बुन्देलखण्ड में एक कहावत बड़ी मशहूर है- गगरी न फूटे, खसम मर जाए। यानी कि पानी से भरी गगरी न फूटे, पति भले मर जाए। तपती गर्मी में दूर-दूर से पानी भर कर लाने की रोज़ की जद्दोजहद के बीच शायद कभी किसी महिला ने ऐसा कह दिया होगा। सुनने में यह कहावत हास्यास्पद लग सकती है, लेकिन पिछले कई बरसों से सूखे से लगातार जूझते बुन्देलखण्ड की गहरी व्यथा लिए हुए है। झाँसी के सभी ग्रामीण इलाकों में अभी से कमोबेश हर जगह यह हाल देखने को मिल रहा है, तो मई-जून के हालात की कल्पना की जा सकती है।
बीते 15 फरवरी को मोदी जब झांसी आए, तो उन्होंने अपनी सभा में बुन्देलखण्ड के लिये कई घोषणाएं कीं, जिनमें से दो बुन्देलखण्ड पाइप पेयजल योजना, झांसी शहर और आसपास के क्षेत्र में पानी आपूर्ति के लिये अमृत योजना पानी उपलब्धता बढ़ाने के वादों पर थीं, जिनकी लागत करीब 10 हजार करोड़ रुपए है। मोदी ने पानी की समुचित व्यवस्था का वादा कर महिलाओं से अगले चुनाव में जीत के लिये आशीर्वाद लिया।
मोदी की सभा में शामिल हुईं बंगरा गांव की सुखदेवी पूछती हैं, ‘’मोदी जी पांच साल तक क्या करते रहे?’’ रामकिशोर का कहना है कि उमा भारती केंद्र में जल महकमे की मंत्री थीं, पूरे देश की न सही कम से कम झांसी और आसपास के क्षेत्रों की हालात में ही सुधार कर देतीं तो बेहतर होता।
महोबा के महोबकंठ से झांसी इलाज कराने आए रामपाल का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों के यहां इलाज इतना महंगा है कि किसी साधारण-सी बीमारी में यहां आकर 20 से 25 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। निजी अस्पताल में इलाज कराने का कारण पूछने पर हरपालपुर के सुरेंद्र कहते हैं कि झांसी मेडिकल कॉलेज की क्षमता इतनी नहीं है कि पूरे इलाके को संभाला जा सके। मेडिकल कॉलेज डॉक्टर, उपकरण, संसाधन समेत तमाम कमियों से जूझ रहा है। मेडिकल में प्रैक्टिस कर रहे एक जूनियर डॉक्टर नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि यहां का हाल बहुत खराब है। कमियों के बारे में अधिकारियों को कई बार अवगत कराया है, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है।
रोजगार यहां की बुनियादी जरूरत है। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से एमएससी कर चुके सौरभ का कहना है कि पूरे क्षेत्र में रोजगार के कारगर साधन नज़र नहीं आते। वे स्वयं का खर्च छोटे बच्चों को ट्यूशन देकर निकालते हैं। मोदी सरकार से नाराजगी जताते हुए रोहित यादव कहते हैं कि 2014 में बड़ी उम्मीद के साथ मोदी को वोट दिया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। रोहित का कहना है कि वे जिंदगी में अब दोबारा कभी बीजेपी को वोट नहीं देंगे। किसको देंगे, पूछने पर वे कहते हैं, ‘’देखते हैं’’।
बुन्देलखंड से पलायन को रोकने के लिये सरकारों के पास कोई योजना नहीं है। जो छोटी-मोटी परियोजना आती है, वह घोषणा और प्रचार से आगे नहीं बढ़ पाती और बुन्देलखण्ड ठगा का ठगा रह जाता है। मोदी सरकार की ऐसी ही एक परियोजना ‘बुंदेलखंड डिफेंस कॉरिडोर परियोजना’ है, जिसकी घोषणा फरवरी 2018 में आयोजित उत्तर प्रदेश शिखर सम्मेलन में बुंदेलखंड के विकास के लिये की गई थी। उसके बाद से लगभग एक साल बीतने के बाद भी अब तक इस पर कोई खास काम नहीं हुआ है। डिफेंस कॉरिडोर पर झांसी निवासी अखिलेश का कहना है कि इसकी शुरुआत तो हो, बाकि फायदा-नुकसान तो बाद की बातें हैं।
वहीं कांग्रेस ने यह सीट अपने पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन की बलि देकर अपनी सहयोगी जन अधिकार पार्टी के शिवचरण कुशवाहा को अपने चुनाव चिह्न पर दे दी है। शिवचरण कुशवाहा उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और एनआरएचएम घोटाले के आरोपी बाबूसिंह कुशवाहा के भाई हैं। शिवचरण के बाहरी होने के कारण स्थानीय लोग उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं, फिर भी कांग्रेस सजातीय वोटरों और अन्य के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश कर रही है। सपा-बसपा के गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई है, जिसने पूर्व एमएलसी श्याम सुन्दर यादव को उम्मीदवार बनाया है।
इससे पहले चंद्रपाल यादव इस सीट पर सपा के उम्मीदवार और सांसद रहे हैं। चंद्रपाल यादव की तुलना में श्याम सुन्दर कम जाना पहचाना चेहरा हैं, जिन्हें चुनावी लड़ाई का अनुभव नहीं है, लेकिन ग्रामीण स्तर पर उनकी पकड़ काफी मजबूत है। चंद्रपाल यादव के भितरघात की आशंका के अलावा यह बात उनकी चिंता बढ़ा रही है कि बसपा का कितना वोट उनके खाते में आएगा।
राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ियों की चुनाव से दूरी और उम्मीदवारों का नयापन भी जनता के लिये एक प्रश्न है कि वोट किसको दें। मऊरानीपुर के शिवम का कहना है, ‘इस बार के तीनों प्रत्याशी हमारे लिये नए हैं। अनुराग शर्मा का हमने कभी नाम तक नहीं सुना, शिवचरण बाहरी हैं और और श्याम सुन्दर का कभी जनता से वास्ता नहीं रहा। ऐसे में किसको सांसद बना दें, जो जनता के काम करवाने में सक्षम हो।’ मऊरानीपुर के गिरीश का कहना है कि उमा भारती कुछ न कर सकीं, प्रदीप जैन कुछ न कर सके, ऐसे में इन नौसिखियों से क्या उम्मीद करें कि ये यहां के लिये कुछ कर पाएंगे!
जातीय आधार पर देखा जाए तो झांसी और ललितपुर में ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित, कुशवाहा, यादव और जैन का बड़ी मात्रा में दखल है। इन जातियों की संख्या संयुक्त रूप से 12-15 लाख के लगभग है। ऐसे में किसी भी प्रत्याशी को दो-तीन जाति समूहों का समर्थन झांसी का सांसद बना सकता है।
युवाओं को रोजगार, ग्रामीणों के पलायन, पीने के पानी समेत तमाम समस्याओं से जूझ रही झांसी की जनता एक बार फिर अपना प्रतिनिधि चुनने के लिये तैयार है। लेकिन झांसी लोकसभा क्षेत्र के लोगों का बड़ा सवाल यही है कि उनकी गगरी कब भरेगी!
लेखक मीडियाविजिल के बुंदेलखंड संवाददाता हैं