हिंदी दिवस: Zee और साहित्‍य अकादमी के नापाक गठजोड़ पर बोले विश्‍वनाथ तिवारी- “खरचा-वरचा दे दिया होगा ज़ी ने, गंभीरता से मत लीजिए”!

ज़ी मीडिया ने देश की सर्वोच्‍च साहित्यिक संस्‍था साहित्‍य अकादमी में घुसपैठ बना ली है और उसके मालिक सुभाष चंद्रा अब हिंदी के ”चर्चित विद्वान” बन गए हैं। आज हिंदी दिवस के मौके पर शाम 6 बजे दिल्‍ली के रवींद्र भवन में साहित्‍य अकादमी ने ज़ी एंटरटेनमेंट लिमिटेड के संयुक्‍त तत्‍वावधान में एक परिचर्चा रखी है जिसका विषय है ”हिंदी की वर्तमान स्थिति: चुनौतियां एवं समाधान”। इस कार्यक्रम में हास्‍य कवि अशोक चक्रधर और सुभाष चंद्रा के बीच उक्‍त विषय पर परिचर्चा होनी है।


ध्‍यान रहे कि ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड 62315 मिलियन के कुल कारोबार वाली एक कॉरपोरेट कंपनी है जबकि साहित्‍य अकादमी भारत सरकार की स्‍वायत्‍त संस्‍था है। ऐसा पहली बार हुआ है कि इन दोनों के संयुक्‍त तत्‍वावधान में कोई कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

क्‍या एक निजी व कॉरपोरेट इकाई के साथ अकादमी के गठजोड़ को अकादमी के प्रावधानों में मंजूरी प्राप्‍त है, यह पूछे जाने पर साहित्‍य अकादमी के अध्‍यक्ष विश्‍वनाथ प्रसाद तिवारी ने आयोजन के विवरण से अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि वे बाहर हैं और उन्‍होंने तो अब तक आमंत्रण का कार्ड भी नहीं देखा है।

कार्ड पर लिखा आमंत्रण पूरा पढ़कर सुनाए जाने के बाद तिवारी ने कहा, ”ऐसा होता है कि ये जो हिंदी पखवाड़ा एक हमारे यहां चलता है… मैं तो इस समय बाहर हूं लेकिन आपको बता रहा हूं। उसमें रहना भी नहीं है हमको… तो हिंदी पखवाड़ा एक चलता है, उसमें ये लोग तरह-तरह के लोगों को बुलाते हैं। जैसे कि टीवी से, रेडियो से, अखबार से, यहां तक कि फिल्‍म से, और क्‍या कहलाता है कि… मतलब हर तरह के लोगों को ये लोग बुलाते हैं। और पूरे पखवाड़े कार्यक्रम एक दिन दो दिन चलता रहता है। उसमें लोगों से हिंदी के बारे में… उसकी स्थिति, आपके यहां कैसे हिंदी का प्रयोग होता है… यानी कि बैंकों के हिंदी के महाप्रबंधकों को भी बुला लेते हैं… और इनका कार्यक्रम चलता रहता है… तो… और इसमें कोई ऐसी बात नहीं है। कोई उसके साथ कोलैबोरेशन नहीं किया है। उस दिन, उस दिन हो सकता है उसका खरचा-फरचा वो लोग दें, और लोगों को बुलाने का ये सब करने का…।”

ज़ी और अकादमी के कार्ड पर छपे लोगो के बारे में पूछे जाने पर उन्‍होंने कहा, ”नहीं नहीं, हमको ये लगता है कि हिंदी पखवाड़े में, जिसमें ये कार्यक्रम हो रहा है, उसका इन्‍होंने खर्च-वर्च कहा होगा, कि इसका खर्च-वर्च जी टीवी दे… इसलिए उन्‍होंने छाप दिया होगा उसमें… और कोई उसमें हमको और चीज नहीं दिखाई पड़ रही है…।”

तो इसमें नीतिगत रूप से कुछ भी गलत नहीं है? इस बारे में वे कहते हैं, ”नहीं नहीं, नीतिगत मामला होता तो ये लोग ऐसा नहीं करते… बात करते। इसमें इसीलिए… इसको बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। उस दिन का… हो सकता है कि उस दिन आने-जाने का किसी का कुछ लोगों का ये…. इसलिए कह दिया होगा कि भाई हमारा भी कोलेबोरेशन हो…।”

क्‍या इस तरह के कार्यक्रमों की सूचना अध्‍यक्ष को नहीं दी जाती है, यह पूछे जाने पर उन्‍होंने कहा, ”ये तो बताया था कि 14 सितंबर को कार्यक्रम होगा… और उसमें टीवी के लोग और ये सब लोग आएंगे… असल में मैं… कोई व्‍यक्तिगत संबंध मेरा न तो जीटीवी से है न सुभाष चंद्राजी से है… हमारा कोई संबंध नहीं है… तो ये नाम मतलब… लेकिन ये जो है… ये कोलेबोरेशन आप बता रहे हैं, उसको सामान्‍य तौर पर ही लीजिए… कोई ऐसी बात नहीं है।”

आमंत्रण के कार्ड पर ज़ी एंटरटेनमेंट के प्रतिनिधि का जो मोबाइल नंबर लिखा है, उस पर फोन लगाने पर मीनल नाम की एक कर्मचारी ने फोन उठाया और जानकारी मांगने पर उन्‍होंने आश्‍वासन दिया कि दफ्तर से कॉलबैक आ जाएगा। करीब चार घंटे इंतज़ार के बाद उन्‍हें दोबारा फोन लगाया गया, तो उन्‍होंने दोबारा आश्‍वासन दिया। थोड़ी देर में नोएडा के एक लैंडलाइन नंबर से ज़ी टीवी की एक प्रतिनिधि का फोन आया। कार्यक्रम के बारे में पूछे जाने पर उन्‍होंने संबंधित व्‍यक्ति से बात करवाने का आश्‍वासन दिया। थोड़ी देर बाद एक और लैंडलाइन नंबर से एक सज्‍जन का फोन आया और उन्‍होंने स्‍वागती लहजे में पूछा कि मैं आपकी क्‍या मदद कर सकता हूं।

कार्यक्रम के बारे में पूछे जाने पर उन्‍होंने कहा कि इसकी विस्‍तृत जानकारी तो संबंधित अधिकारी ही दे सकते हैं, हालांकि निजी तौर पर उनका कहना था कि ”सुभाष चंद्राजी उसमें जा रहे हैं तो हो सकता है कि इसीलिए ज़ी का लोगो कार्ड में छापा गया हो”। उन्‍होंने भी संबंधित अधिकारी से बात करवाने का आश्‍वासन दिया, लेकिन उसके बाद कोई फोन नहीं आया।

 

 

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