अख़बारों ने तो हद कर दी, लगातार चौथे दिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री की चिन्ता सबसे बड़ी ख़बर

 

क्रेडिट कार्ड से विदेश में खरीदारी पर 20 प्रतिशत टैक्स लगेगा, खबर सिर्फ एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर

 

कर्नाटक चुनाव की मतगणना 13 मई को हुई और 14 मई के अखबारों में परिणाम छापने के बाद से दिल्ली के मेरे चारो अखबारों (द टेलीग्राफ कोलकाता का है) में लगातार चार दिन से एक ही खबर लीड बन रही है और वह है, “मुख्यमंत्री कौन बनेगा”। जाहिर है, इसका मकसद मुख्यमंत्री कौन बनेगा, जानना-बताना नहीं है। वह नाम लगभग तय है और मुझे पहले दिन से तय लग रहा है। विधायक दल की बैठक हो चुकी है और खबर छप चुकी है कि विधायकों ने कांग्रेस अध्यक्ष को मुख्यमंत्री तय करने का अधिकार दे रहा है। अखबार यह बताना चाहते हैं कि कांग्रेस में आंतरिक कलह है और वे जीत को पचा नहीं पा रहे हैं। दूसरी ओर यह कहा जा चुका है और सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री चुनने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है तथा इसमें समय लगता ही है। यह अलग बात है कि तोड़-फोड़ और जोड़-तोड़ वाली सरकारें भोर में शपथ ले चुकी हैं और सुबह इस्तीफा शाम को शपथग्रहण भी हो चुका है। पर वह बहुमत की स्थिति में नहीं होता है।

अखबारों का यह उद्देश्य उनके शीर्षक से भी स्पष्ट है-

1.नवोदय टाइम्स — डीके अड़े, पेंच फंसा, सुबह मना सिद्धरमैया के घर पर जश्न तो नाराज हुए शिवकुमार के समर्थक

2.हिन्दुस्तान टाइम्स –बातचीत में गुजरा एक और दिन पर सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री के पद पर अड़े

3.इंडियन एक्सप्रेस- डीके नहीं मान रहे, कांग्रेस ने कहा नया मंत्रिमंडल 48 से 72 घंटे में।  इंट्रो है – सिद्धरमैया और शिवकुमार राहुल से मिले, गतिरोध खत्म करने के लिए कांग्रेस को सोनिया से उम्मीद

4.टाइम्स ऑफ इंडिया- सिद्धरमैया के मुख्यमंत्री बनने की संभावना, कांग्रेस के समाधान में डीकेएस उप मुख्यमंत्री होंगे

5.द हिन्दू-सिद्धरमैया आलाकमान की संभावित पसंद

उपशीर्षक में और भी बातें बताई गई हैं जो दूसरे अखबारों के शीर्षक में हैं। द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन सिंगल कॉलम की एक खबर से बताया गया है कि मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा में लगने वाले समय को लेकर दोहरा रवैया दिख रहा है। कांग्रेस ने इसपर नाराजगी जताई है और एलान किया है कि सरकार गठन की बारीकियों पर अभी भी चर्चा चल रही है और नाम की घोषणा होने में 24 से 48 घंटे लगेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस ने इसपर नाराजगी जताई है यह किसी और अखबार में प्रमुखता से तो नहीं ही है टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी मूल खबर के साथ जो अन्य सूचनाएं छापी हैं उसका शीर्षक है, इंतजार तकलीफदेह होती जा रही है। चार दिन की तकलीफ और टाइम्स ऑफ इंडिया झेल न पाये। रोज खबर छापकर भी! अखबार ने बताया है कि कुछ अखबारों ने पहले ही सिद्धरमैया के नाम की घोषणा कर दी है और इस संबंध में एक फर्जी पत्र वायरल है।

दिल्ली के अखबारों के लिए आज की दूसरी महत्वपूर्ण खबर एलजी के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है। दिल्ली के लिए यह निश्चित रूप से बड़ी खबर है लेकिन दिल्ली के मेरे चारो अंग्रेजी अखबारों ने कर्नाटक की खबर को ज्यादा महत्व दिया है और दिल्ली की महत्वपूर्ण खबर को कम गंभीरता दी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह लीड के बराबर में दो कॉलम में है। इंडियन एक्ससप्रेस में भी ऐसा ही है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह नीचे वाले आधे हिस्से में तीन कॉलम में है। नवोदय टाइम्स में भी यह फोल्ड के नीचे विज्ञापनों के बीच में है। इसका शीर्षक है, एल्डरमैन पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। उप शीर्षक है, सीजेआई ने पूछा, केंद्र को इतनी चिन्ता क्यों? द हिन्दू में भी यह खबर नीचे के आधे हिस्से में तीन कॉलम में है। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार में खबरों की प्रस्तुति ऐसी लगती है जैसे निर्देश एक ही जगह से आते हों।

