अमेठी का अनाथ VIP गांव: किसने किया? क्‍या-क्‍या किया? नहीं पता! वोट? मोदी को…

वीआइपी चुनावी सीटों की एक आम दिक्‍कत यह होती है कि वहां किए गए काम को लेकर लोग अकसर भ्रम में रहते हैं कि वह किसने करवाया। जब से सांसदों के गांव गोद लेने की परंपरा शुरू हुई है, यह भ्रम और बढ़ा है। अगर कहीं गांव में कॉरपोरेट अपना पैसा लगाने लग जाए, तो भ्रम चौतरफा फैल जाता है। फिर काम बड़ा हो या छोटा, उसका श्रेय किसी को भी जा सकता है- प्रधान को, सांसद को, गोद लेने वाले नेता को और मौजूद यहां तक कि मौजूदा सांसद के खिलाफ लड़ रहे विपक्षी प्रत्‍याशी को भी।

इस मामले में अमेठी का हरिहरपुर गांव और इसके लोग बहुत दिलचस्‍प उदाहरण पेश करते हैं, जो आगामी 6 मई को राहुल गांधी और स्‍मृति ईरानी की किस्‍मत का फैसला करने जा रहे हैं। इस गांव की खूबी है कि इसे दिवंगत भाजपा नेता मनोहर पर्रीकर ने गोद लिया था। इस लिहाज से यह गांव अब अनाथ हो चुका है, लेकिन यहां के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि इस गांव के एक नहीं, कई नाथ हैं। गांव के विकास के बारे में भी किन्‍हीं दो व्‍यक्तियों की राय एक नहीं है।

अमेठी मुख्यालय से मुसाफिरखाना कस्बे की तरफ करीब 15 किलोमीटर आगे बढ़ने पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी एक सड़क दोबारा से बनती दिखाई देती है। यहां से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है हरिहरपुर। इस सड़क पर चलने का कोई साधन नहीं है।  मोटरसाइकिल से लिफ्ट लेकर जब हम यहां पहुंचे तो गांव के प्रवेश बिंदु पर एक बोर्ड नज़र आया जिस पर लिखा है कि इस गांव को हिन्दुस्तान एअरोनॉटिक्स लिमिटेड ने अपने सीएसआर फंड से विकसित किया है। ये बात अलग है कि लोग विकास करने वालों में स्‍मृति ईरानी ततक का नाम ले लेते हैं लेकिन एचएएल के सीएसआर फंड के बारे में कोई नहीं जानता।

पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत इसे गोद लिया था। लोग उनका नाम जानते हैं। रामसुंदर बताते हैं कि सड़क पर्रीकर ने ही बनवायी है। गांव में सोलर लाइटें भी लगी हैं। लखन बताते हैं, ‘इनको लगे दो साल हो रहा है। इससे पहले जो लाइटें थीं, वे बिजली से चलती थीं लेकिन गांव में बिजली कम आती थी तो उनका कोई मतलब नहीं था।‘’

बातचीत में रामसुंदर उचटे हुए दिखते हैं। वे दलित हैं। चमड़े का काम करते थे लेकिन उनके मुताबिक मोदीजी ने सब बंद करवा दिया। वे खाली हो गए। बाजार जा नहीं सकते, तो अब बची-खुची जमीन पर खेती कर लेते हैं।

गांव में घूमते हुए एक जगह प्यास लगने पर पानी मांगा, तो एक लड़का हैंडपंप का ताजा पानी लेकर आाया। उससे पानी के बारे में पूछा तो बगल में खड़े बंशी ने बताया, ‘’पूरे गांव 20-25 नल लगे हैं। पहले भी लगे थे, लेकिन ज़्यादातर खराब थे। किसी के घर के बाहर लगा नल अगर खराब होता है, तो वो या उसका इस्तेमाल करने वाले अपने पैसे से सही करा लेते हैं।‘’ कलावती बताती हैं कि लोगों ने गांव में बोरिंग भी करा रखी है। उनके मुताबिक सरकारी नल यहां बहुत पहले से लगे हैं लेकिन सबको नल मिल गया केवल उन्‍हीं के परिवार को नहीं मिला। इसका कारण पूछने पर साफ-साफ कुछ बता नहीं पाती हैं।

