अंदाजा लगाइए कि ‘जामुन का पेड़’ ICSE के सिलेबस से क्यों उखाड़ा गया!

अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने आज पहले पन्ने पर सात कॉलम में टॉप पर खबर छापी है, केंद्र सरकार ने कृष्ण चंदर की कहानी ‘जामुन का पेड़’ को आईसीएसई के सिलेबस से हटा दिया है। हिन्दी के लेखक की हिन्दी कहानी हिन्दी के सिलेबस से हटाए जाने पर अंग्रेजी के अखबार में पूरी प्रमुखता से छपी इस खबर का शीर्षक वही है जो मैंने ऊपर लगाया है।


खबर के मुताबिक, अखबार के सूत्रों ने कहा कि एक खास राज्य के अधिकारियों ने हाल में इस कहानी पर एतराज किया था। यह 2015 से हिन्दी सेकेंड लैंग्वेज के पाठ्यक्रम में है। कृष्ण चंदर (1914-1977) ने यह कहानी 1960 के दशक में लिखी थी पर सूत्रों ने कहा कि कुछ अधिकारी इसे मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के रूप में देखते हैं। आईसीएसई कौंसिल की एक सूचना के अनुसार 2020 और 2021 की परीक्षा देने वाले छात्रों से इस कहानी के सवाल नहीं पूछे जाएंगे।

कौंसिल के सचिव और मुख्य कार्यकारी गेरी अराथून ने द टेलीग्राफ से कहा कि इस कहानी को निकाल दिया गया है क्योंकि कक्षा 10 के छात्रों के लिए यह उपयुक्त नहीं था। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्यों और ना ही यह जानकारी दी कि कहानी से एतराज किसे था। अखबार ने अपने पाठकों को हिन्दी की इस कहानी का मूल भाव अंग्रेजी में बताया है और लिखा है नरेन्द्र मोदी सरकार पर अर्थशास्त्रियों ने यह आरोप लगाया है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया को धीमी कर रही है और इसका कारण जरूरत से ज्यादा केंद्रीयकरण है।

 जामुन का पेड़ पूरी में कहानी

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने गए महीने लंदन में कहा, हमारी सरकार ऐसी है जिसका शासन करने का एक खास तरीका है और यह बेहद केंद्रीयकृत है। यह व्यावहारिक तौर पर हर चीज को केंद्रीयकृत कर रही है और इसमें बहुत सारे निर्णय प्रधानमंत्री के कार्यालय में लिए जाते हैं। नोबल विजेता अभिजीत विनायक बनर्जी ने हाल में कहा था, मेरी राय में अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कामों में एक काम हुआ है, अत्यधिक केंद्रीयकरण। निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहद केंद्रीयकृत है और इसका असर हम पर हो रहा है। निवेशक ऐसी जगह होना पसंद नहीं करते हैं जहां सब कुछ रुका रहे और बहुत कम लोगों की मंजूरी का इंतजार चलता रहे।

अगर आपने कहानी पढ़ी है तो आप समझ सकते हैं कि जामुन का पेड़ क्यों उखाड़ा गया।

अंग्रेजी में पूरी खबर

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