍यादा वक्‍त नहीं हुआ जब देश के टीवी चैनलों के बीच राज्‍यसभा टीवी को सबसे संजीदा चैनलों में एक माना जाता था। मीडिया विश्‍लेषक इसके कार्यक्रमों और उनकी गुणवत्‍ता की तुलना एनडीटीवी के साथ करते थे। देखते-देखते सालाना 100 करोड़ से ज्‍यादा के खर्च वाला यह चैनल अर्श से फर्श पर आ गया। अब प्रसार भारती की आंतरिक गड़बडि़यों की कहानी सड़कों पर होर्डिंग के रूप में लटक रही है।

सोमवार को जंतर-मंतर पर निजी कार्यक्रम निर्माताओं की ओर से सूचना व प्रसारण मंत्री के नाम एक होर्डिंग लगी हुई दिखाई दी जिस पर प्रसार भारती के मेंबर फाइनेंस राजीव सिंह को हटाने का अनुरोध किया गया है। इस होर्डिंग पर लिखा है कि राजीव सिंह अपने पद का दुरुपयोग कर के प्रसार भारती के सर्वेसर्वा बने हुए हैं और निजी निर्माताओं को इनसे बचाने की गुहार मंत्री से लगाई गई है।

यह होर्डिंग बताती है कि प्रसार भारती के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अव्‍वल तो यह गडबड़ी तब से पैदा हुई जब भाजपानीत एनडीए की सरकार केंद्र में आने के बाद बड़े पदों पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के लोगों को बैठाया गया। उसके बाद प्रसार भारती के मुंहबोले चैनल राज्‍यसभा टीवी में निज़ाम बदला और वेंकैया नायडू के उपराष्‍ट्रपति बनने के साथ इसकी कमान उनके मुंहबोले अधिकारी एए राव ने संभाली। राव के खिलाफ वैसे तो बीते दो वर्षों से दबे-छुपे कइ्र किस्‍म की शिकायतें तैर रही थीं लेकिन बीती 21 जनवरी को यहां जो कुछ घटा उसने संस्‍थान के भीतर मौजूद अक्षमता और भ्रष्‍टाचार की परतें खोल कर रख दीं।

21 जनवरी का दिन राज्‍यसभा टीवी में ऐतिहासिक गलतियों का दिन था जब इसका प्रसारण पांच बार लंबी-लंबी अवधि के लिए अवरोधित हुआ। यह सब कुछ तकनीकी गड़बड़ी के चलते हुआ, जिसे नीचे दिए वीडियो क्लिपों में देखा जा सकता है।

चैनल के कर्मचारी नाम न लेने की शर्त पर इसका सीधा दोष तकनीकी निदेशक विनोद कौल और एए राव को देते हैं जो येन केन प्रकारेण संस्‍था में अपना वर्चस्‍व कायम रखने की कोशिश में इसे स्‍थानीय चैनलों से भी घटिया स्‍तर पर पहुंचा चुके हैं। इसने चैनल के सालाना व्‍यय 100 करोड़ पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

21 जनवरी को आरएसटीवी में जो कुछ हुआ उसकी कहानी कुछ यू है:

  1. चैनल शाम चार बजे के आसपास ब्‍लैक हो गया और आधे घंटे से ज्‍यादा समय तक ऑफ एयर रहा।
  2. शाम पांच बजे के करीब अचानक आरएसटीवी पर डीडी न्‍यूज़ दिखाई देने लगा और थोड़ी ही देर में स्‍टूडियो के भीतर का दृश्य ऑन एयर हो गया जिसमें एंकर फ्रैंक परेरा मेहमानों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे।
  3. इसके बाद टिकर और चैनल आइडी ऑफ एयर हो गए।

4. पांच बजकर दस मिनट पर ऑडियो गायब हो गया और घंटे भर तक चैनल बिना आवाज के चलता रहा। कार्यक्रम ज्ञान विज्ञान के दौरान ऑडियो गायब हुआ और इन-डेप्‍थ कार्यक्रम के बीच में वापस आया। इस बीच पॉलिसी वॉच नाम का परा कार्यक्रम बिना आवाज के प्रसारित होता रहा।