दिल्ली से संबंधित यह खबर दिल्ली के अखबारों में लीड नहीं है और कर्नाटक के मुख्यमंत्री के चयन का मामला लगातार चौथे दिन लीड है तो आपको यह पता होना चाहिए कि दिल्ली की खबर क्या है और लीड क्यों नहीं है। आज के अखबारों में छपी खबरों के आधार पर मैं बता रहा हूं कि मामला दिल्ली नगर निगम में 10 एल्डरमैन की नियुक्ति बोले तो नामांकन का है। इससे संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है कल सुनवाई के दौरान अदालत ने सख्त टिप्पणी की और कहा, उपराज्यपाल को दिल्ली नगर निगम में ‘एल्डरमैन’ नामित करने का अधिकार देने का मतलब है कि वह निर्वाचित नगर निकाय को अस्थिर कर सकते हैं। इससे पहले सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन से उपराज्यपाल के शक्ति के स्रोत के बारे में सवाल किया। पीठ ने पूछा, मनोनीत करने के लिए आपके पास शक्ति का स्रोत क्या है? क्या संविधान एल्डरमैन नियुक्त करने के लिए उपराज्यपाल की शक्ति को मान्यता देता है?

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कोर्ट में कहा, एमसीडी में सदस्यों को मनोनीत करने से संबंधित फाइल सीधे उपराज्यपाल के कार्यालय में आई, क्योंकि वह प्रशासक हैं और इस मामले में सहायता और सलाह की अवधारणा लागू नहीं होती है। इसपर दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सेवाओं पर नियंत्रण के संबंध में 2018 और हाल में संविधान पीठ के फैसलों का हवाला दिया और कहा कि उपराज्यपाल को सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना है और उन्हें अब तक नामांकन वापस ले लेना चाहिए था। उन्होंने कहा, 12 जोन हैं, 12 वार्ड समितियां हैं और एल्डरमैन किसी भी समिति में नियुक्त किए जा सकते हैं…पिछले 30 वर्षों में पहली बार, उपराज्यपाल ने एमसीडी में सीधे सदस्यों को नियुक्त किया है और पहले यह हमेशा (सरकार की) सहायता और सलाह पर आधारित था। हाल में पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया था कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषयों को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के पास विधायी तथा प्रशासकीय नियंत्रण है और यह सब इसके बाद का विवाद है। आप समझ सकते हैं कि इसे महत्व क्यों नहीं मिल रहा है।

आज की तीसरी प्रमुख खबर अडानी मामले में सेबी को और समय दिए जाने की है। लेकिन अगर आपने द टेलीग्राफ में कल छपी खबर नहीं पढ़ी है तो यह एक रूटीन की खबर लगेगी जबकि खबर यह है कि अडानी ने इस मामले की कोई जांच नहीं की है और इसे सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार चुका है तथा अभी तक जांच नहीं हुई है तो आगे होगी कि नहीं इस बारे में पुराने मामले जानने वाले के लिए समझना बहुत मुश्किल है। सेबी ने समय बढ़ाने की मांग करते हुए यही तर्क दिया है कि लेन-देन का जाल उलझा हुआ है और इसे समझने के लिए समय चाहिए। हकीकत यह है कि लेन-देन इतना उलझा हुआ होना ही नहीं चाहिए और जब लेन देन पर लगातार नजर रखी जानी चाहिए तो उलझा हुआ क्यों है और अब क्यों नहीं समझ में आ रहा है। जाहिर है, अडानी के मामले में नियमों का पालन नहीं हुआ है और यही आरोप है। रही बात 20,000 करोड़ रुपए किसके हैं तो यह राशि थोड़ी नहीं है कि देने वाले का नाम लेने वाले को पता नहीं होगा और वह बता नहीं सकता है पर जानना हो तब ना? देखें, सेबी का अगला बचाव क्या होता है।

इंडियन एक्सप्रेस में आज एक एक्सक्लूसिव खबर है। वैसे तो यह नया टैक्स लगाए जाने की खबर है और टैक्स लगाया गया है तो सरकार को खुद एलान करना चाहिए पर अभी शायद एलान नहीं हुआ है और इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस को पता चल गया इसलिए उसकी एक्सक्लूसिव खबर है। खबर का शीर्षक है, विदेशी मुद्रा में क्रेडिट कार्ड से खर्च एलआरएस (लिबराइज्ड रेमिटेंस स्कीम) के तहत आएगी और इसपर 20 प्रतिशत टैक्स लिया जाएगा। खबर के अनुसार इस संबंध में अधिसूचना मंगलवार को देर रात जारी की गई। इसका नतीजा यह होगा कि अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड से खर्च या भुगतान महंगा हो जाएगा तथा इसपर टैक्स की दर ज्यादा होगी जो एक जुलाई से प्रभावी, 20 प्रतिशत है। खबर के अनुसार इस अधिसूचना के बाद भारत से बाहर क्रेडिट कार्ड से खरीदारी पर टीसीएस (टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स) ज्यादा दर से लगेगी। इसका मकसद उच्च मूल्य वाले विदेशी लेन-देन का पता लगाना है और भारत से विदेशी सामान ये सेवाओं की खरीद पर लागू नहीं होगा।

