पहले डिसरप्टर, फिर एंटी वायरस और अब टर्मिनेटर

आज प्रचारकों ने नहीं बताया है, ‘टर्मिनेटर हमेशा जीतता है’!!

अखबार ना बता रहे हैं और ना अटकल लगा रहे हैं कि मैं फिर आउंगा का दावा किस दम पर है? 

ट्वीटर, अब एक्स पर भाजपा के आधिकारिक हैंडल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना टर्मिनेटर से करते हुए यह दावा किया गया है कि विपक्ष को यह लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराया जा सकता है, सपने देखते रहे। इसके साथ अंग्रेजी फिल्म द टर्मिनेटर के पोस्टर पर नरेन्द्र मोदी का चेहरा चिपका कर कहा गया है, “2024! मैं फिर आउंगा”। कहने की जरूरत नहीं है कि ट्वीटर हैंडल भाजपा का है और दावा प्रधानमंत्री का। मेरा मानना है कि नरेन्द्र मोदी के 10 साल के कार्यकाल के बाद भाजपा या संघ परिवार ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बदल दिया होता तो भाजपा या संघ परिवार के समर्थकों या उसकी कथित अच्छाइयों के दम पर भाजपा शायद 2024 जीत भी जाती पर अभी अगर नरेन्द्र मोदी दावा कर रहे हैं कि 2024 के चुनाव के बाद वही जीतेंगे तो यह पद पर होने का गुमान और अधिकारों के दुरुपयोग की बदौलत भी (ही) संभव है। और उसके उदाहरण दिखने लगे हैं। पर अभी मुददा वह नहीं है। 

मुददा यह है कि आज के अखबारों में भाजपा का यह दावा पहले पन्ने पर नहीं है। मुझे लगता है कि, “मैं वापस आउंगा” के प्रधानमंत्री के दावे और उनकी तुलना टर्मिनेटर से किए जाने के कारण भी – यह खबर पहले पन्ने की है। चुनाव जीतना या हारना या सिर्फ प्रधानमंत्री का लोकसभा चुनाव जीतना तो बाद की बात है। जब प्रधानमंत्री 2024 जीतने की बात कर रहे हैं तो पूरी ताकत लगाने के बावजूद राज्यों के विधानसभा चुनाव हारने को क्यों नहीं याद किया जाना चाहिये। और बात सिर्फ हारने की नहीं है। हराने वाले खुलकर उनके खिलाफ खड़े हैं और ना सीबीआई ईडी से डर रहे हैं ना सबके यहां इसका छापा पड़ रहा है। दूसरी ओर, समर्थक उन्हे टर्मिनेटर कह रहे हैं। यह सब अखबारों में जगह नहीं पाये तो मु्द्दा है।  

द टेलीग्राफ में आज यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक है, उफ्फ! क्या सच्चाई गलती से निकल गई। नई दिल्ली डेटलाइन से जेपी यादव की इस खबर की शुरुआत द टर्मिनेटर नाम की 1991 में आई साइंस फिक्शन फिल्म के एक डायलॉग, “हसता ला विस्टा, बेबी” की जगह बीजेपी यानी भाजपा से होती है। यहां हस्ता ला विसटा का मतलब है, अलविदा, फिर मिलते हैं। लेकिन क्या यह एक चूक या सेल्फ गोल है। वैसे भी, सिर्फ एक अस्वाभाविक लक्ष्य है? भाजपा ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टर्मिनेटर के रूप में चित्रित किया। पर यह नहीं बताया है कि वे 1984 की फिल्म टर्मिनेटर में एक अजन्मे बच्चे का पीछा करने वाले साइबरनेटिक हत्यारे का प्रतिनिधित्व करते हैं, या क्या वह 1991 की अगली कड़ी में पुन: प्रोग्राम किए गए “टी -800” टर्मिनेटर की नकल कर रहे हैं। बच्चे को बचाने के लिए साइबोर्ग ने खुद को समाप्त कर लिया था। 