5. शाम सवा छह बजे के आसपास चैनल एक मिनट के लिए फिर ब्‍लैक हो गया और अगले एक घंटे तक ऐसा रुक-रुक कर होता रहा।

इस सब के बीच तकनीकी निदेशक कौल अंधेरे में तीर मारते रहे। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो पहले तकनीकी विभाग को देखने वाले इंजीनियर हर्ष बत्रा को कौल ने इस्‍तीफा देने के लिए मजबूर किया था। इसके बाद उन्‍होंने जब कमान अपने हाथ में ली तो उनकी अक्षमता परदे पर सामने आ गई। इसका त्रासद कहानी का एक और पहलू यह है कि विनोद कौल के ऊपर अनियमितता के गंभीर आरोप हैं और कथित भ्रष्‍टाचार को लेकर उनकी जांच भी चल रही है। हुआ यह है कि अतिरिक्‍त सचिव एए राव आरएसटीवी के संपादकीय विभाग से अपना हिसाब चुकाने के लिए कौल का साथ दे रहे हैं। कुल मिलाकर राव के गिरोह और संपादकीय कवभाग के बीच एक छद्म युद्ध चल रहा है जिसका असर 21 जनवरी को परदे पर दिखा।

राव के कहे में आकर कौल संपादकीय कार्यों में इतने ज्‍यादा मुब्तिला हैं कि उन्‍होंने तकनीकी पर्यवेक्षण की अपनी बुनियादी जिम्‍मेदारी को ही भुला दिया है। चूंकि हर्ष बत्रा जा चुके हैं और आउटपुट के एक अन्‍य पुराने कर्मी ओमप्रकाश को राव ने सुनियोजित तरीके से हाशिये पर डाल दिया है तो गड़बडि़यां स्‍वाभाविक हो गई हैं और उन्‍हें देखने वाला कोई नहीं।

इसके अलावा राज्‍यसभा टीवी की भर्तियों में राव के अनावश्‍यक दखल की कहानियां तो पहले ही सामने आ चुकी हैं। उन्‍होंने वेंकैया नायडू की मंजूरी के बावजूद एक एक्जिक्‍यूटिव प्रोड्यूसर की बहाली को रोके रखा। आरएसटीवी में सीईओ के लिए एक पद निकला था जिसे भरने की अंतिम तारीख थी 30 नवंबर 2018, लेकिन इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। कहा जा रहा है कि राव ने राज्‍यसभा के सचिव रामचारालू पर सीईओ की भर्ती को रोके रहने का दबाव बनाया है क्‍योंकि सीईओ के पद को अब अतिरिक्‍त सचिव के बराबर कर दिया गया है और एक बार यदि सीईओ की भर्ती हो जाती है तो वह तकनीकी रूप से राव को रिपोर्ट नहीं करेगा। सूत्रों की मानें तो राव चाहते हैं कि इस नियुक्ति से पहले वे अपने पसंदीदा संपादकीय कर्मियों असिस्‍टेंट एक्जिक्‍यूटिव प्रोड्यूसर और सीनिर असस्‍टेंट एडिटर के पोस्‍ट पर प्रमोट कर दें, जबकि इन दोनों पदों के लिए आवेदन पहले ही मंगवाए जा चुके हैं। इन दोनों प्रमोशन का विरोध आरएसटीवी के एडिटर-इन-चीफ कर रहे हैं क्‍योंकि वे इनके काम से खुश नहीं हैं।

कुल मिलाकर एक मनमाने नौकरशाह की तानाशाही के चलते देश का सबसे उम्‍दा टीवी चैनल अब बिखरने के कगार पर है। चूंकि प्रसार भारती के भ्रष्‍टाचार की कहानी अब सड़क पर आ गई है, तो कहा नहीं जा सकता कि राज्‍यसभा टीवी के भीतर कर्मियो में मौजूद असंतोष कब फूट पड़े।

(यह खबर राज्‍यसभा टीवी और प्रसार भारती के स्रोतों से मिली सूचना के आधार पर लिखी गई है)

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