क़रीब 23 साल पहले ‘आज तक’ के संस्थापक संपादक और ऐंकर एस.पी.सिंह उपहार सिनेमा अग्निकांड की ख़बर पढ़ते हुए बेहद भावुक हो गये थे। 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा में लगी आग से 59 दर्शक जल कर मर गये थे। फ़िल्म थी बॉर्डर। तमाम विज़ुअल देखकर एस.पी.सिंह बेतरह विचलित थे। सिर्फ़ 14 दिन बाद 27 जून को महज़ 49 साल की उम्र में उनकी मौत हो गयी। कहते हैं कि उनका संवेदनशील होना ही उनका काल बन गया। सजीव चित्रों की विचित्र दुनिया में ख़बरों के साथ ख़ुद की धार बनाये रखना आसान नहीं था। एस.पी.के दिमाग़ की नस फट गयी थी।
एस.पी. तब भी परेशान दिखे थे जब लोग गणेश प्रतिमाओं को दूध पिला रहे थे। उन्होंने ‘आज तक’ के पर्दे पर मोची की निहाई को दूध पिलाकर दिखाया था। सरफेस टेंशन के सिद्धांत की व्याख्या की थी।
‘आज तक’ वही है, उसके मालिक भी वही हैं, पर अब मर्यादा के हर बॉर्डर को तोड़ दिया गया है। अब वहाँ ऐंकर बनने के लिए संवेदनशील नहीं संवेदनहीन बनने की माँग है। अब ये चैनल आग बुझाता नहीं, आग लगाता है। अंधविश्वास पर हमला नहीं करता, अंधविश्वास फैलाता है। संवाद नहीं ‘दंगल’ से अब उसकी पहचान है और इस काम में वह नंबर वन है। इस लिहाज़ से भी कि पहली बार उसकी डिबेट में शामिल कोई प्रवक्ता इस दंगल में अपमानित होकर ऑनएयर इस कदर बेचैन हुआ कि मर गया। बाक़ी चैनलों में अभी मार-पीट और गाली-गलौज ही देखी गयी थी। मौत का यह पहला तमाशा है।
जी हाँ, कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव त्यागी की मौत सहज नहीं है। 12 अगस्त की शाम पाँच बजे आज तक के कार्यक्रम ‘दंगल’ में वे बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा बार-बार जयचंद कहे जाने से आहत हो रहे थे। पात्रा तीखे अंदाज़ में राजीव त्यागी के हिंदू होने पर सवाल उठा रहे थे, कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उनके माथे पर लगे टीके का उपहास कर रहे थे। ऐंकर रोहित सरदाना ने इसे रोकने की कोई कोशिश भी नहीं की। वह जानता है कि डिबेट मे कोई अपमानति होता है तो टीआरपी बढ़ जाती है। उधर राजीव त्यागी की बेचैनी बढ़ रही थी। वे बार-बार पानी पी रहे थे। बार-बार उंगली उठा रहे थे। न संबित को कोई फ़र्क़ पड़ा और न रोहित को। तनाव की इसी घड़ी में राजीव को दिल का दौरा पड़ गया।
सुशांत सिंह राजपूत की ख़ुदकुशी की वजह उसकी लिव-इन साथी रिया चक्रवर्ती का ‘घर छोड़कर जाना’ बताने वालों के लिए राजीव की यह ‘हत्या’ नज़र नहीं आ रही है। कोई सीबीआई जाँच की माँग भी नहीं करेगा। ‘आज तक’ पर उंगली भी शायद ही उठे। लेकिन समझने वाले इस दुश्चक्र को समझ रहे हैं। यूएनआई में दशकों काम कर चुके देश के वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा उर्फ सीपी के लिए लेकिन चुप रहना गवारा नहीं हुआ। उन्होंने अपने फ़ेसबुक पर जो लिखा, उसे पढ़ा जाना चाहिए।
चैनलों की इस गिद्धदृष्टि का नमूना ये भी है कि आज तक ने बाकायदा अपने इस वीडियो को राजीव त्यागी का अंतिम वीडियो के रूप में बेचना शुरू कर दिया है।
राजीव त्यागी की जाँच करने वाले डाक्टर भी बताते हैं कि डिबेट के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा।
तो यह है चैनलों की हक़ीक़त। लेकिन क्या यह चैनलों की हक़ीक़त भर है। यह भारतीय लोकतंत्र के चौथे खंभे के असभ्य और हत्यारा होने की मुनादी है जो उसके दूसरे खंभे राजनीति से बल पाती है।
हो सके तो चेत जाइये। इन चैनलों का बहिष्कार कीजिए। ये भारत भूमि पर मौजूद हर शुभ विचार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा हैं। सत्ता संरक्षित कॉर्पोरेट पूँजी उनका बल है… वरना इंसान के भेष में इनका गिद्धभोज जारी रहेगा। जो कुछ इस क़दर है कि असली गिद्ध ग़ायब हो गये हैं।