साल भर पहले शादी कर इस गांव में आईं रजनी बताती हैं कि जबसे वो यहां आईं हैं, उन्हें बिजली और दूर से पानी लाने की समस्या से नहीं जूझना पड़ा है, जबकि ज़्यादातर ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी नल से पानी ढोते-ढोते ही बीत जाती है। दस साल की मुस्कान का कहना है कि गांव में अगर पाइपलाइन डल जाए, तो घरों तक पानी पहुंचने लगेगा क्योंकि हैंडपंप चलाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

अमेठी नेहरू-गांधी परिवार परंपरागत चुनाव क्षेत्र है। यहां की राजनीति इसी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। यहां के विकास और पिछड़ेपन दोनों का का श्रेय इसी परिवार को जाता है। 2014 के बाद हालांकि बदली हुई परिस्थितियों में राजनीति के आदर्श भी बदल गये। पहले किसी सम्मानित या बड़े नेता के खिलाफ विरोधी या तो कमजोर प्रत्याशी उतारते थे या फिर उतारते ही नहीं थे। ठीक यही तर्क देते हुए राहुल गांधी ने बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी को चुनाव में नहीं उतारा। इसके उलट कांग्रेस के गढ़ में राहुल को मात देने के लिये भाजपा पूरी जोर-आजमाइश कर रही है। बीजेपी ने 2014 में स्मृति ईरानी को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया था और उसके बाद मनोहर पर्रीकर को राज्यसभा सांसद। इसी से समझ आता है कि अमेठी की वीआइपी सीट को लेकर बीजेपी कितनी बेचैन है।

अमेठी से राज्यसभा सांसद बनते ही मनोहर पर्रिकर ने हरिहरपुर गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया। बिजली, पानी और सड़क में सुधार के चलते भले ही हरिहरपुर आदर्श गांवों में अपनी जगह बना चुका हो, मगर कुछ कमियां, लापरवाही और भ्रष्टाचार यहां भी है। सरकारी मिडिल स्‍कूल में पढ़ने वाले दसवीं के एक छात्र को यहां यह नहीं पता कि वह सरकारी स्‍कूल में पढ़ रहा है या निजी स्‍कूल में। वह राजकीय विद्यालय को ‘प्राइवेट’ स्कूल बताते हुए कुल तीन विषयों के नाम बहुत सोच कर गिना पाता है जिसकी पढ़ाई होती है। उसके मुताबिक स्‍कूल में पंद्रह-बीस बच्‍चे हैं और केवल दो मास्टर। एक प्रिंसिपल है और दूसरा सर्वज्ञ, जो दसवीं को सारे विषय पढ़ाता है।

जिस दिन हम हरिहरपुर गए उस दिन ग्राम प्रधान प्रधान की बेटी की बारात आने वाली थी। प्राइमरी स्‍कूल में बारात के रुकने और खाने का इन्तजाम किया गया था। प्रधान से हमने गांव के हालात और योजनाओं पर बात करने की कोशिश की, पता चला कि वे शाम को आने वाली बारात के इंतजाम के सिलसिले में शहर गये हुए थे जबकि पूर्व प्रधान कांग्रेस के प्रचार के लिये कहीं बाहर थे।

गांव के बाहर एक छोटे से तालाब का निर्माण कराया गया है। उसका सुदंरीकरण कर के चारों ओर बैठने के लिये बेंच लगाई गई है। इस पूरे भाग को एक पार्क के तौर पर विकसित किया गया है। मीडियाविजिल जब यहां पहुंचा, तो वहां सन्‍नाटा था। वहां लगा एचएएल का साइन बोर्ड बता रहा था कि पार्क को सीएसआर फंड से विकसित किया गया है। गांव वाले बताते हैं कि यह पार्क उनके किसी काम का नहीं है। दिन में यहां कौवे पानी पीने आते हैं और शाम में गांव के लड़के अड्डेबाजी करते हैं।