जो भी हो और जितने लोगों पर लागू हो, जितनी वसूली हो – अगर वह बहुत ज्यादा नहीं है तो मामूली वसूली के लिए विदेश यात्रा को क्यों मुश्किल बनाया जा रहा है और अधिकारी क्या बिना टैक्स लगाए नजर नहीं रख सकते हैं? आयकर रिटर्न में क्रेडिट कार्ड से भुगतान और क्रेडिट कार्ड के भुगतान आदि का विवरण नहीं रहते हैं या नहीं देखे जाते हैं? मामला सिर्फ टैक्स लगाने का नहीं, टैक्स को मुश्किल बनाने और बाबुओं को परेशान करने का अधिकार देने का भी है। दूसरी और, ईमानदार सरकार को इतने पैसे क्यों चाहिए और रिश्वत वाले जो पैसे बच रहे हैं वह कहां जा रहे हैं – इस प्रेस कांफ्रेंस में नहीं पूछा जा सकता है तो क्या मन की बात में बताया गया है? और नहीं बताया गया है तो क्या किसी अखबार ने पिछले दिनों 100वें एपिसोड के प्रचार के मौके पर पूछा कि मन की बात में क्यों नहीं बताया जाता है अथवा क्या बताया जाता है और उसका किसे क्या लाभ है। उल्टे यह सुनने में आया कि नहीं सुनने वालों पर जुर्माना लगाया गया है। हिन्दुओं की रक्षा करने वाली सरकार क्या हिन्दुओं की रक्षा में यह सब कर रही है? कौन बतायेगा, कैसे पता चलेगा?

जाहिर है, ईमानदार सरकार अपने खर्च पूरे करने के लिए नित नए टैक्स लगा रही है और उसकी ईमानदारी शक के घरे में है। मामला सिर्फ आर्थिक ईमानदारी का नहीं है उसकी नैतिक और राजनैतिक ईमानदारी भी शक से परे नहीं है। दूसरी ओर, इस सरकार ने जनता को राहत देना तो छोड़िये कॉरपोरेट्स से सीएसआर के पैसे भी पीएम केयर्स में लेकर चुप रह जाती है। महामारी में सिर्फ जरूरतमंदों को भी मुफ्त टीका लगवाना सुनिश्चित नहीं किया गया। रोज 18 घंटे काम करने का दावा और कीमतों के साथ टैक्स बढ़ते जाना, विचित्र स्थिति है। ईमानदारी का दावा पर उसका फायदा कोई नहीं। रेल किराया ही नहीं बढ़ा है, छूट भी खत्म कर दी गई और वसूली के कई दूसरे उपाय किए गए हैं और इनमें टिकट लौटाने के नियम मुश्किल करना शामिल है। इसका नतीजा है कि ज्यादातर मामल में सुविधा नहीं लेने के बावजूद पैसे वापस नहीं मिलते हैं। किसी से पूछो कि सरकार ने काम क्या किया है तो सड़कों का निर्माण याद दिलाया जाएगा। उसमें भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के मामलों को छोड़ भी दें तो टोल रोड से आम जनता को क्या फायदा हुआ? जो उपयोग करेगा पैसे देगा और जिसके पास पैसे नहीं हैं वह इन सड़कों का कोई उपयोग नहीं कर सकता है। फिर भी सरकार का दावा अक्सर यही होता है।

इस सरकार में कार्रवाई सिर्फ भाजपा सरकार के खिलाफ काम करने वालों पर हो रही है। भाजपा समर्थकों को पूरी सुरक्षा है और तो और जनहित की बात करने वाले पूर्व राज्यपाल और भाजपा समर्थक, बुजुर्ग सत्यपाल मलिक भी नहीं बख्से जा रहे हैं। आज की एक खबर तो तिहाड़ जेल में आम आदमी पार्टी के मंत्री की कथित सहायता करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की है और दूसरी खबर सत्यपाल मलिक के पूर्व सहायक के खिलाफ सीबीआई छापे की है। भले ये खबरें प्रमुखता से नहीं छपी हों पर संसद में प्रश्न के मामले में झूठा जवाब देने के लिए सेबी के किसी अफसर के खिलाफ कार्रवाई की खबर नहीं है। जहां तक सत्यपाल मलिक का मामला है, उनके राज्यपाल रहते रिलायंस की एक बीमा योजना को जनता के लिए आवश्यक करने की एक खबर थी। जो लागू नहीं हुई। पूरा मामला कोई अखबार बताएगा नहीं पर मुझे वैसा ही लगता है जैसे मनीष सिसोदिया द्वारा अरविन्द केजरीवाल से करवाये जाने की कहानी बनाई और प्रचारित की गई है। यहां मनीष सिसोदिया को फंसाया गया वहां सत्यपाल मलिक को फंसाया जा रहा है – दोनों मामलों में ना रिश्वत का पता है न काम करने के लिए किसने कहा उसका पता है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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