सुनील जायसवाल / स्पेशल कवरेज न्यूज़
सहारनपुर की नगर कोतवाली के माधोनगर इलाके में 18 अगस्त की सुबह युवा पत्रकार आशीष कुमार (25) और उनके भाई आशुतोष कुमार (18) की पड़ोसी महीपाल सैनी और इसके दो बेटों सन्नी आदि ने गोलियां बरसाकर हत्या कर दी। शुरूआती जांच में पुलिस इसे कूड़े के विवाद पर कहासुनी के दौरान हुई घटना मान रही है, लेकिन यह दोहरा हत्याकांड सुनियोजित है और पुलिस का रवैया कहीं न कहीं हत्या के आरोपियों के पक्ष में नजर आ रहा है।
माधोनगर चौक से बेहट रोड को जाने वाले मुख्य मार्ग के दाहिनी तरफ की तीसरी गली के मुहाने पर युवा पत्रकार आशीष कुमार धीमान का मकान है। इस तरफ दोमंजिला मकान के दरवाजे मुख्य मार्ग और गली में दोनों तरफ हैं। मुख्य मार्ग के उस पार सामने ही आरोपियों का मकान है, जिसके प्रवेश द्वार के बराबर में दुकान के शटर पर “राणा डेयरी” का बोर्ड टंगा है। आशीष के घर के बाहर तीन-चार गाय बंधी हैं। बताते हैं कि आरोपी परिवार का मुखिया महिपाल सैनी करीब ढाई साल पहले शामली के झिंझाना क्षेत्र से यहां आकर बसा था।
दुकान में दो साल पहले तक कोई युवक किराए पर इस दुकान में डेयरी का काम करता था और आरोपियों ने उसे मारपीट के बाद भगा दिया था। तब से इसमें आरोपी परचून की दुकान करते थे। इलाके के लोग बताते हैं कि आरोपी यहां हरियाणा से तस्करी कर लाई गई शराब को अवैध रूप से बेचते थे। दो साल पहले इस पर आशीष ने एक दैनिक अखबार में विस्तृत खबर भी प्रकाशित की थी। तभी से वे आशीष से रंजिश रखते थे।
घटनाक्रम के पीछे की कहानी सुनियोजित है। घायल उर्मिला बताती हैं कि एक दिन पहले ही आरोपियों ने अपने घर का सामान गाड़ियों में लादकर अन्यत्र भेज दिया था। उन्हें अंदाजा नहीं था कि ये सब हत्या की प्लानिंग है। आशीष अपने घर में अकेला कमाने वाला नौजवान था और एक हफ्ते पहले ही उसे दैनिक जागरण में सहारनपुर कार्यालय में नौकरी मिली थी। इससे पहले वह दैनिक जनवाणी और हिंदुस्तान में अपनी सेवाएं दे चुका था। आशीष के पिता प्रवीण की दो साल पूर्व ही कैंसर की बीमारी से मृत्यु हुई थी और डेढ़ साल पहले आशीष का विवाह हुआ था। पत्नी आठ माह की गर्भवती है। इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की ऐसी लापरवाही सामने आ रही है, जो खासतौर पर खबरों और पत्रकारों को नजरअंदाज करने से पैदा होती है।
दो साल पहले छपी खबर का यदि पुलिस ने संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई की होती तो शायद आरोपियों के हौसले बुलंद होकर हत्या जैसे जघन्य अपराध की योजना तक न पहुंच पाते। एक पाश इलाके में परचून की दुकान पर लगातार शराब बेचे जाने की जानकारी क्या शहर कोतवाली पुलिस को नहीं थी ? अभी पिछले दिनों सहारनपुर में जहरीली शराब से 100 से अधिक मौतों के बाद चले अभियान में भी इन शराब बेचने वालों पर पुलिस की नजर क्यों नहीं गई, यह आसानी से समझा जा सकता है।
मौके पर इलाके के लोग पुलिस अफसरों के सामने ही बता रहे थे कि महीपाल और उसके लड़के नाई की दुकान पर भी अवैध पिस्टल सामने रखकर शेविंग कराते थे। सवाल यह भी है कि पुलिस का मुखबिर तंत्र क्या कर रहा था? यह तंत्र सक्रिय था तो पुलिस किन कारणों से इन पर हाथ डालने में निष्क्रिय थी? क्या आरोपियों को कोई राजनीतिक संरक्षण हासिल था?
लखनऊ में बैठे बड़े नौकरशाह जिले के अफसरों से लगातार फीडबैक ले रहे हैं, मरने और मारने वालों की जातियां पूछ रहे हैं। वजह साफ है कि सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है और यहां आरोपियों के सजातीय वोट निर्णायक हैं। दूसरी ओर एक साथी के मारे जाने के बाद भी शहर के पत्रकार लाचार, बेबस और असंगठित हैं।
स्पेशल कवरेज न्यूज़ से साभार