बेकार पड़े तालाब और पार्क की तर्ज पर किसानों की सहूलियत का हवाला देकर यहां पिपरमिंट का तेल निकालने वाला और कच्ची हल्दी को उबालकर पकाने वाले एक प्‍लांट लगाया गया है, अलबत्ता यहां इन फसलों की खेती थोड़ी मात्रा में होती है। प्‍लांट के आसपास गेहूं के खेत नजर आते हैं। ऐसे में कोई औचित्य नजर नहीं आता कि यह प्‍लांट किसके लिये लगाया गया है। छोटेलाल बताते हैं कि यहां दो-चार लोगों को छोड़कर पिपरमिंट की खेती कोई नहीं करता। नाम न छापने की शर्त पर एक शख्स बताता है कि यह प्‍लांट भाजपा के एक नेता ने अपनी सहूलियत के लिये लगवाया है।

इससे समझ में आता है कि हरिहरपुर में विकास तो हुआ है, लेकिन उसकी उपयोगिता पर प्रश्‍नचिह्न है।

हरिहरपुर में जगह-जगह रखे कूड़ेदान मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान की झलक तो देते हैं, लेकिन स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालयों की स्थिति ठीक नहीं है। अधिकतर शौचालय या तो बन्द हैं या फिर किसी और काम में लाए जा रहे हैं। शौचालय के प्रयोग पर शंकर कहते हैं, ‘’अंदर बैठकर पाखाने जाने से पेट साफ नहीं होता है।‘’ मुल्लू और भूरा भी उनसे सहमति जताते हैं।

मनोहर पर्रीकर हरिहरपुर गांव के लिये अतिसम्मानित नेता हैं। कुलदीप कहते हैं, ‘हम जो भी हैं, पर्रीकर जी की वजह से हैं। अखबार में गांव के बारे में पढ़कर अच्छा लगता है। इससे पहले न जाने कब अखबार में छपा था।‘’ राजू कहते हैं कि मनोहर जी हर महीने गांव के किसी भी आदमी को फोन कर यहां के हालात के बारे में पूछते थे और यह सिलसिला उनकी मौत से कुछ महीने पहले तक चलता रहा। पिछले महीने उनकी कैंसर से मौत हो गई, जिससे गांव वाले दुखी हैं और उनकी इच्छा है कि गांव के बाहर तिराहे पर मनोहर पर्रीकर की मूर्ति लगाई जाए। दुर्योधन सिंह के मुताबिक ग्राम प्रधान ने इस पर सहमति जता दी है, जल्द ही इसका काम शुरू हो जाएगा।

गांव वाले खुश हैं कि उनका गांव आदर्श ग्राम है। उसका श्रेय लोग नरेंद्र मोदी, मनोहर पर्रिकर और स्मृति ईरानी तक को दे रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी से सब नाराज़ हैं। देवीदीन गांव के पिछड़ेपन के लिये राहुल गांधी समेत तमाम छोटे-बड़े नेताओं को दोषी ठहराते हैं। अकेले रामसुंदर हैं जो मोदी और राहुल के बारे में बराबर राय रखते हैं कि दोनों ने ही गांव को कुछ नहीं दिया।

कलावती से हमने जब पूछा कि उन्‍हें किसी योजना का लाभ मिला है या नहीं, तो पहले उन्‍होंने ना में जवाब दिया। फिर एक-एक कर के जब नाम पूछा गया तो गैस सिलिंडर और पानी के नलके की बात उन्‍होंने मानी। खाते में दो हजार रुपये पर उनका जवाब संशय भरा था, सामने बैठे लोगों की नज़र देखकर उन्‍होंने हां में जवाब दिया। वे कहती हैं कि उनके पास आधा टुकड़ा जमीन है जिस पर उगाती हैं और काटती-पीटती हैं। तमाम सवालों का जवाब उनके पास भले न हो, लेकिन ‘’वोट किसे देंगी’’ पूछे जाने पर वह थोड़ा सकुचाती हैं, शर्माती हैं, फिर साड़ी का पल्‍ला पकड़ कर मुंह ढांपते हुए कहती हैं, ‘’मोदी को देंगे, और किसको?‘’


अमन कुमार मीडियाविजिल के संवाददाता हैं और फिलहाल उत्‍तर प्रदेश के चुनावी हालात का ज़मीनी जायज़ा ले रहे हैं

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