बैडी और डू-गुडर दोनों की भूमिका पूर्व मिस्टर यूनिवर्स, पूर्व गवर्नर और अभिनेता अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर द्वारा निभाई गई है। अर्नोल्ड की छाती 57 इंच मापी जाती थी, जो मोदी द्वारा देश के आदर्श नेता के लिए निर्धारित 56 इंच की सीमा से एक इंच अधिक है। कहने की जरूरत नहीं है कि टर्निमेटर के पोस्टर का उपयोग गुरुवार और शुक्रवार को मुंबई में होने वाले विपक्षी दलों की बैठक के मुकाबले की कोशिश थी। फिल्म से लिए गए पोस्टर में, श्वार्ज़नेगर के सिर की जगह मोदी का चेहरा लगता है। तस्वीर पर भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल लगा हुआ है। पोस्टर पर लिखा है, “नरेंद्र मोदी: द टर्मिनेटर।” नीचे पंचलाइन आती है, जो अर्नोल्ड के तकियाकलाम का संशोधित रूप है, “2024! मैं फिर आउंगा।” 

वाक्यांश, “मैं फिर आउंगा” पहली टर्मिनेटर फिल्म से है। दूसरा, टर्मिनेटर 2: जजमेंट डे, जिसमें टर्मिनेटर लड़के को बचाता है, की लोकप्रिय पंक्ति थी “हस्ता ला विस्टा (अलविदा फिर मिलते हैं) बेबी”। इसका भाजपा के पोस्टर में उल्लेख नहीं है। इससे पता चलता है कि बीजेपी जब मोदी की तुलना टर्मिनेटर से करती है तो पहली फिल्म का किरदार उसके दिमाग में होता है। लेकिन सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता कहां मानने वाले थे। एक ने पूछा : “संविधान का टर्मिनेटर? संसद का टर्मिनेटर? अल्पसंख्यकों का टर्मिनेटर? एकता का टर्मिनेटर? देश के सामाजिक ताने-बाने का टर्मिनेटर? क्या आपका यही मतलब है @BJP4India?” 

अखबार ने अंत में फ़ुटनोट के तहत लिखा है: अपनी शैली के अनुरूप, “टर्मिनेटर” मोदी ने अभी तक उस मुस्लिम बच्चे पर एक शब्द भी नहीं बोला है, जिसे उत्तर प्रदेश के एक स्कूल में उसकी शिक्षिका के आदेश पर उसी के कुछ सहपाठियों ने एक-एक कर थप्पड़ लगाये थे और जिसका वीडियो चर्चा में है। दिलचस्प यह भी है कि शिक्षिका के खिलाफ जो कार्रवाई हुई वह तो नहीं के बराबर है लेकिन वीडियो ट्वीट करने वाले अल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर के खिलाफ मामला जरूर दर्ज हो गया है। कुल मिलाकर, लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी को भगवान बनाने की कोशिश में टर्मिनेटर फिल्म की एक कहानी के मुताबिक उन्हें टर्मिनेटर बनाने की कोशिश हुई पर दूसरी फिल्म के कहानी के आधार पर सवाल उठे तो चुप्पी साध ली गई। गोदी वालों ने इसे वैसे खबर नहीं बनाया जैसे चीन से मिले आश्वासन या सहमति को बनाया था। भले कुछ ही दिन में  खबर हवाई -हवाई हो गई।   

यहां याद आता है कि 2019 चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी के बारे में एक किताब आई थी। अंग्रेजी में इसका नाम था, नरेन्द्र मोदी –  क्रिएटिव डिसरप्टर, द मेकर ऑफ न्यू इंडिया। इसका हिन्दी अनुवाद मैंने किया था। हिन्दी में नाम मैंने नहीं तय किया पर जो पुस्तक का नाम है, वह है, राष्ट्र साधक, नरेन्द्र मोदी, आधुनिक भारत के शिल्पकार। कल, बुधवार, 30 अगस्त 2023 को डीबी न्यूज लाइव पर चर्चा में मैं भी था और द टर्मिनटेर कि चर्चा हुई तब मुझे क्रिएटिव डिसरप्टर की याद आई। चर्चा के दौरान पता चला कि पूर्व में नरेन्द्र मोदी के समर्थकों ने उन्हें एंटी वायरस भी कहा है।        

 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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