इंडियन एक्सप्रेस की खबर बता रही है कि सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गए सभी नौ नामों को मंजूरी दे दी, अब एक रिक्ति रह गई। लेकिन खबर यह है कि एक रिक्ति क्यों रही और कॉोलेजियम ने नौ नाम क्यों भेजे। ऐसा नहीं है कि यह कोई राज है और पहला पन्ना के मेरे पाठकों को पता है कि इस बारे में द टेलीग्राफ ने पहले ही लिखा था। फिर भी, जर्नलिज्म ऑफ करेज का दावा करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने नहीं बताया कि 10 रिक्तियां थी तो कॉलेजियम ने नौ ही नाम क्यों भेजे। पहले ही छंटाई हो चुकी थी इसलिए नौ नामों का मंजूर होना खबर नहीं है खबर यह है कि एक और नाम नहीं मांगा गया, रिक्तियों को पूरी तरह भरने की कोई कोशिश नहीं हुई। यह सब बताया जाता तो खबर होती। लेकिन अब खबर की परिभाषा बदल गई है। वह अक्सर प्रचार होता है और प्रचार यह है कि 9 जगहें भर गईं। एक ही खाली है। सरकार बहादुर या सिस्टम ने जजों की सारी खाली जगहें भर दीं – यह प्रचार है और यह बेशर्मी तब है जब द टेलीग्राफ और कई अन्य मीडिया संस्थान बता चुके हैं कि अमित शाह के खिलाफ फैसला देने वाले जज के नाम को कॉलेजिम की सिफारिश से कैसे रोका गया। संबंधित खबर का लिंक कमेंट बॉक्स में देखें। यह खबर पुरानी हो गई कि अमित शाह के पक्ष में फैसला देने वाले जज गवर्रनर बन चुके हैं।
हमेशा की तरह, द टेलीग्राफ ने भले शीर्षक में नहीं लिखा है पर खबर में बताया है कि एक पद क्यों खाली रह गया। द टेलीग्राफ की खबर में साफ लिखा है कि सरकार चाहती थी कि कुछ नामों पर पुनर्विचार किया जाए लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने इसपर विचार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश के जोर देने पर ये नौ नाम क्लीयर किए गए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर का जो हिस्सा पहले पन्ने पर है उसमें यह बात नहीं बताई गई है। अखबार ने अंदर के पन्ने पर जो टर्न छापा है वह भी पूरी तरह प्रचारात्मक ही है। अंत में यह भी लिखा है कि 17 अगस्त को जब कॉलेजियम की बैठक हुई तो नौ रिक्तियां थीं। 18 अगस्त को न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा के रिटायर होने से रिक्ति बढ़कर 10 हो गई। कहने की जरूरत नहीं है कि न्यायमूर्ति सिन्हा 18 अगस्त 2021 को रिटायर होंगे यह उसी दिन तय हो गया होगा जब उन्होंने ज्वायन किया होगा। पर इंडियन एक्सप्रेस ने आज ऐसे बताया है जैसे उनके अचानक रिटायर हो जाने से एक जगह खाली रह गई वरना सब चंगा सी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।