कन्हैया का संघर्ष नहीं जाति देखने वाले जातिवादी हैं- जिग्नेश मेवानी

आंगनवाड़ी की भूमिहार कर्मचारी और उसका बेटा कन्हैया कुमार 

जिग्नेश मेवानी

यही है वह आंगनवाडी की गरीब मजदूर मां (ऊपर चित्र देखें, कन्हैया और जिग्नेश मेवानी के मध्य कन्हैया की माँ हैं ), जिसके बेटे कन्हैया कुमार को बेगूसराय से प्रत्याशी घोषित करते ही कुछ लोग उन्हें भूमिहार सिद्ध करने में लग गए है। कन्हैया एक गरीब परिवार में पैदा हुआ है। उसके माँ-बाप ने बड़ी मुसीबतें झेलकर उसे और उनके भाई-बहनों को बड़ा किया है। उनके पास वैसा घर है जो इस देश की 80 प्रतिशत जनता के पास है। यदि भारी बारिश हुई तो 10 जगह से पानी चूने लगेगा। बड़ी कोई बीमारी हुई तो इलाज के लिए हाथ फैलाना भी पड़ सकता है। अपने परिवार के बच्चों को वे शिक्षा तो दिला पाएंगे लेकिन ज्यादातर भूमिहार परिवारों की तरह फाइव स्टार स्कूलों में दाखिला नहीं करवा पाएंगे।

इस मुल्क में तथाकथित ऊंची जातियों में पैदा हुए लोगों के पास तथाकथित निचली जातियों के मुकाबले ढेरों संसाधन होते है और सोशल कैपिटल भी होता है – इस बात में कोई शंका नहीं। लेकिन, प्रत्येक स्त्री-पुरुष जो तथाकथित ऊंची जातियों में पैदा हुए वह ब्राह्मणवादी ही हो ऐसा मानना न केवल अवैज्ञानिक बल्कि दूसरे स्वरूप का जातिवाद ही है। जाति मानसिक चेतना है, उसका इंसान के जींस के साथ कोई लेना-देना नहीं होता। हमारे वीर्य में ऐसा कुछ भी नहीं होता कि कोई पैदा होते ही जातिवादी हो जाता है। मतलब कि कोई ब्राह्मण के घर पैदा होने मात्र से ब्राह्मणवादी नहीं हो जाता। ब्राह्मणवाद को गहराई से समझने वाले बाबा साहब अम्बेडकर की जीवनसाथी जन्म से ब्राह्मण थीं, बाबा साहब ने पूणे के ब्राह्मण के हाथों मनुस्मृति की प्रति जलवाई थी, उनके अखबारों में लिखने वालों में ब्राह्मण पत्रकार-लेखक भी थे। और वे जब अहमदाबाद आए तब उन्हें काला झंडा दिखाने वाले दलित ही थे।

डॉ. अम्बेडकर ने सही कहा था कि जाति का कीड़ा किसी को छोड़ता नहीं, उसका शिकार कभी दलित-पिछड़े भी बन सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य की जाति ढूंढ निकालना बंद कीजिए। यह एक बीमारी है, पढ़े-लिखे लोगों को यह शोभा नहीं देता।

हमारे देश में साथी कन्हैया जैसे युवा नेताओं की सख्त जरूरत है। तकलीफें झेलकर बड़ा हुआ यह नेता गरीब तबकों की ही आवाज बनेगा। फिर वह चाहे गरीब सवर्ण हो या गरीब दलित-मुसलमान।

यदि इसके बावजूद आपको ईर्ष्या होती रहे तो अपने तीन साल के अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि फिर तो उसका कोई इलाज नहीं।

 जिग्नेश मेवानी गुजरात विधानसभा के सदस्य और लोकप्रिय युवा दलित नेता हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक पेज से साभार।

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